Tuesday, July 13, 2010

ओटन लगे कपास

विनय बिहारी सिंह


आज एक बहुत ही पुरानी कहावत याद आ रही है- आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास।।
सच ही तो है। हम सब का मनुष्य के रूप में जन्म हुआ है ईश्वर को जानने के लिए। लेकिन हम ईश्वर को छोड़ कर सारे प्रपंचों में फंसे रहते हैं। बस ईश्वर को छोड़ कर। कोई एक घंटा किसी तरह बैठ गया पूजा- पाठ करने और उसके बाद भूल गया भगवान को। भगवान भूलने वाली चीज ही नहीं हैं। वे तो हमारी सांस के रखवाले हैं। उन्हें भूला कैसे जा सकता है। वे ही तो हमारे प्राण हैं। कई भक्त भगवान कृष्ण को प्राण कृष्ण कहते हैं। एक अन्य भक्त भगवान राम को ही प्राण राम और शिव को प्राण शिव कहते हैं। यह भी ठीक ही है। भगवान नहीं तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। इसीलिए उन्हें प्राण कहना उचित है। बिना भगवान को साथ लिए इस संसार में आप सुखी रह ही नहीं सकते। वे प्राण के ही नहीं हमारे समूचे जीवन के भी आधार हैं। परमहंस योगानंद ने कहा है- आपके हर प्रश्न, हर समस्या का समाधान है- भगवान। प्रभु। ईश्वर। कितनी अद्भुत व्याख्या है यह। लेकिन हम समझते हैं कि हम्हीं समस्या सुलझा लेंगे। जो कर रहे हैं, हम्हीं कर रहे हैं। न यह शरीर हमने बनाया है और न ही यह संसार। हमारा शरीर ही नहीं, पूरी सृष्टि के निर्माता हैं भगवान। उनकी शरण में जाकर अगर हम सुख से रह सकते हैं तो फिर देर किस बात की? अगर इस ग्यान के बाद मन फिर भी इधर- उधर भटक रहा है तो फिर तनाव, दुख और क्लेश उस मनुष्य पर हमला कर देंगे। एक बार ईश्वर से नाता जुड़ जाए तो बस फिर क्या है। आनंद ही आनंद

1 comment:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर चित्रण किया है……………सत हरि भजन जगत सब सपना ………………इतना ही तो समझना है मगर इंसान ये ही नही समझना चाहता।