Friday, July 9, 2010

एक रोचक पुस्तक

विनय बिहारी सिंह


एक संत पुरुष की कृपा से मुझे एक बहुत पुरानी पुस्तक- महातीर्थ के अंतिम यात्री - पढ़ने का मौका मिला। इसमें भगवान शिव के बारे में जो कुछ लिखा था, उसे आपके सामने रखना अच्छा अच्छा लग रहा है। लेखक विमल दे ने लिखा है कि उनके गुरु ने बताया कि शिव और शक्ति का मिलन ही मोक्ष है। व्यक्ति या भक्त आत्मा प्रकृति और विश्वात्मा शिव के प्रतीक हैं।...... मानसरोवर के आसपास बहुत सी गुफाएं हैं। साधु- महात्मा इन गुफाओं में तपस्या करते हैं। धरती का श्रेष्ठ तीर्थ है- कैलाश खंड। यहां स्नान और जप या ध्यान करने से भगवान की कृपा बरसती है। भारत से जो लोग कैलाश आते हैं वे अल्मोड़ा हो कर ही आते हैं। इसमें अधिक समय नहीं लगता। दो तीन सप्ताह लगते हैं। जब भगवान शिव बुलाते हैं तभी व्यक्ति इस पवित्र स्थल पर आता है। मानसरोवर में डुबकी लगाने से मुक्ति मिलती है। जिनकी कृपा से त्रिभुवन में इतना सौंदर्य है उनके कैलाश में सौंदर्य का भंडार है, आनंद का भंडार है। मानसरोवर में शिव और पार्वती नहाने आते हैं। उस समय राजहंस पर बैठ कर सरस्वती आती हैं उनका दर्शन करने। रामायण, महाभारत, स्कंदपुराण आदि में मानसरोवर के गुणों का बखान मिलता है। पुराण में कहा गया है कि महाराज मांधाता ने सबसे पहले मानसरोवर का दर्शन किया था, तब से इस सरोवर का नाम मान या मानस पड़ा। वहां के लामा व तिब्बतियों का विश्वास था कि मानसरोवर के बीच भगवान बुद्ध हैं जिन पर एक अनभतत्व वृक्ष की छाया है। उस वृक्ष के फल- फूल व पत्तों में अमृत है। उसे खाने से निर्वाण लाभ होता है। जरा- व्याधि और मृत्यु से मुक्ति मिलती है। जाड़े में कोई दंडी परिक्रमा करे तो उसे भी निर्वाण लाभ होता है। इस परिक्रमा में पच्चीस- छब्बीस दिन लग जाते हैं।

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मुझे कबीर की पंक्तियां याद आ रही हैं
:


हंसा पा गया मानसरोवर, ताल तलिया क्यों डोले.

मन मस्त हुआ तब क्यों बोले?