Friday, May 28, 2010

जितना ध्यान करेंगे, फायदा उतना ही होगा

विनय बिहारी सिंह


गहरा ध्यान करने से आप आनंद में रहते हैं। जीवन में आने वाली समस्याओं को सकारात्मक ढंग से देखते और हल करते हैं। अगर आपको किसी ने गुस्से में बोल भी दिया तो आप उत्तेजित नहीं होते और गुस्से में उफनते व्यक्ति को शांत करने की कोशिश करते हैं। लेकिन शर्त यह है कि ध्यान में दिमाग इधर- उधर न जाए। ध्यान एकदम ईश्वर में ही रहे। आपकी चेतना का केंद्र ईश्वर हो। अन्य कुछ भी नहीं। मन स्थिर न रहने से वह जहां- तहां घूमता रहता है और ऐसे कथित ध्यान का कोई लाभ नहीं होता। ध्यान का एक ही अर्थ है- मन का ईश्वर में लय हो जाए। अगर ईश्वर के साथ आपकी चेतना जुड़ गई तो फिर बाहर या भीतर की डिस्टर्ब करने वाली चिंतन लहरें अपने आप समाप्त हो जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- मेरी माया को पार करना बहुत कठिन है लेकिन मेरा भक्त इसे आसानी से पार कर लेता है। जो भक्त भगवान में रमा हुआ है, उसका माया या डिलूजन या शैतान क्या बिगाड़ सकता है। सबके मालिक तो भगवन ही हैं। यह माया भी उन्हीं की बनाई हुई है। अगर आप उनकी शरण में हैं तो फिर कोई आपको छू नहीं सकता। आप अत्यंत सुरक्षित हैं। आपको किसी बात का डर नहीं है। बस शर्त एक ही है- आप भगवान को जोर से पकड़े रहें। कुछ दिनों बाद भगवान आपको जोर से पकड़ लेंगे। तब आप भगवान को नहीं पकड़ेंगे, भगवान आपका हाथ पकडेंगे।
भगवान तो ऐलान कर चुके हैं- मेरी शरण में आओ और निश्चिंत हो कर जीवन जीयो। लेकिन हम हैं कि उनकी ओर ध्यान ही नहीं देते। हमें लगता है कि जीवन में जो कुछ हो रहा है कोई मनुष्य कर रहा है या हम कर रहे हैं। ईश्वर का ध्यान ही नहीं है। जब हमारी चेतना में ईश्वर आकर स्थाई रूप से बैठ जाएंगे, हमारा जीवन अत्यंत सुखी और शांत हो जाएगा। यही तो मनुष्य की चाहत है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार इस ज्ञान के लिए.