Saturday, May 22, 2010

शांति का दरवाजा

विनय बिहारी सिंह


परमहंस योगानंद जी के गुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर जी कहते थे कि गीता को पढ़ना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि उसके अर्थ को गहराई से जानना। अगर एक श्लोक का अर्थ और उसका मनन चार दिन, छह दिन चले तो भी अच्छा है।
अच्छी तरह उसका सार तत्व जानना जरूरी है। मशीन की तरह गीता का पाठ न करें।
यह बात बार- बार याद आती है। यही बात पातंजलि योग सूत्र पर भी लागू होती है। जैसे- चित्तवृत्तियों को खत्म करना ही योग है (योगश्चित्तिवृत्ति निरोधः)। इसके लिए जरूरी है कि दिमाग में चल रही तमाम अनावश्यक हलचलों को बंद कर दिया जाए। यह तभी संभव है जब हमें महसूस हो कि हमारे दिमाग में हजार- हजार फालतू चीजें चलती रहती हैं जिनका कोई अर्थ नहीं है। ऐसी फालतू चीजों को बर्दाश्त करना हमारी आदत सी बन गई है।दिमाग की अनावश्यक बातों को खत्म करने का एक ही उपाय है कि उन्हें भगवान के चरणों पर रख कर हम उन्हें भूल जाएं। अनावश्यक चिंताएं, अनावश्यक तनाव यह कह कर भगवान के चरणों में डालें कि हे भगवान आप ही हमारे मालिक हैं। हमें संभालिए। बस, हमारे लिए शांति का दरवाजा खुल जाएगा।

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