हमारा जन्म क्यों हुआ है?
विनय बिहारी सिंह
क्या हमारे दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि हमारा जन्म क्यों हुआ है? आइए इस पर बात करें। कई लोग तो कुछ देर सोचते हैं और फिर कहते हैं- चाहे जिस वजह से हुआ हो। अब पैदा हो ही गए हैं तो जीवन का आनंद लेते हैं। .... लेकिन इससे मूल प्रश्न खत्म नहीं होगा। आखिर भगवान ने हमें यूं ही तो इस पृथ्वी पर भेजा नहीं है। महात्माओं ने कहा है- हमारा जन्म ईश्वर को पाने के लिए हुआ है। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- मनुष्य का जन्म भगवान को प्राप्त करने के लिए हुआ है। लेकिन जरा देखो तो, लोग कामिनी और कांचन में फंसे हुए हैं। यानी इच्छाओं के समुद्र में गोते लगा रहे हैं और इच्छा है कि खत्म ही नहीं हो रही है। बढ़ती ही जा रही है, बढ़ती ही जा रही है। तो फिर क्या करें? सारी इच्छाएं मार दें और चुपचाप बैठ कर माला जपें? नहीं। इस संसार में हमें जो जिम्मेदारी मिली है उसे रुचि के साथ पूरा करें। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- संसार का काम करो लेकिन संसार के हो कर न रहो। जैसे कोई कर्मचारी किसी के घर काम करता है तो घर के मालिक के बेटे को कहता है- यह मेरा राजा है, मेरा दुलारा है। लेकिन मन ही मन जानता है कि मेरा दुलारा तो मेरी पत्नी की गोद में खेल रहा होगा। रामकृष्ण परमहंस इसी तरह के रोचक उदाहरणों से लोगों को समझाया करते थे। वे अपने देश के विलक्षण संत थे। गूढ़ से गूढ़ बातों को साधारण ढंग से समझा देते थे। तो उन्होंने कहा- मनुष्य का जन्म ईश्वर को पाने के लिए हुआ है। जब भी मनुष्य को कोई तकलीफ या तनाव हो, समझना चाहिए वह ईश्वर से दूर है। लेकिन जब वह शांति और आनंद में मस्त है तो समझना चाहिए कि वह ईश्वर की गोद में है। इसका क्या मतलब? रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि आप जीवन के संकटों को अटल मान कर मत चलिए। ये संकट आते हैं और चले जाते हैं। इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है। आपका दिल दुख गया है, लेकिन उसका घाव भी धीरे- धीरे भर जाएगा। समय इतना बलवान है कि किसी सगे संबंधी की मृत्यु से लगा घाव भी धीरे धीरे भर जाता है। तो ये संकट आते हैं और चले जाते हैं। परेशानियां आती और चली जाती हैं। बस हमें चाहिए कि हम धैर्य बनाए रखें। अपना संतुलन न खोएं। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- ये परेशानियां हमें सबक सिखाने के लिए आती हैं। लेकिन परेशानियों के समय भी ईश्वर हमारा साथ नहीं छोड़ते। वे हमेशा हमें सुरक्षा के घेरे में रखते हैं।
1 comment:
बहुत सुन्दर उदाहरण देकर समझाया है मनुष्य जन्म का अर्थ्……………भगवान ने हम सबको जिस कार्य के लिये भेजा है बस इंसान उसे ही नही समझता और मनुष्य जीवन बेकार की बातों में गुजार जाता है और फिर 84 के चक्कर में फ़ँस जाता है……………जानते भी हैं सब मगर ये माया के चक्कर मे ऐसे फ़ँस जाते हैं कि उससे बाहर नही आना चाहते……………भगवान तो खुद कहते हैं कि बस मुझे जीव से कुछ नही चाहिये सिर्फ़ इतना कर दे कि अपना मन मुझे दे दे और संसार के कार्य करता रह मगर उनमें लिप्त न हो मगर ये जीव बाकी सब कुछ करता है मगर मन को अपने पास ही रखता है और जनम मरण के फ़ेरे मे फ़ँसा रहता है।
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