Tuesday, May 11, 2010

नींद में भी तो मृत्यु जैसी ही हालत होती है

विनय बिहारी सिंह

एक प्रश्न आया है कि आपने गीता का जो प्रसंग उठाया है, वह ठीक है लेकिन नींद भी लगभग मौत की तरह ही है। इसमें पता नहीं चलता कि हम कहां सोए हैं और किस हालत में हैं। हां, बिल्कुल ठीक है यह। नींद के बाद हम इसीलिए तो तरोताजा अनुभव करते हैं। तरोताजा इसलिए कि हमारा दिमाग और हमारी इंद्रियां पूरी तरह आराम कर चुकी होती हैं। सोते समय दिमाग शांत रहता है। आप नींद में कुछ सोचने की स्थिति में रहते ही नहीं। पूर्ण आराम की अवस्था है यह। सारी चिंताएं, सारे तनाव आप भाड़ में झोंक देते हैं और चैन की नींद सोते हैं। लेकिन ज्योंही नींद खुलती है, समूचे संसार के प्रपंच हमारे दिमाग में सक्रिय हो जाते हैं। नींद में जाने के पहले आपका अंतिम चिंतन जो भी होगा नींद खुलने के बाद आपका पहला चिंतन भी वही होगा। जैसे मान लीजिए आपने रात को सोते हुए किसी भावी यात्रा के बारे में सोचा तो सुबह उठते ही सबसे पहले आपके दिमाग में वही बात आएगी। संत कहते हैं कि मरने से पहले भी जो बात और जो वातावरण आपके दिमाग में रहती है आपका जन्म भी उसी माहौल में होता है। तो नींद हमें बताती है कि हम जाग्रत अवस्था में भी अनावश्यक चिंतन न करें। शांत और स्थिर बुद्धि हो कर अपना काम करें और उसके फल की चिंता न करें। ज्यों ही फल की चिंता करेंगे, आपका तनाव बढ़ जाएगा। आपने सही ढंग से अपना काम किया। पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ। बस आपका कर्तव्य पूरा हो गया। अब अगला कदम बढ़ाइए। फल भगवान के जिम्मे छोड़ दीजिए। आप देखेंगे कि इस तरह आपका तनाव कम हो जाता है। रमण महर्षि तो कहते थे कि हमें जाग्रत अवस्था में भी नींद की अवस्था जैसे ही शांत और ईश्वरोन्मुखी रहना चाहिए। जाग्रत निद्रावस्था। इसका मतलब यह नहीं कि आप चलते हुए किसी वाहन से टकरा जाएं या कहीं गिर पड़ें। नहीं। इसका अर्थ है दिमाग उसी तरह शांत रहे जैसे नींद के समय रहता है। बिल्कुल शांत और तनाव रहित। यह आसान नहीं है। लेकिन रमण महर्षि कहते थे- अभ्यास करने से यह संभव हो जाता है।

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