एक रोचक कथा
विनय बिहारी सिंह
एक सुखी किसान था। यथा समय उसकी पत्नी ने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया। दोपहर का समय था। तभी उसके सोने के कमरे में एक जहरीला सांप घुसा। किसान वहीं खाना खा कर आराम कर रहा था। उसकी नजर सांप पर गई। उसने लाठी उठाई। सांप तुरंत वापस मुड़ा और घर से बाहर निकल गया। किसान ने सांप का पीछा किया। थोड़ी दूर पर ही वह सांप भयानक भैंसे में बदल गया। वह पास के ही धान के खेत में कूदने लगा और उतनी दूर की फसल को नष्ट कर दिया। तभी उसके सामने दूसरा भैंसा आया। उस भैंसे से रूप बदले भैंसे ने जबर्दस्त लड़ाई की और उसे मार डाला। फिर वह रूप बदलने वाला भैंसा आगे बढ़ा। दस कदम बाद वह एक सुंदर स्त्री के रूप में बदल गया। अब पीछा कर रहे किसान से रहा नहीं गया। वह उस स्त्री का रूप धरे मायावी के पास गया और बोला- मैं लगातार तुम्हारा पीछा कर रहा हूं। तुमने अब तक तीन रूप बदले। आखिर तुम हो कौन? स्त्री हंसी और बोली- मैं काल हूं। मेरा कोई एक रूप नहीं है। जिस रूप में जिसकी मृत्यु लिखी है, उसे उसी रूप में मैं ले जाती हूं। किसान ने पूछा- तुमने सांप के रूप में मेरे घर में घुस कर भी कोई नुकसान नहीं किया। ऐसा क्यों? स्त्री बोली- वह तो तुम्हें अपना पीछा करने के लिए मैंने किया। अगर तुम्हारे घर में नहीं घुसी होती तो तुम मेरा पीछा कैसे करते? किसान बोला- लेकिन मैं तुम्हारा पीछा करूं, इसमें तुम्हारा लाभ क्या है? काल रूपी स्त्री बोली- लाभ है। तुम ईश्वर के अत्यंत गहरे भक्त हो। तुम्हें मैं यह बताने आई हूं कि काल किसी भी रूप में आता है। कोई भी जगह और परिस्थिति तब तक निरापद नहीं है, जब तक ईश्वर का स्मरण न हो। जहां ईश्वर का स्मरण, जप और दिल से पूजा होती है, वहां मैं भी ईश्वर के चरणों में लेटी रहती हूं। क्योंकि भक्त पर ईश्वर की कृपा होती है। तुम्हारे मन में कभी- कभी शंका होती थी, इसलिए मुझे तुम्हारे पास आना पड़ा। किसान ने पूछा- लेकिन ईश्वर इतने निष्ठुर क्यों हैं कि दर्शन नहीं देते? काल ने कहा- निष्ठुर कहां हैं। वे तो तुम्हारे दिल में बैठे हैं। तुम्हारी एक- एक गतिविधि को सुन और देख रहे हैं। वे तुम्हारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। आखिर वे तुम्हारे अराध्य हैं। तुम्हारे साथ लुका- छुपी का खेल नहीं करेंगे? वे तुम्हें देख रहे हैं। तुम और सजग होओ, और रिसेप्टिव होवो। वे तो हमारी हर सांस में हैं। किसान बोला- क्या तुम भी ईश्वर भक्त हो? काल रूपी स्त्री बोली- मैं तो ईश्वर का चाकर हूं। उनका सेवक। किसान बोला- तुम भी तो कभी- कभी अत्यंत निष्ठुर से हो जाते हो। काल रूपी स्त्री बोली- नहीं। मनुष्य के कर्तव्य निष्ठुर हैं तो उसे फल भी कई गुना निष्ठुर मिलते हैं। मैं तो कुछ नहीं करती। मनुष्य खुद ही अपने कर्मों का फल भोगता है। मनुष्य भोग
नहीं भोगता, भोग ही मनुष्य को भोगते हैं।
(साध्वी इंग्रिड ने इस ब्लाग पर अपनी कविता पढ़ कर मुझे संदेश भेजा है-
ईश्वर को इतना प्यार करो कि सारे दुख और सारी चिंताएं
उसमें गल जाएं। वह पवित्र प्रेम ही तो मनुष्य की पूंजी है।)
2 comments:
अच्छे कहानी
वाह ! प्रेरक और रोचक
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