Thursday, May 20, 2010


इच्छा, भय और क्रोध

विनय बिहारी सिंह

गीता के पांचवे अध्याय में भगवान कृष्ण ने कहा है कि इच्छा, भय और क्रोध पर विजय पाने वाला ही भक्त कहे जाने लायक है। गीता पाठ के बाद एक युवक ने पूछा- बिना इच्छा के मनुष्य का जीवन क्या काठ की तरह नहीं हो जाएगा? उसे कहा गया- इच्छा और जरूरत में फर्क है। ऐसे अनेक लोग हैं जो अपनी पागल इच्छाओं के कारण जीवन भर बेचैन रहते हैं। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- ईश्वर को पाते ही आपकी इच्छाएं खत्म हो जाएंगी क्योंकि आप उस समय पूर्ण आनंद में रहेंगे। अब कैसी इच्छा? इसी तरह है- भय। ज्यादातर लोगों में भय डेरा डाले बैठा रहता है। किस चीज का भय? कुछ खो देने का भय। क्या खो देने का भय? किसी को धन खोने का भय है तो किसी को इज्जत खोने का भय, किसी को रिश्ते खोने का भय है तो किसी को नौकरी खोने का भय। किसी को जीवन खोने का भय है तो किसी को कुछ और खोने का भय। इस भय से मुक्ति कैसे मिलेगी? इसका उत्तर परमहंस योगानंद जी ने दिया है- ईश्वर को पकड़ लीजिए। भय आपसे ही भय खाने लगेगा। और अंतिम नरक है- क्रोध। जब हमारे मन लायक कुछ नहीं होता तो क्रोध आता है। यानी हमारी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो क्रोध आता है। क्रोध से हमारा मानसिक संतुलन गड़बड़ हो जाता है। उत्तेजना होती है। मुंह से अनाप- शनाप निकल सकता है। कई लोग तो भयानक रूप से उग्र हो जाते हैं और मार- पीट या हत्या तक कर बैठते हैं। यह है- क्रोध। इसे गीता में भगवान कृष्ण ने नरक का द्वार कहा है। इन दुर्गुणों से जो बच गया, उसे भगवान क्यों नहीं प्रेम करेंगे? वे तो अपनी दोनों बाहें फैला कर हमें प्रेम करने को आतुर हैं। हम्हीं तमाम तरह के दुर्गुणों के कीचड़ लपेटे खुद को उनसे अलग किए हुए हैं। मन निर्मल कर, कीचड़ को धो कर ईश्वर के पास जाने में जो सुख है, वह अवर्णनीय है।

3 comments:

Anonymous said...

जीवन बीत जाये पर इन तीनो पर विजय ना पाए ! इसीलिए भक्ति से कोसो दूर है!!!!!!!

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

badhiya satsang

digvijay said...

prabhu,

aap ke charno me sadar naman,

kaafi dino se aapke amrit vachano ko pad raha hu.
jeevan ki har kathinai ka, har prashna ka mujhe yaha uttar mil jaata hai.
aap se ek prarthana hai
Yogoda satsang society me Main apana jeevan samarpit karna chahta hu. kya vaha mujhe seva karne ka moka mil sakta hai??
Iske liye mujhe ranchi jaana padega ha dakshineshwar.
Aap ko society ki jaankaari he isliye aap se pooch raha hu.

Kripa karke margadarshan deejiye

I am from Ratlam M.P.