Wednesday, May 19, 2010

अगर स्थूल रूप में ही मन लगे

विनय बिहारी सिंह

एक प्रसंग मैं लिखना भूल गया था। उसे पूरा करना जरूरी लगा। जब सन्यासी नए भक्त से बातचीत कर रहे थे तो वहीं एक और भक्त भी खड़े थे। उन्होंने भी एक प्रश्न किया- मैं भगवान शिव का अनन्य भक्त हूं। लेकिन ध्यान में मेरा मन कभी शिव जी के रूप पर तो कभी ज्योतिर्लिंग पर टिका रहता है। जैसे वह शिवलिंग न हो कर ज्योति हो। इससे आगे मैं जा ही नहीं पा रहा हूं। तो क्या करूं? कई साल हो गए। मैं कैसे सूक्ष्म में जाऊं?
संन्यासी- कोई बात नहीं। आप इसी ज्योति पर ही दृढ़ता से टिके रहिए। या शिव जी के ही रूप पर टिके रहिए। इसमें डूबे रहने का भी आनंद अद्भुत है। शिव जी ही आपको आगे ले जाएंगे। अगर आप जहां हैं वहीं रहते हैं तो भी आनंद कम नहीं होगा। उनकी कृपा बरसती रहेगी। आपको बस, भगवान से संबंध जोड़ना है। किसी भी तरह। चाहे ज्योति के रूप में, चाहे शिव जी के चेहरे के रूप में। आप देखिए, शिव जी कितने दयालु और भक्त वत्सल हैं। आशीर्वाद देने के लिए उनका हाथ हमेशा उठा रहता है। वे अभय देने वाले हैं। भक्तों को अत्यंत प्रेम करने वाले हैं। आप किसी के प्रति मन में खराब भावना मत लाइए। सबको ईश्वर की संतान के रूप में देखिए औऱ शिव जी के प्रेम रूप में डूबे रहिए। आपका काम हो जाएगा। जो स्थूल में रहते हैं, उनका भी कल्याण होता है। बस अनन्यता चाहिए। इस बात का दुख कभी मत करिए कि मैं तो स्थूल में ही रह गया। सूक्ष्म में कैसे जाऊं। आपका काम है अनन्य भक्ति, जप और ध्यान। बाकी काम अपने आप होगा। भक्ति के रास्ते में किसी बात को लेकर तनाव में नहीं रहना चाहिए। आप अपनी ओर से अनन्य भक्ति कोशिश कीजिए। बाकी भगवान खुद संभालेंगे। आप ऐसा कभी मत सोचिए कि क्या पता भगवान मेरी सुनेंगे भी कि नहीं। भगवान तो २४ घंटे आपको देख और सुन रहे हैं। बस दिखाई नहीं देते। जब आप भक्ति के चरम पर पहुंचेंगे तो दिखाई भी देंगे। महसूस भी होंगे। लेकिन हड़बड़ मत कीजिए। धैर्य रखिए और साधना गहरी करते जाइए।