अमरीका में वैज्ञानिक पहली सिंथेटिक कोशिका बनाने में कामयाब हुए हैं. शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर के ज़रिए चार रसायनों की मदद से एक कोशिका बनाई है.
साइंस पत्रिका में छपे इस शोध को मील का पत्थर बताया जा रहा है हालांकि आलोचकों का कहना है कि सिंथेटिक जीव से कई तरह के खतरे भी हैं.
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वे बैक्टिरीया की कोशिकाएँ बनाने में कामयाब हो पाएँगे जिससे दवाईयाँ और ईँधन बन सकेगा और ये कोशिकाएँ ग्रीनहाउस गैसों भी sokh सकेंगी.
शोध टीम की अगुआई डॉक्टर क्रेग वेंटर ने की. उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पहले सिंथेटिक बेक्टिरियल जीनोम बनाया था और एक बैक्टिरिया से दूसरे में जीनोम प्रतिरोपित किया था.
अपनी नई उपलब्धि पर उन्होंने कहा, "इससे नई आद्योगिक क्रांति आ सकती है. अगर हम इन कोशिकाओं का इस्तेमाल कामकाज में कर पाए तो फ़ैक्ट्रियों वगैरह में तेल पर निर्भरता कम हो जाएगी और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड भी कम हो सकती है."
नाखुश हैं आलोचक
इससे नई आद्योगिक क्रांति आ सकती है. अगर हम इन कोशिकाओं का इस्तेमाल कामकाज में कर पाए तो फ़ैक्ट्रियों वगैरह में तेल पर निर्भरता कम हो जाएगी और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड भी कम हो सकती है
डॉक्टर क्रेग वेंटर
डॉक्टर वेंटर की टीम कई ईंधन और दवा कंपनियों के साथ काम कर रही है ताकि बैक्टिरिया के ऐसे क्रोमोसोम बनाए जा सकें जिससे नई दवाइयाँ और ईंधन बन सके.
लेकिन कई आलोचकों का कहना है कि सिंथेटिक जीवों के फ़ायदों को बढ़ा चढ़ा कर बताया जा रहा है.
ब्रिटेन की जीनवॉच संस्था की डॉक्टर हेलन कहती हैं कि सिंथेटिक बैक्टिरिया का इस्तेमाल ख़तरनाक हो सकता है.
उनका कहना है कि अगर आप वातावरण में नए जीव छोड़ देंगे तो इससे फ़ायदे के मुकाबले नुकसान ज़्यादा होगा क्योंकि आपको नहीं पता कि ये वातावरण में किस तरह के बदवाल करेंगे.
लेकिन डॉक्टर वेंटर ने कहा है कि इस काम की नैतिकता को लेकर उठने वाले सवालों को वे दरकिनार नहीं कर रहे हैं.