Saturday, April 24, 2010

भीषण गर्मी में लहलहाते फूल

विनय बिहारी सिंह

कल अपने दफ्तर से लौटते हुए एक पेड़ पर नजर पड़ी। हमारा दफ्तर कोलकाता के राजभवन के बिल्कुल करीब है। राजभवन के सामने यह पेड़ है जो फूलों से लहलहा रहा था। इस समय भीषण गर्मी पड़ रही है। क्या पेड़ गर्मी से अप्रभावित है? कैसे इस गर्मी में उस पर खूबसूरत फूल लदे हुए हैं? फूलों की कुछ अन्य प्रजातियां भी हैं जो गर्मी बढ़ने के साथ- साथ अपनी छटा बिखेरती हैं। हम मनुष्य गर्मी से हाय- हाय करते हैं और यहां पेड़ पर फूल लहलहा रहे हैं। आप कहेंगे कि इस गर्मी में कई पेड़ सूखे हुए भी हैं। तो इसका जवाब यह हो सकता है कि सूखे हुए पेड़ों की तरफ कोई नहीं देखता। लहलहाए पेड़ों की तरफ ही सभी देखते हैं। फूलों से लदा पेड़ हमें यह बताता है कि विपरीत परिस्थितयों में भी हमें धैर्य रखना चाहिए और खिलने के मौकों को ढूंढ़ना चाहिए। जीवन है तो दिक्कतें रहेंगी ही। सुख- दुख आएंगे ही। यही तो जीवन की रीति है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि ईश्वर ने हमें यहां क्यों भेजा है। सब कुछ चलता रहे लेकिन लक्ष्य याद रहे। हम इसलिए यहां आए हैं कि मनुष्य देह में रहते हुए ईश्वर को महसूस कर सकें। ईश्वर को पाने की कोशिश कर सकें। उससे गहन से गहनतम रिश्ता बना सकें। फूलों से लदा पेड़ सदा गर्मी, सर्दी और बरसात झेलता रहता है। एक जगह दृढ़ रहते हुए। फिर भी उस पर फूल खिलते हैं। सुगंध बिखेरते हैं। लेकिन अगर आप फूल तोड़ लेंगे तो भी पेड़ कुछ नहीं बोलेगा। आप फूल तोड़ कर ले जाइए। उससे पूजा कीजिए। उसकी महक का आनंद लीजिए। कहा भी गया है-
वृक्ष कबहुं न फल भखै। नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने। साधुन धरा शरीर। यानी वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाता। नदी कभी अपना जल नहीं पीती। ठीक उसी तरह साधु का शरीर परमार्थ के लिए है। दूसरों के लिए है। पर पेड़ बहुत अच्छा संदेश दे रहा है। वह इस तड़पाने वाली गर्मी में खिल कर सुगंध दे रहा है। कह रहा है- आइए, हम सब तनिक हंसे, मुस्कराएं, प्यार बाटें और खुश हों। जिंदगी के झमेंले तो चलते रहेंगे। उससे हम क्यों प्रभावित हों।

1 comment:

sansadjee.com said...

एक पेड़ चांदनी लगाया है आंगने
फूले तो एक फूल आ जाना मांगने