Saturday, April 17, 2010

हरिद्वार में कुंभ स्नान का आनंद



विनय बिहारी सिंह


दस अप्रैल की रात को हरिद्वार में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के कैंप में पहुंच कर बहुत सुख मिला। हमें जो रास्ता बताया गया था उसमें केशव आश्रम का नाम भी दिया गया था। हमें लगा कि यह लैंड मार्क भर है। लेकिन जैसे ही पता चला कि यह आश्रम परम पूज्य योगीराज श्यामा चरण लाहिड़ी के उच्च कोटि के शिष्य स्वामी केशवानंद का है, उस आश्रम के प्रति चुंबकीय आकर्षण बढ़ता गया। उस आश्रम के बारे में ही सोचते हुए रात गुजरी। परमहंस योगानंद जी की विख्यात पुस्तक आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में स्वामी केशवानंद जी का श्रद्धा से उल्लेख है। अगले दिन दोपहर को कैंप से वाईएसएस के दो प्रवेशार्थी साधु केशवाश्रम जा रहे थे। अब और प्रतीक्षा असह्य थी। इसलिए मैं उन साधुओं के साथ केशवाश्रम चला गया। वहां पूज्यवर श्यामाचरण लाहिड़ी की भस्म समाधि का दर्शन पाकर मैं खुद को धन्य मान रहा था। वही थोड़ी देर सबने ध्यान किया। उसी आश्रम में जीवन में पहली बार रुद्राक्ष का पेड़ देखा और स्वामी केशवानंद जी की मूर्ति के सामने श्रद्धा से प्रणाम किया। इस आश्रम के किनारे से पवित्र गंगा नदी बहती है। वहीं हम सबने स्नान किया। फिर हर की पौड़ी गए। वहां के जल को माथे पर छिड़का। केशवाश्रम लौट कर आए तो वहां के लोगों ने हम सबके लिए फलाहार रखा था। स्वादिष्ट फल खाया। शाम को फिर हर की पौड़ी गए और गंगा की आरती देखी। साथ गए प्रवेशार्थी साधुओं ने इस आरती की वीडियो फिल्म बनाई। ये साधु पढ़े- लिखे और विद्वान हैं। उनसे पूरे दिन बातचीत चलती रही। यह बातचीत भी यादगार बन कर रह गई। साधुओं ने हमारे साथ भी अपने कैमरे से एक फोटो खिंचवाया। इन साधुओं के साथ स्नान, ध्यान और जलपान करना सुखद अनुभव था। तीन दिन गंगा स्नान हुआ। दो दिन हमारे साथ वरिष्ठ सन्यासी भी घाट तक गए और जब तक हम नहाते रहे वे वहां खड़े रहे। उनका स्नेह हमारे ऊपर लगातार बना रहा। फिर हम गए कनखल। कनखल में मां आनंदमयी की समाधि है। आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में परमहंस जी ने मां आनंदमयी के बारे में भी लिखा है। हम सब समाधि पर गए और वहां आरती के समय उपस्थित रहे। आश्रम में जाना अत्यंत सुखद अनुभव रहा। वहां एक यूरोपीय साधु मिल गए जिनकी चर्चा मैं इस ब्लाग पर की थी। लाल लुंगी और कुर्ता पहने हुए। मैंने पूछा- आप तो नाथ संप्रदाय से दीक्षा लेने वाले थे, ले ली। उन्होंने कहा- नहीं, मैंने वेदांत परंपरा में दीक्षा ले ली। अब मुझे किसी दीक्षा की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुझे सुन कर बहुत खुशी हुई।

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