दर्द की बात करने से भी बढ़ता है दर्द
विनय बिहारी सिंह
जर्मनी में शोध से पता चला है कि अगर आप एक महीने या एक साल पुराने दर्द के बारे में भी बात करते हैं तो आपके दिमाग पर उसका असर पड़ता है और आपके दिमाग में उस दर्द का एक हिस्सा चला जाता है। दर्द की याद ताजा हो जाती है। इसलिए आपने जो दर्द झेला स्वस्थ हो जाने के बाद उसे भुला दीजिए। उस पर फिर चर्चा करने की जरूरत नहीं है। चर्चा ही करनी है तो आप अच्छी चीजों की, सुखद चीजों की चर्चा कीजिए। इससे आपको खुशी मिलेगी। मनोचिकित्सकों ने एक और बात कही है कि अगर आप किसी शारीरिक तकलीफ में हैं तो उस पर ज्यादा बातचीत करने से कोई फायदा नहीं है। हां, तकलीफ पर एकदम चुप्पी भी ठीक नहीं है। आखिर दर्द अपनों में बांटने से वह हल्का होता है। चिकित्सकों का कहना है कि इसकी अति नहीं होनी चाहिए। कई लोग दर्द क्या हुआ सबसे कहते फिरते हैं और बार- बार कहते हैं। इससे वह दर्द बार- बार उपस्थित होता रहता है और लगातार परेशान होते हैं। कहा भी गया है- अति बुरा है। अगर मन खराब है तो आप अपना मनचाहा कोई काम कर सकते हैं। संगीत सुन सकते हैं या चित्रकारी कर सकते हैं। लेकिन जो ईश्वर के भक्त हैं, वे लोग सीधे- सीधे ईश्वर से कहते हैं- प्रभु मेरा मन क्यों खराब है? आप तो मेरे साथ हमेशा रहते हैं। मेरा मन अपना मन बना लीजिए। इसमें शांति और आनंद भर दीजिए। धीरे- धीरे भक्त पाता है कि उसका मन एक बार फिर आनंद से भर गया। बिना वजह आनंद ही तो ईश्वर का आशीर्वाद है। सांसारिक चीज तो हमें आनंद दे ही नहीं सकती। कोई वस्त्र आप खरीदना चाहते हैं। आपने खरीद लिया। आपकी खुशी का ठिकाना नहीं। लेकिन दो दिन बाद आप उस कपड़े से ऊब गए। कोई कार खरीदना चाहते हैं। कार आई। आपने उसका इस्तेमाल किया। छह महीने बाद आपकी उस कार में रुचि कम हो गई। सांसारिक कोई भी वस्तु आपको स्थाई खुशी नहीं दे सकती। स्थाई खुशी तो सिर्फ एक ही चीज से मिल सकती है- ईश्वर से। ईश्वर को कुछ लोग परमपिता कहते हैं तो कुछ लोग मां कहते हैं। और हमारे यहां तो श्लोक भी है- त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविड़ं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव।। यानी आप माता, पिता, सखा, बंधु सब कुछ हैं। सच ही तो है- ईश्वर ही हमारे सब कुछ हैं।
3 comments:
nice
विनय जी दर्द को लेकर अच्छी पोस्ट दी है आपने।
nice
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
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