Monday, April 19, 2010

हर की पौड़ी

विनय बिहारी सिंह

हर यानी भगवान शिव और पौड़ी माने उनके चरण चिन्ह। सभी जानते हैं कि गंगा भगवान शिव की जटा से होते हुए पृथ्वी पर आई हैं। इसीलिए जहां गंगा हैं वहां भगवान शिव भी हैं। आप देश के किसी कोने में चले जाइए, गंगा के घाटों पर भगवान शिव का मंदिर मिलेगा ही। अब आते हैं हरिद्वार पर। हरिद्वार यानी हरि का द्वार। हरि कौन है? भगवान कृष्ण। यानी यह स्थान भगवान कृष्ण का द्वार है। लेकिन शैव मतावलंबी इसे हरद्वार कहते हैं। यानी भगवान शिव का द्वार। बात एक ही हुई। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि वेद जिसे सच्चिदानंद ब्रह्मः कहते हैं, पुराण उन्हें ही सच्चिदानंद कृष्णः कहते हैं और तंत्र उन्हें ही सच्चिदानंद शिवः कहते हैं। हैं वे एक ही, अलग अलग नामों से पुकारे जाते हैं। मेरा जन्म चूंकि काशी क्षेत्र के पास पड़ता है और बचपन से ही घर में भगवान शिव की पूजा होती है तो उनमें मन रम जाना स्वाभाविक है। लेकिन बचपन से ही भगवान राम का भी फोटो घर में देखा है, इसलिए भगवान राम या कृष्ण का रूप भी उतना ही परिचित है। मुझे बचपन का एक चित्र कभी भूलता नहीं है। वह चित्र था रामेश्वरम का। भगवान राम लंका पर चढ़ाई के पहले शिवलिंग की स्थापना करते हैं और उनका अभिषेक और पूजा करते हैं। यह चित्र मुझे बचपन से मोहित करता रहा है। भगवान राम पूजा कर रहे हैं भगवान शिव की। उधर भगवान शिव ध्यान लगा रहे हैं भगवान राम की। क्या अद्भुत चित्र था। राम या शिव एक ही हैं। बस रूप अलग- अलग हैं। यही बात मुझसे एक उच्च कोटि के सन्यासी ने कहा था। फिर आनंदमयी मां भी यही कहा करती थीं। एक भक्त ने मां आनंदमयी से पूछा कि शिवरात्रि के दिन मैं लगातार भगवान कृष्ण की पूजा करती रही। वही मेरे अराध्य हैं। इसमें कोई दोष तो नहीं है? मां आनंदमयी ने जवाब दिया था- जो राम हैं, वही कृष्ण हैं और वही शिव और दुर्गा हैं। पूछने वाली स्त्री थी। मां ने कहा था- तुम्हारा पति किसी का पुत्र है और किसी का पिता, किसी का पति है तो किसी का भाई। लेकिन है वह एक व्यक्ति ही। मां आनंदमयी ने कहा- भगवान एक ही हैं। रूप उनके अनेक हैं। इसे लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। भगवान की चाहे दुर्गा रूप में पूजा कीजिए या कृष्ण रूप में वे जानते हैं कि पूजा उन्हीं की हो रही है। संसार चूंकि रूप और आकार को ही पहचानता है, इसलिए वह मनपसंद रूप की पूजा करता है। लेकिन वह पूजा जाती है भगवान के पास ही। वह एक है। तो हर की पौड़ी पर बात हो रही थी। हिंदी में जिसे पौड़ी कहते हैं पंजाबी में उसे ही पैड़ी कहा जाता है। पंजाबी लोग इसे हर की पैड़ी कहते हैं। हिंदी बोलने वाले इसे हर की पौड़ी बोलते हैं। हर की पौड़ी से भगवान शिव की विशाल मूर्ति दिखती है। यह मूर्ति गंगा नदी में ही है। लेकिन है विराट मूर्ति। हर की पौड़ी से इस मोहिनी मूर्ति की पीठ दिखती है। मुझे इस पर एक किस्सा याद आया- दक्षिण भारत में एक मंदिर है जिसमें भगवान कृष्ण की आकर्षक मूर्ति है। एक भक्त थे जिन्हें मंदिर में जाने की मनाही थी। उस जमाने में जाति प्रथा चरम पर थी। इसीलिए वे मंदिर में जा नहीं सकते थे। भगवान कृष्ण की मूर्ति की पीठ की तरफ एक खिड़की थी। भक्त वहीं खड़े हो कर कातर स्वर में भगवान कृष्ण के भजन गाया करते थे। अचानक एक दिन भगवान कृष्ण की मूर्ति पीछे की तरफ अपने आप घूम गई। भगवान तो भक्त के प्रेमी हैं। उनसे अपने भक्त की व्याकुलता बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने अपना मुंह खिड़की की तरफ कर दिया। हर की पौड़ी पर अगर कोई भगवान शिव का भक्त इसी तरह से प्रार्थना करे तो शायद भगवान शिव भी अपना चेहरा उधर कर दें। गंगा स्नान के बाद केशव आश्रम (स्वामी केशवानंद का आश्रम) में मुझे एक सन्यासी के हाथों तीन मुखी रुद्राक्ष मिला। यह प्रसाद योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के स्वामी कृष्णानंद जी ने दिया। छत से नीचे उतरा आश्रम की ओर से दो- दो मिठाइयां, एक केला और एक संतरा दिया गया। इसे खा कर हम सब तृप्त हुए। आश्रम में बिताए हुए वे तीन दिन आजीवन याद रहेंगे।

No comments: