Friday, December 16, 2011

सत्संग या ईश्वर के साथ संग

विनय बिहारी सिंह



रमण महर्षि ने कहा है- सत्संग करना चाहिए। सत्संग यानी सत के साथ संग। सत क्या है? ईश्वर ही सत हैं। उनके साथ संग एकांत में शांति से होता है। मन शांत और एकाग्र हो। बिखरे हुए मन से ईश्वर के साथ संपर्क नहीं किया जा सकता। कुछ लोग पूजा- पाठ के समय भी प्रपंच सोचते रहते हैं। जिस समय भगवान से संपर्क करने के लिए हम बैठते हैं, उस समय यह संसार खत्म हो जाना चाहिए। वैसे भी भगवत् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- हे अर्जुन, दुखों के इस संसार से बाहर निकलो। यानी इस संसार से सुख की आशा करना व्यर्थ है। भगवान से ही सुख की आशा की जानी चाहिए। भगवान यानी सुख। कैसा सुख? ईश्वरीय सुख। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- इस दुनिया की कोई भी भौतिक वस्तु आपको सुख नहीं दे सकती। किसी व्यक्ति से आपको सुख नहीं मिल सकता। यह संसार ही माया है। सिर्फ और सिर्फ भगवान से ही सुख मिल सकता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हमें जो सुख नहीं दे सकता उससे प्रेम नहीं करना चाहिए। अवश्य करना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति में भगवान हैं। लेकिन सुख तो केवल भगवान से ही मिल सकता है।
रमण महर्षि का कहना है कि ईश्वर ही सबकुछ हैं। उनसे संपर्क कीजिए। सदा उनसे जुड़े रहिए। आपका कल्याण होगा। एक बार किसी व्यक्ति ने रमण महर्षि से कहा कि आप लोगों के बीच प्रवचन क्यों नहीं देते। मौन रह कर आप कैसे लोगों तक संदेश पहुंचाएंगे। रमण महर्षि ने कहा- मौन, वक्तव्य से ज्यादा शक्तिशाली है। आप मौन रह कर लोगों तक संदेश पहुंचाइए। वह ज्यादा कारगर होगा। सभी बोलने को आतुर हैं। जबकि मौन रह कर ईश्वर से संपर्क अनंत सुखदायी है।

1 comment:

vandana gupta said...

्बहुत ही ज्ञानवर्धक विवेचन्।