Tuesday, December 20, 2011

न जन्म न मृत्यु न जाति

विनय बिहारी सिंह



आदि शंकराचार्य ने एक भजन लिखा है, जिसे परमहंस योगानंद जी ने अपनी पुस्तक- कास्मिक चैंट्स में शामिल किया है। भजन है- न जन्म, न मृत्यु, न जाति कोई मेरी। पिता न कोई माता मेरी। शिवो अहम्, शिवो अहम्.......। आप जितनी बार यह भजन पढ़ेंगे, मुग्ध हो जाएंगे। ऐसे लोग कम नहीं हैं जो स्वयं को शरीर के अलावा कुछ नहीं मानते। उनके लिए शरीर की आवश्यकताएं ही अनंत होती हैं। शरीर के लिए यह चाहिए, वह चाहिए.....यानी हजार- हजार जरूरतें। इनके पूरा होने पर भी शरीर और मांगता है। इंद्रियां और मांगती हैं। इंद्रियां ऐसी अग्रि हैं जहां सब कुछ भस्म होता जाता है और आप उसमें जितना डालते जाते हैं, उससे ज्यादा की मांग होती रहती है। इसीलिए आदि शंकराचार्य ने कहा है- मन न बुद्धि, अहं न चित्त, नभ न भू न धातु हूं मैं। शिवो अहम, शिवो अहम...। भगवत् गीता में भी भगवान ने कहा है- यह आत्मा अछेद्य है, अदाह्य है....। इसे न तो शस्त्र से काटा जा सकता है और न आग से जलाया जा सकता है। इसे न जल से गीला किया जा सकता है और न वायु से शुष्क किया जा सकता है। यह तो अचिंत्य है। यानी जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते। यानी यह मनुष्य के दिमाग के बाहर की बात है। लेकिन वह व्यक्ति इस आत्मा को जान सकता है जिसने पूर्ण हृदय से खुद को सरेंडर कर दिया है, जिसने खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दिया है। भगवान ने प्रतिग्या की है कि वे अपने भक्तों का उद्धार करेंगे। यह उनकी प्रतिग्या है। इसमें अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है। स्वयं भगवान की प्रतिग्या है यह। आप गीता पढ़ें। आपको भगवान की प्रतिग्या मिल जाएगी। तब भी अगर कोई शक करता है, संदेह करता है तो उसे क्या कहेंगे?

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