Tuesday, December 27, 2011

घड़ी मिलने का राज

विनय बिहारी सिंह




मेरे एक मित्र ने बहुत अच्छा ई मेल भेजा है। सोचा आपको भी बता दूं। उन्होंने एक मोरल स्टोरी भेजी है। एक आदमी की घड़ी खो गई। वह आलमारी में थी। उसने बहुत खोजा- नहीं मिली। उस घड़ी से उसका भावनात्मक लगाव था। उसे अचानक एक उपाय सूझा। उसने सामने मैदान में खेल रहे बच्चों को बुलाया और आलमारी से अपनी घड़ी खोने की बात बताई। उसने कहा- तुममें से जो कोई मेरी घड़ी खोज देगा, मैं उसे ईनाम दूंगा। बच्चों के लिए यह एक खेल की तरह था। वे आलमारी में घड़ी खोजने में जुट गए। बच्चों ने खूब खोजा। लेकिन घड़ी नहीं मिली। तभी एक बच्चा बोला- मैं आपकी घड़ी एक बार औऱ खोजना चाहता हूं। मुझे मौका दीजिए। वह आदमी खुश हुआ। बोला- जरूर। तुम मेरी तरह बहुत आशावादी हो, जरूर खोजो। थोड़ी देर बाद बच्चा घड़ी लेकर आया। वह आदमी घड़ी पाकर बहुत खुश हुआ। एक बहुत अच्छा ईनाम देने से पहले उसने बच्चे से पूछा- तुमने घड़ी खोजी कैसे? बच्चा बोला- मैंने आपकी आलमारी खोली और चुपचाप फर्श पर बैठ गया। मैंने दिमाग को बहुत शांत किया और घड़ी की टिक टिक की आवाज सुनने की कोशिश की। थोड़ी ही देर बाद यह टिक टिक मुझे सुनाई पड़ने लगी। मैंने टिक टिक की आवाज की तरफ देखा। यह घड़ी दरअसल आलमारी में बिछे पेपर के नीचे थी। मैं इसकी टिक टिक के कारण इसे पा गया। ई मेल भेजने वाले मेरे मित्र ने लिखा है- इस घटना से यह सीख मिलती है कि दिमाग शांत हो तो बड़ी से बड़ी समस्या हल कर सकता है।

1 comment:

vandana gupta said...

बिल्कुल सही कहा…………बहुत बढिया शिक्षा मिली।