विनय बिहारी सिंह
रामचरितमानस पढ़ते वक्त बार- बार यह बात सामने आती है कि मनुष्य के बड़े शत्रुओं में एक अहंकार भी है। रावण के भीतर अहंकार कूट- कूट कर भरा था। वह भगवान राम तक को कुछ नहीं समझता था। यही उसकी मृत्यु का कारण बना। दूसरी तरफ हनुमान जी भगवान राम के अद्वितीय भक्त थे। यही उनकी ताकत थी। इसीलिए जब तक सृष्टि रहेगी, उनकी पूजा होती रहेगी। हनुमान जी के पास धन नहीं था। वे राजा नहीं थे। लेकिन पूरे ब्रह्मांड के मालिक के प्रिय होने के कारण वे ब्रह्मांड के राजा जैसे थे। दूसरी तरफ रावण सोने की लंका का राजा था। वह भौतिक रूप से संपूर्ण समृद्धि का स्वामी था। लेकिन वह अहंकार के भरा हुआ था। इस अहंकार ने ही उसे मृत्यु दिया। यदि वह अपने भाई विभीषण की बात मान लेता और मां सीता को राम के पास लौटा देता तो उसका संहार नहीं होता। लेकिन वह अपने अहंकार में इतना डूबा हुआ था कि उसे लगता था कि वह जो भी सोचता है, सही है, उचित है। दूसरे जो कुछ भी कहते हैं, वह बेकार की बात है। उसे हमेशा अपनी प्रशंसा अच्छी लगती थी। निंदा से वह नाराज हो जाता था। दूसरी तरफ भगवान राम सबके हित में सोचते थे। सबकी राय ध्यान से सुनते थे। हालांकि वे सृष्टि के रचयिता हैं। लेकिन उनमें अहंकार छू कर भी नहीं था। उन्होंने रावण का वध किया। हम भी अपने भीतर के रावण का तभी वध कर सकते हैं जब हमारा अहंकार विलुप्त हो जाएगा। खत्म हो जाएगा। इसके बाद ही शुरू होता है भगवान से प्रेम। ईश्वर से प्रेम।
2 comments:
bahut sundar saragarvit manas vichar prastuti..abhar
सत्य वचन।
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