विनय बिहारी सिंह
बार- बार मन कह रहा है कि मैं ज्योतिष को पेशा न बनाऊं। यह सोच कर मैं खुश हूं कि मैं इस पेशे में नहीं हूं। पता नहीं क्यों। ज्योतिष का खूब- खूब अध्ययन करनेऔर बाकायदा डिग्री मिलने के बाद यह फैसला मन को राहत देने वाला है। इसलिए नहीं कि मैं ज्योतिष को कम करके आंकता हूं। अगर कम करके आंकता तो इसका गहरा अध्ययन नहीं करता। मेरी इस पेशे में पूरी श्रद्धा है। यह वैग्यानिक है। लेकिन अपने मन को मैं समझा नहीं पा रहा हूं। इसलिए ज्योतिष को पेशा न बनाने का फैसला किया।
कल रविवार को मुझे ज्योतिष की डिग्री मिली। कृष्णमूर्ति पद्धति की नक्षत्र ज्योतिष का मैं उत्सुक छात्र रहा हूं। इसे संक्षेप में केपी एस्ट्रोलॉजी कहते हैं। प्रोफेसर केएस कृष्णमूर्ति (जन्म १९०२, निधन- १९७८) इसके अविष्कारक थे। मेरी डिग्री उन्हीं के द्वारा स्थापित संस्थान से मिली है। डिग्री पर श्रद्धेय कृष्णमूर्ति के पुत्र के हरिहरन के हस्ताक्षर हैं। डिग्री पा कर अच्छा लगा। उसे खूब जतन से रखा है। डिग्री देने के बाद मेरे प्रोफेसर ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और कहा- बेस्ट आफ लक। अब आप प्रेक्टिस शुरू करें। मेरी शुभकामनाएं आप सबके साथ हैं। उनकी बातें सुन कर मैं क्षण भर के लिए भावुक हो गया। अचानक जैसे अंदर कुछ कौंधा। मैं सावधान हो गया। इस तरह की अनावश्यक भावुकता मनुष्य के लिए घातक है। जो शुरू होता है, वह खत्म होता ही है। इसमें भावुकता कैसी? मुझे यह अच्छा नहीं लगा कि मैं भावुक हो गया। यदि भावनाओं पर नियंत्रण नहीं है तो आप संतुलित व्यक्ति नहीं हैं। कल से मैं अब ज्यादा ही सावधान हो गया हूं। अपनी भावनाओं के प्रति। संतुलित भावना हो तो ठीक है। इस उम्र में आ कर भावुकता को न छोड़ना अच्छा नहीं है। मेरे प्रोफेसर का फोन नंबर मेरे पास है। मैं उनसे बातचीत कर ही सकता हूं। सिर्फ उनके यह कहने पर कि- अच्छा, नमस्कार। अब हम इस तरह क्लास में नहीं मिलेंगे। पर हम एक दूसरे को याद रखेंगे। गुड बाय। मेरी भावनाएं क्यों प्रभावित हो गईं? अब नियंत्रण का दौर शुरू हो गया है। जो है उसे जस का तस स्वीकार करना चाहिए। यही सृष्टि का नियम है। जहां तहां भावनात्मक लगाव हमारे लिए बाधा की तरह है। भावनात्मक परिस्थितियों का विवेक के साथ सामना करना होता है। मैंने फैसला किया है कि मैं ऐसा ही करूंगा।
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