विनय बिहारी सिंह
भगवत् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- जो मेरे बारे में या गीता में कहे गए मेरे वचनों को न सुनना चाहे, उससे इसके बारे में बिल्कुल मत कहना। सिर्फ उसी से कहना जो मेरे प्रति श्रद्धा और गहरी भक्ति से युक्त हो। इसीलिए जो ईश्वर की चर्चा को बोर करने वाला मानते हैं, या जो भगवत् चर्चा को समय की बरबादी कहते हैं, उनसे इसकी भूल कर भी चर्चा नहीं करनी चाहिए। जिसने यह संसार बनाया है, जो हमारा सर्वस्व है- उसकी चर्चा न करें तो किसकी करें? हम एक एक सांस भगवान की कृपा से ही ले रहे हैं। आपको पीड़ित लोगों को देखना है तो किसी अस्पताल में चले जाइए। देखिए वहां कैसे लोग तड़प रहे हैं। तब पता चलेगा कि मनुष्य शरीर सिर्फ खाने, पीने और मौज उड़ाने के लिए ही नहीं मिला है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि मनुष्य भगवान से प्रेम करना सीखे। उनसे करीबी बनाए। त्वमेव माता, च पिता त्वमेव.....। ..... त्वमेव सर्वं मम देव देव। हे प्रभु, तुम्हीं सब कुछ हो। मेरा मन, मेरा शरीर और मेरी आत्मा सब कुछ तुम्हारी है। इसे ले लो। इस भाव से जो रहता है वह बीमार भी हो जाए तो मस्ती में ही रहता है, आनंद में ही रहता है। लेकिन जिसके लिए शरीर ही सब कुछ है, वह शरीर कष्ट भोगता रहता है।
1 comment:
बिल्कुल सटीक बात कही है।
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