विनय बिहारी सिंह
हमारा नया कार्यालय नई जगह पर आ गया है। नेशनल हाईवे- छह पर। कोना एक्सप्रेस वे के पास। यह पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में पड़ता है। शाम को जलपान की जरूरत महसूस हुई। बाहर निकला तो झोपड़ीनुमा दुकानें दिखीं। वहां गया तो पता चला जलपान में समोसा, कचौड़ी, बैगुन भाजा (बैंगन को लंबाई में पतला- पतला काट कर तरल बेसन में डुबा कर तला जाने वाला खाद्य) मिल रहा है। तली- भुनी चीजों के प्रति विरक्ति के कारण कुछ न खा कर लौट रहा था कि एक मिठाई की दुकान दिखी। सोचा छेने की मिठाई ही खा कर भूख पर काबू किया जाए। छेना प्योर होता है, उसमें घी- तेल नहीं होता। वहां गया तो देखा कि बंगाल की प्रसिद्ध मिठाई काचागोला (छेने से बनी) है। इसमें हल्की मिठास होती है, इसलिए उसे खा कर आजमाया। पर्याप्त मिठास थी। यह काचागोला की मिठास नहीं है। काचागोला तो हल्की मिठास वाला होता है। इसलिए सोचा कि घर से ही कोई जलपान लाया करेंगे।
कई बार सोच कर आश्चर्य होता है। क्या अपने भारत में जलपान के नाम पर अब समोसे और अन्य तली- भुनी चीजें ही मिला करेंगी? क्या बिना घी- तेल वाले हल्के- फुल्के, सुपाच्य जलपानों का अभाव ही रहेगा? दफ्तर में चाय और काफी की आटोमेटिक मशीन लगी है। हम सब वहां जाकर मनपसंद पेय ले सकते हैं। लेकिन अभी खाने का या जलपान का कोई इंतजाम नहीं हो पाया है। अब सोच रहा हूं। सुबह कार्यालय के लिए निकलते वक्त शाम के लिए कौन सा जलपान ले कर आऊं? अब तक कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया। स्लाइस्ड ब्रेड में तो मैदा होता है जो पेट के लिए ठीक नहीं होता। फल काट कर शाम तक रखना ठीक नहीं होगा। तो फिर क्या विकल्प है? शायद जल्दी ही कुछ समझ में आ जाएगा।
1 comment:
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Naye kaaryalaya nayee khushi aur pareshani...badi asamjas bhari esthti hai..
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