विनय बिहारी सिंह
दुनिया की सभी धार्मिक पुस्तकों में उल्लेख है- किसी से घृणा न करें। क्यों? घृणा करने से हमारे भीतर जो रसायन बनते हैं, उसका हमारे शरीर, मन पर बहुत खराब असर पड़ता है। हमारा तंत्रिका तंत्र या नर्वस सिस्टम दूषित हो जाता है। हम जिससे घृणा करते हैं उसका नुकसान नहीं होता, सबसे पहले हमारा ही नुकसान होता है। दूसरा नुकसान यह है कि घृणा से घृणा का जन्म होता है और प्रेम से प्रेम का। घृणा नकारात्मक भाव है। ठीक जैसे क्रोध, ईर्ष्या और द्वेष से हमारा नुकसान होता है। हमारा मन दूषित होता है, शरीर दूषित होता है। ऋषियों ने कहा है- यदि आप घृणा को बढावा देंगे तो आप भी घृणा के शिकार होंगे। आपके भीतर उठने वाली घृणा की तरंगें या वाइब्रेशंस लौट कर आपके पास आती हैं और लोग भी आपसे घृणा करने लगते हैं। भले वे मुंह पर न कहें लेकिन उनके मन में घृणा भाव रहता है। यह भगवान का नियम है, प्रकृति का नियम है। आप गौर से देखिए जिस व्यक्ति ने जीवन भर लोगों से किसी न किसी कारण से नफरत की है, अंत में लोग भी उससे नफरत करने लगते हैं। कोई उससे बात करना नहीं चाहता। महापुरुषों ने कहा है- जैसे ही घृणा भाव आपके अंदर आए, उसे निकाल बाहर फेंकिए। शुरू में यह मुश्किल लग सकता है, लेकिन अभ्यास पक्का होते ही यह आसान हो जाता है।
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