विनय बिहारी सिंह
एक भक्त ने कहा है- प्रभु, मेरे श्वासों में तो आप ही हैं। आप ही मेरी श्वास हैं। आप जिस क्षण चाहें इसे बंद कर सकते हैं। एक दिन एक अन्य भक्त ने पूछा- श्वांस है तो जीवन है। मरने के बाद श्वांस की जरूरत है क्या? तो फेफड़ा कहां होता है सूक्ष्म शरीर में? इस पर एक संत ने उत्तर दिया- मरने के बाद आपका शरीर प्रकाश और चेतना का हो जाता है। इसे ही सूक्ष्म शरीर कहते हैं। इसमें श्वांस का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। आपकी चेतना श्वांस नहीं लेती। आपका शरीर श्वांस लेता है। अनेक यौगिक क्रियाएं हैं जिनमें सिद्ध हो जाने पर श्वांस की जरूरत नहीं पड़ती। जीवित अवस्था में ही मनुष्य उन क्रियाओं से कुछ देर के लिए या कुछ घंटों के लिए श्वांस रहित हो जाता है। उस समय प्रभु आपकी चेतना में रहेंगे तो फिर आपके आनंद की सीमा नहीं रहेगी। इसीलिए भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- मरते समय मनुष्य जो कुछ भी सोचता है, अगले जन्म में वही बनता है। इसीलिए हे अर्जुन मनुष्य को चाहिए कि वह सदा ईश्वर की शरण में रहे। इस तरह वह मरते समय ईश्वर को स्मरण करता रहेगा। ईश्वर उसकी चेतना में मजबूती के साथ हमेशा के लिए बैठे रहेंगे। मरने के बाद वह ईश्वर के धाम चला जाएगा और उनके साथ आनंद मनाएगा। यदि उसे फिर से जन्म लेना पड़ेगा तो वह उच्च कोटि के योगियों के परिवार में जन्म लेगा। और पहले जन्म में अर्जित साधना से आगे बढ़ने लगेगा। गीता का यह संदेश हमें बहुत ताकत देता है। मनोबल देता है। ईश्वर भक्त इसीलिए प्रसन्न रहते हैं।
2 comments:
बहुत सुन्दर ! "अंत मति सो गति" ! जय श्रीराम ।
बहुत सुन्दर उदाहरण देकर समझाया।
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