विनय बिहारी सिंह
ऋषियों ने कहा है- भगवान का दरवाजा चरम भक्तिभाव से खटखटाइए। वह खुलेगा। यदि आपको लगता है कि भगवान आपके करीब नहीं हैं तो उनके लिए गहरी प्रार्थना कीजिए। उन्हें हृदय से पुकारते रहिए- प्रभु, आपको मैं महसूस नहीं कर पा रहा हूं। कृपया मेरी ग्रहणशीलता का विस्तार कीजिए। मुझे अपने होने का अनुभव कराइए। हालांकि मैं जानता हूं आप सदा मेरे साथ हैं। लेकिन यह मैं महसूस भी करना चाहता हूं। एक ईसाई संत थे- ब्रदर लारेंस। उनकी बातों को गीता प्रेस ने हिंदी में छापा है। ब्रदर लारेंस ने कहा है- मैं प्रभु से अलग हो ही नहीं सकता। इसलिए जब भी मुझे लगता था कि मैं प्रभु को महसूस नहीं कर पा रहा हूं, गहरी प्रार्थना करने लगता। यह मेरी आदत सी बन गई जिससे मुझे बहुत लाभ हुआ।
संत कबीरदास ने लिखा है- जिभ्या ते छाला परा, राम पुकारि, पुकारि।।
इस पंक्ति से लगता है कि भगवान सहज ही नहीं आते। वे चाहते हैं कि भक्त उनसे लगातार बातें करे। और अगर वे ऐसा चाहते हैं तो बुरा क्या है। वे हमारे माता हैं, पिता हैं। वे तो चाहेंगे ही कि हम उनसे बातें करें। उन्हें प्रकट होने के लिए कहें। इसीलिए तो वे छुपे रहते हैं। ऋषियों ने कहा है- जब आप इंद्रिय, मन और बुद्धि के परे जाएंगे तो भगवान को महसूस करेंगे। जब हम रात को सोते हैं तो शरीर का होश नहीं रहता। यह भी होश नहीं रहता कि हम कहां सोए हैं। बेसुध हो कर सोते हैं हम। ठीक उसी तरह जब हम अपनी आंखें बंद कर ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो एक समय आएगा कि हम उन्हें महसूस करने लगेंगे।
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