विनय बिहारी सिंह
हम सभी गहरा प्रेम पाने को इच्छुक हैं। लेकिन वह मिल नहीं रहा है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि इस दुनिया में प्रेम तो मिलेगा ही नहीं। क्योंकि असली प्रेम के स्रोत तो भगवान हैं। उन्हीं के यहां असली प्रेम का भंडार है। जब भंडार वहां है तो इस दुनिया में प्रेम कहां से मिलेगा? यह कितने आश्चर्य की बात है कि जहां प्रेम है वहां हम ढूंढ़ते नहीं हैं। और जहां नहीं है, वहां ढूंढते हैं। इस पर एक बहुत रोचक कथा है। एक आदमी की थाली खो गई थी। थाली कमरे में थी। बहुत खोजा नहीं मिली। तब वह सड़क पर आ गया और किनारे रखे घड़े में खोजने लगा। उसका परिचित एक आदमी वहां से गुजर रहा था। उसने कहा- क्या खोज रहे हो? जवाब मिला- मेरी थाली खो गई है। वही खोज रहा हूं। उस आदमी ने पूछा- थाली कहां रखी थी। उसने कहा- कमरे में। रास्ते से गुजर रहे आदमी ने हंसते हुए कहा- तो कमरे में ही जाकर खोजो। वहीं मिल जाएगी। और घड़े में थाली कहां से जाएगी? उस आदमी ने दुबारा कमरे में अपनी थाली खोजी। वह मिल गई। दरअसल उस आदमी ने थाली मांज कर अखबार से उसे ढंक दिया था। वह अपने भुलने की आदत पर हंसने लगा। थाली मिल गई थी। वह आनंद में था। इसी तरह हमारा आनंद भगवान के पास छुपा है। लेकिन हम उसे संसार में खोज रहे हैं। कभी प्रेमी या प्रेमिका में, तो कभी मां या पिता में, कभी पत्नी या पति में, कभी दोस्त- मित्रों में, कभी बेटे- बेटी या रिश्तेदारों में या कभी अनजान लोगों में। लेकिन प्रेम वहां हो तो मिलेगा। प्रेम का भंडार तो भगवान के पास है।
कल एक मित्र ने कहा- मुझे असली प्रेम भगवान शिव में मिलता है। वे सदा मुस्कराते रहते हैं। गहरे ध्यान में डूब कर उन्हें जो आनंद मिलता है शायद उसी से मुस्कराते होंगे। शिव जी का हाथ सदा आशीर्वाद की मुद्रा में रहता है।
मुझे उनकी बात सुन कर अच्छा लगा।
1 comment:
हमेशा की तरह प्रेरणादायक पोस्ट।
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