Monday, March 1, 2010

हम भगवान पर कैसे आश्रित हैं?


विनय बिहारी सिंह



कल एक साधु से एक व्यक्ति ने पूछा कि आखिर हम भगवान पर कैसे आश्रित हैं? साधु ने उनसे पूछा- आपने सर्कस देखा है? व्यक्ति ने कहा- हां। साधु ने कहा- उसमें एक बार एक खेल दिखाया जा रहा था- एक लंबा पोल एक आदमी पकड़े हुए था। उस पोल के ऊपरी सिरे पर एक अन्य युवक तरह तरह के खेल दिखा रहा था। दर्शक उसके करतब पर खूब तालियां बजा रहे थे। करतब दिखाने वाले को अहंकार हो गया। तब नीचे जिस युवक ने पोल पकड़ रखा था, उसे लगा कि अरे, पोल तो मैंने पकड़ रखा है और तालियां इसे मिल रही हैं। पोल पकड़ने वाले युवक को एक मजाक सूझा। उसने पोल को हल्का सा हिला दिया। ऊपर करतब दिखा रहे युवक को अब समझ में आया- अरे, मेरा आधार तो नीचे वाले युवक के पास है। बस उसका अहंकार क्षण भर में दूर हो गया। ठीक इसी तरह हमारा पोल ईश्वर के नियंत्रण में है। यह बिल्कुल सच है कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। करने वाला वही है। हम तो कठपुतली हैं। हमारे जीवन की छोटी से छोटी घटना भी कोई न कोई अर्थ रखती है। ऋषियों ने कहा है कि आप खुद को शरीर मान लेंगे तो कष्ट होगा ही। आप शरीर नहीं हैं। आप सच्चिदानंद आत्मा हैं। अपने सोच के ढर्रे को बदलिए। लेकिन हम लोग फिर अपने उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ते हैं। अभी ध्यान में बैठे हैं और अभी दिमाग हजार दिशाओं में दौड़ने लगा। हमारे नहीं चाहते हुए भी दिमाग कैसे फालतू जगहों पर चला जाता है? कैसे वाहियात बातें सोचने लगता है? इसका उत्तर है- हमने अब तक दिमाग को छुट्टा छोड़ दिया था। उस पर हमने कभी नियंत्रण ही नहीं रखा था। अब जब नियंत्रण में रख रहे हैं तो वह अपने पुराने रास्ते की तरफ जबर्दस्ती चला जा रहा है। दिमाग की आदत बदलने के लिए पुरानी दृढ़ हो चुकी आदत को बदल देना पड़ेगा जो आसान नहीं है। लेकिन हां, बहुत मुश्किल भी नहीं है। अगर हमें सार्थक जीवन जीना है। तनाव रहित जीवन जीना है तो हमें अपने दिमाग को भगवान की तरफ मोड़ना ही पड़ेगा। अन्यथा कोई चारा नहीं है। जब तक हम अपने तक सीमित रहेंगे, हमें कष्ट मिलता रहेगा। लेकिन जैसे ही हम ईश्वर से जुड़ जाएंगे, उनकी अनंत धारा हमारे भीतर बहने लगेगी। तब हम शांति का अनुभव करेंगे।

6 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कार्य वाकई दुष्कर है.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बात तो आपकी सोलहो आने सही है पर आदमी को ये सब याद कहां रहता है.
(इसका पोल को तो हर रोज़ कई बार हिलाए जाने की ज़रूरत रहती है)

Anonymous said...

आपको सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!

Unknown said...

yah holi aapke jeewan me khushion ke rang bhar de.

Udan Tashtari said...

बढ़िया सदविचार!!आभार!!



ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’

समयचक्र said...

अच्छे विचार ....बढ़िया प्रस्तुति
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.