Friday, March 12, 2010

हमारा जन्म हुआ है ईश्वर को जानने के लिए

विनय बिहारी सिंह



हमारा जन्म क्यों हुआ है। ज्यादातर लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है। परमहंस योगानंद और रामकृष्ण परमहंस ने बार बार कहा है कि हमारा जन्म ईश्वर को जानने के लिए हुआ है। मनुष्य सबसे विकसित प्राणी है। उसका जन्म इसलिए नहीं हुआ है कि वह पैदा हो और बड़ा होकर हजार हजार महत्वाकांक्षाएं पाले। फिर बूढ़ा हो और अनंत अधूरी इच्छाएं लिए हुए ही मर जाए। फिर उन्हीं इच्छाओं के कारण जन्म हो और इस तरह हम बार बार इस संसार के कष्टों को झेलें। हमारा जन्म तो इसलिए हुआ है कि हम इस संसार से सबक लेते हुए जानें कि हमारा जन्मदाता ईश्वर है और उसके बिना सबकुछ अधूरा है। उसके बिना हम कोई भी आनंद नहीं ले सकते। संसार के छोटे छोटे आनंद ईश्वरीय आनंद के सामने फीके हैं। इंद्रियों से जो सुख मिलता है वह तो और भी फीका है। मान लीजिए आपने खूब स्वादिष्ट भोजन किया। खाते हुए आपको चरम आनंद आया लेकिन भोजन के एक- दो घंटे बाद आपका वह स्वाद गायब हो जाता है। और मान लीजिए लगातार तीन दिन तक वही स्वादिष्ट भोजन आपने किया। एक ही भोजन बार बार किया। तब आपको जो भोजन पहले दिन अत्यंत सुखकर लगा वही बाद में उबाऊ लगने लगेगा। यही मनुष्य का स्वभाव है। उसे हर रोज नई और स्वादिष्ट चीजें चाहिए। और इस इच्छा का अंत भी नहीं है। न इस जीभ की इच्छाओं का अंत है और न ही भोजन के प्रति ललक का। इसीलिए ऋषियों ने कहा है कि जीभ पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए। और जीभ पर ही नहीं हर इंद्रिय पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए। ये इंद्रियां ही हमें गुलाम बनाती हैं। मन इन्हीं इंद्रियों के माध्यम से हमें नाच नचाता है।? इसीलिए संतों ने कहा है कि हमें आत्मनियंत्रण का सहारा लेना चाहिए। सेल्फ कंट्रोल। यानी आप ही अपने भाग्य विधाता हैं। सेल्फ कंट्रोल है तो हर चीज आपके नियंत्रण में है लेकिन अगर सेल्फ कंट्रोल नहीं है तो आप उस आदत या इंद्रिय के गुलाम हो गए हैं। गुलामी अच्छी स्थिति नहीं है। संतों ने कहा है कि हमें मन और शरीर दोनों पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसके लिए एक प्रयोग उन्होंने बताया है। जो काम आपको लगे कि बहुत कठिन है उसे आप करिए। जैसे अगर आपको लगे कि चाय छोड़ना बहुत कठिन है। तो आप एक दिन बिना चाय के रहिए। बस आपका सेल्फ कंट्रोल मजबूत होना शुरू हो जाएगा। सिगरेट छोड़ना मुश्किल लग रहा है तो उसे ही छोड़ कर दिखा दीजिए कि आपके दिमाग पर आपका नियंत्रण है। आपका कंट्रोल है। इस तरह हम धीरे धीरे ईश्वर के करीब पहुंचते हैं। हमारा जन्म ही ईश्वर को जानने के लिए हुआ है। मन इधर उधर भटकता है तो इससे हमारा नुकसान होता है। मन को पकड़ कर ईश्वर के चरणों में लगाना ही सबसे अच्छी कला है। ईश्वर प्रेम के अवतार हैं। हम सबको प्रेम चाहिए। लेकिन यह दिव्य प्रेम हममें से कितनों को नसीब होता है। बहुत कम लोगों को। मनुष्य का प्रेम तो स्वार्थी होता है। एकमात्र ईश्वर का प्रेम ही निःस्वार्थ होता है। वे हमें हमेशा प्रेम करते हैं और हमारे प्रेम की प्रतीक्षा करते रहते हैं। ऐसा प्रिय पाकर भी हम ईश्वर को भूले रहते हैं।

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