आइने में बार- बार अपना चेहरा देखना
विनय बिहारी सिंह
एक आदमी हमेशा रास्ते के किनारे पड़ा रहता है। दाढ़ी बढ़ी हुई, कपड़े बहुत ही गंदे और जो मिल जाए खा लेने आदत। मन हमेशा बाहर की ओर। आज देखा वह कहीं से आइना पा गया है। फ्रेम रहित आइना। वह लगातार दस मिनट से अपना चेहरा देख रहा था। उसे यह भी नहीं पता कि उसके आसपास कोई खड़ा होकर देख रहा है। यूं तो उसका चेहरा अत्यंत अनाकर्षक और गंदगी से भरा हुआ है। लेकिन उसे अपना चेहरा बेहद आकर्षक लग रहा है। वह मुग्ध भाव से अपना चेहरा देख रहा है। वहां से अपने दफ्तर आया तो एक और इसी तरह के व्यक्ति को बार- बार बाथरूम के शीशे में चेहरा देख रहा था। पांच मिनट तक यह व्यक्ति अपना चेहरा देखते हुए मुग्ध था। मैंने देखा वह व्यक्ति एक बार नहीं कई बार अपना चेहरा देखने के लिए बाथरूम के बड़े शीशे के सामने जा कर खड़ा हो जाता है। अपने चेहरे के प्रति इतनी आत्ममुग्धता? मैंने ऐसे व्यक्तियों को भी देखा है जो दिन में एक बार कंघी करते हैं और फिर कभी कंघी की तरफ देखते भी नहीं। बहुत हुआ तो एकाध बार वे उंगलियों से ही बाल संवार लेते हैं। कुछ लोग बिना शीशा देखे बार- बार कंघी करते हैं ताकि सिर के बाल बेतरतीब न हों। चलिए इसमें आत्ममुग्धता नहीं है। यह एक किस्म की सतर्कता है। मन में आता है कि शायद बाल बिखर गए हैं, उन्हें ठीक कर लिया जाए। लेकिन जो आइने में बिना चेहरा देखे बेचैन रहते हैं, उन्हें एक बार फिर सोचने की जरूरत है। चेहरा तो पूरे दिन वही रहता है। बस इतना ख्याल रहे कि चेहरा साफ रहे। बाकी ईश्वर ने हमारे चेहरे का जैसा गठन कर दिया है, वह श्रेष्ठ है। उसी से हमें खुश रहना चाहिए। हां, महिलाओं में जो चेहरे की देखभाल करने की अभ्यस्त हैं, उनकी बात अलग है। वे अगर दिन में सुबह शाम आधे घंटे का समय लेती हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। अगर हमारा ध्यान ईश्वर की ओर है तो समूची चेतना ईश्वर की तरफ होनी चाहिए। ईश्वर ही तो हमारे सब कुछ हैं। उनके बिना क्या हमारा कोई काम चल सकता है? अगर वे हमारी चेतना के केंद्र में रहेंगे तो अन्य किसी चीज के प्रति आकर्षण या आसक्ति होगी ही नहीं। हां, चेहरे की देखभाल करनी जरूरी है। रोज दाढ़ी बनाना, मुंह धोना वगैरह अत्यंत जरूरी है। लेकिन इसे लेकर अति नहीं करनी चाहिए। एक बार आपने दाढ़ी बना ली, चेहरा धो कर आफ्टर शेव लोशन लगा लिया या क्रीम इत्यादि लगा लिया तो बस हो गया। इस काम में १० मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा। लेकिन चेहरे पर ही पूरे दिन केंद्रित रहने के बजाय अपनी चेतना के केंद्र में ईश्वर को रखने से ज्यादा लाभ मिलेगा। ज्यादा शांति मिलेगी। सफाई और शौक बुरे नहीं हैं। लेकिन इनकी अति बुरी है। अपने शौक को तिलांजलि मत दीजिए लेकिन उसकी अति भी मत कीजिए। इससे एक तो हमारा दिमाग उधर ही केंद्रित रहता है औऱ दूसरे इस पर अधिक समय नष्ट होता है। हमारे जीवन का एक एक पल कीमती है। क्यों न उसका सदुपयोग करें?
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