Friday, March 19, 2010

व्यास ऋषि और गोपियां


  1. विनय बिहारी सिंह


  2. जब भगवान कृष्ण कुछ दिनों के लिए मथुरा में रह रहे थे तो वृंदावन की गोपियां यमुना नदी पार कर उन्हें दूध, मक्खन और विभिन्न प्रकार की मिठाइयां खिलाती थीं। यह उनका रोज का क्रम था। वृंदावन में ही ऋषि व्यास जी रहते थे। उनका आश्रम यमुना के किनारे ही था। एक दिन यमुना में बहुत बाढ़ आई हुई थी। गोपियों के लिए उस पार जाना बहुत मुश्किल था। गोपियां व्यास जी के पास गईं और कहा कि वे कुछ उपाय करें ताकि उफनती यमुना के पार जाया जा सके। व्यास जी ने पूछा- उस पार क्यों जाना चाहती हो? गोपियों ने कहा- आप तो जानते ही हैं कि भगवान कृष्ण के लिए हम लोग रोज उस पार जलपान ले जाती हैं। व्यास जी ने पूछा- भगवान के लिए क्या ले जा रही हो? गोपियों ने सारे व्यंजन दिखाए। व्यास जी ने कहा- वाह, कृष्ण भगवान के लिए इतना कुछ और मेरे लिए कुछ नहीं? तब मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं? मैं उस पार जाने की व्यवस्था कर दूंगा, लेकिन इस जलपान में से मुझे भी देना पड़ेगा। गोपियां क्या करतीं। एक श्रेष्ठ ऋषि जलपान मांग रहे हैं। सबने अपनी थालियों में से व्यास जी के लिए हिस्सा निकाला और उनके सामने परोस दिया। व्यास ने बड़े चाव से जलपान किया। फिर और जलपान मांगा। गोपियां मन ही मन सोच रही थीं कि सारा जलपान व्यास जी ही ले लेंगे तो कृष्ण भगवान क्या खाएंगे। लेकिन थोड़ा सा और देने से व्यास जी संतुष्ट हो गए। फिर वे सारी गोपियों को लेकर यमुना जी के किनारे आए और कहा- हे यमुना नदी, अगर मैं आज कुछ नहीं खाया है तो तुम इन गोपियों को उस पार जाने के लिए रास्ता दे दो। यमुना नदी दो हिस्से में बंट गई और बीच में सूखा सा रास्ता बन गया। दोनों तरफ पानी की दीवार और बीच में चौड़ा सा सूखा रास्ता। गोपियां आराम से उस पार गईँ। देखा कि वहां कृष्ण भगवान सोए हुए हैं। उन्हें गोपियों ने जगाया। लेकिन भगवान कृष्ण ने नाश्ते में कोई रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि आज वे नाश्ता नहीं करेंगे। गोपियों ने इसका कारण पूछा। भगवान ने कहा- उस पार यमुना के किनारे ऋषि व्यास जी हैं। उन्होंने तुम्हारा यह जलपान मुझे ही समर्पित किया। वे स्वयं तो नाश्ता कर नहीं रहे थे। सारा जलपान मुझे समर्पित कर रहे थे। वह तो मेरे पेट में जा रहा था। अब मेरा पेट भर गया है। फिर दुबारा नाश्ता कैसे करूं। अब गोपियों की समझ में आया। व्यास मुनि ने क्यों यमुना जी से कहा- अगर मैंने कुछ नहीं खाया तो हे यमुना तुम दो भाग में बंट जाओ। और यमुना नदी दो भागों में बंट गई। इसका अर्थ है सच्चे हृदय और अनन्य भक्ति से भगवान को स्मरण कर किया हुआ कोई भी सात्विक काम भगवान की कृपा के दायरे में आ जाता है। वह काम भगवान का ही हो जाता है।

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