Thursday, March 25, 2010

इस संसार में दो में से एक को अपनाना है


विनय बिहारी सिंह




ऋषियों ने कहा है कि इस सृष्टि में जीव के सामने दो रास्ते हैं। एक रास्ता भगवान की ओर जाता है और दूसरा माया या शैतान की ओर। मन हमेशा से माया की तरफ चलने का आदी है। इसलिए जब आप भगवान की ओर जाएंगे तो मन बार- बार शैतान या माया की तरफ खींचेगा। उसे तो जन्म- जन्मांतर से आदत है कि वह माया में फंसा रहे। इंद्रिय सुख में फंसा रहे। उसे भगवान की तरफ जाना बहुत कठिन और बेकार लगेगा। मन आपको ही समझाने लगेगा कि देखो माया में कितना आनंद है। भगवान तो फालतू चीज है। उसे तो आपने देखा नहीं है। फिर क्यों उसकी साधना करना। आओ और देखो कि माया के जाल में कितना आनंद है। इंद्रियों को तुष्ट करने में कितना आनंद है। लेकिन जो चालाक व्यक्ति है वह मन के इस तर्क को सुनेगा ही नहीं। वह मन को खारिज कर देगा और सच्चाई को स्वीकार करेगा। धीरे- धीरे उसकी समझ में आएगा कि भरोसा करने लायक तो भगवान ही हैं। माया तो धोखा देने वाली ताकत है। इंद्रियां भी आपको धोखा देती हैं। संसार में अनेक लोग आपको धोखा देते हैं। लेकिन जो शक्ति आपको प्रेम करती है और जिस आप आंख बंद कर विश्वास कर सकते हैं, वह हैं भगवान। वे हमारे हैं और हम उनके हैं। तो क्यों न भगवान के रास्ते पर चलें। तो इस तरह जीव के सामने जो दो रास्ते हैं उनमें से एक हमें नष्ट करने के लिए है और दूसरा हमें सच्चा आनंद देने के लिए है। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि जो माया या शैतान का रास्ता है उसी में आनंद ज्यादा मिलने का भ्रम होता है। वह आनंद जहरीला है। वह मीठा जहर है। वह हमें व्यसनों में फंसाता है। इंद्रिय सुख में फंसाता है। दूसरा रास्ता जो सच्चा रास्ता है, उसमें पहले नीरसता लगेगी। तरह तरह के भ्रम आएंगे। शंकाएं आएंगी। संशय होगा। लेकिन गीता में कहा गया है न कि संशयात्मा विनश्यति। संशय से अपना ही नुकसान होता है। पातंजलि योग सूत्र में कहा गया है कि संशय भी साधना के मार्ग में बाधा है। अरे, जब आपको पता है कि सब कुछ भगवान ही हैं। यह समूची सृष्टि भगवान की है। आप भगवान के हैं। तो फिर संशय किस बात का। जिस भगवान को पाने के लिए गौतम बुद्ध ने बहुत बड़े साम्राज्य का राज पद छोड़ दिया। अत्यंत सुंदर स्त्री और पुत्र छोड़ दिया, उसके प्रति शंका कैसी? भगवान ही सबकुछ हैं। बाकी कोई आपका साथ नहीं देगा। तो क्यों नहीं उसके प्रति आसक्ति पैदा करें। हां, भगवान के प्रति आसक्ति पैदा करना शुरू में कठिन लगेगा। लेकिन धीरे धीरे आप इसके अभ्यस्त हो जाएंगे। तब पता चलेगा और महसूस होने लगेगा कि हमें तो पहले ही ईश्वर की शरण में जाना चाहिए था। कितनी देर कर दी। अब भी समय है। आज से ही ईश्वर के प्रति शरणागति हो जाए तो बस काम बन जाएगा।

1 comment:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

सर जी सही उपदेश .......
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यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....