Monday, March 1, 2010

मां भगवती और रात्रि जागरण

विनय बिहारी सिंह


एक तो भगवती जागरण यह है कि मां भगवती या दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है और पूजा पाठ के बाद किसी गायक मंडली को बुलाया जाता है और रात भर जोर जोर से माता के भजन होते हैं और नृत्य इत्यादि होते हैं। यह हुआ भौतिक जागरण। लेकिन असली रात्रि जागरण का अर्थ और गहरा है। रात्रि का अर्थ है अंधकार। यानी हमारे भीतर का अंधकार। इसी अंधकार को दूर करने के लिए जागरण। यानी हमारी चेतना में मां भगवती के प्रति जागृति पैदा हो। हम समझें कि हमारा स्रोत क्या है। हम इस दुनिया में क्यों आए। हम बच्चे से बड़े हों, यानी जवान हों फिर शादी करें और बच्चे पैदा हों। इसके बाद बूढ़े हों और फिर मर जाएं। इसके लिए तो हम इस दुनिया में नहीं आए। तो क्यों आए हैं यह सोचना पड़ेगा। निश्चित रूप से ईश्वर ने हमें एक और मौका दिया है कि हम समझ सकें कि हमारा गहरा रिश्ता सिर्फ और सिर्फ ईश्वर से ही है। बाकी सारे रिश्ते नाते अस्थाई हैं। अस्थाई इसलिए क्योंकि हम सबको एक न एक दिन मरना ही है। तब ये रिश्ते नाते अपने आप टूट जाएंगे। लेकिन हमारे शरीर में प्राण रहे या नहीं हमारी आत्मा तो हमेशा से ईश्वर से जुड़ी हुई है। यह अलग बात है कि हम नहीं समझ रहे हैं। लेकिन सच यही है। तो अग्यान के अंधकार को दूर करने के लिए मां भगवती की प्रार्थना को मां भगवती का जागरण कहते हैं। लेकिन इस प्रार्थना को कोई सुन नहीं पाता। यह प्रार्थना भीतर ही भीतर चलती है। यही है रात्रि जागरण। लेकिन हम सोचते हैं कि रात भर खूब जोर जोर से गीत संगीत के भरोसे जाग लेने को ही रात्रि जागरण कहते हैं। एक औऱ अर्थ है। कई साधक मां भगवती का ध्यान पूरी रात करते हैं। यह काम भी चुपचाप होता है। वे मां भगवती या काली के चित्र के सामने दिया जला लेते हैं और गहरे ध्यान में उतर जाते हैं। पूरी रात वे माता का ध्यान करते हैं। उस रात वे खाना नहीं खाते। सिर्फ दो केला और दूध का सेवन कर वे रात्रि जागरण के लिए बैठते हैं। इससे उनका शरीर भी हल्का रहता है और उनका ध्यान भी अच्छा होता है।

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