Wednesday, March 24, 2010

ब्रह्मांड के सर्वाधिक सुंदर पुरुष


विनय बिहारी सिंह



ऋषियों ने कहा है कि कौशल्या के पेट से राजा दशरथ का जो पुत्र हुआ वह अनंत ब्रह्मांडों का स्वामी है। वह अजानबाहु (घुटने तक लंबे हाथ) है, कमल नयन है यानी आंखें अत्यंत मोहक हैं। होठ गुलाबी हैं और संपूर्ण शरीर मानों परम आकर्षक है। जो उन्हें देखता है, वह देखता ही रह जाता है। देखने वाल तृप्त नहीं होता। वे आंखों से ओझल होते हैं तो मन छटपटाने लगता है। किसी भक्त ने कहा है कि भगवान राम की देखभाल करने वाली नौकरानी कितनी भाग्यवान थी। तो दूसरे भक्त ने कहा है कि माता कौशल्या अगर राम जी की मां हैं तो उनकी देखभाल करने वाली नौकरानी भी उनसे कम भाग्यवान नहीं है। ज्यादातर तो वे नौकरानी के पास ही रहते थे। उनके नटखट हावभावों का आनंद नौकरानी लेती थी। निश्चय ही मां कौशल्या के आनंद से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन नौकरानी भी तो भाग्यवान ही थी। इस तरह अलग- अलग लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। भगवान राम के बाल घुंघराले हैं। उनका रंग सांवला सलोना यानी हल्का सा सांवला है। कैसा सांवला? मानो नीला मेघ हो। या नील कमल हो। एक संत से किसी ने पूछा कि क्या मनुष्य का रंग नील मेघ की तरह हो सकता है? तो उस संत ने उत्तर दिया- अगर मनुष्य के चेहरे पर तेज हो, चेहरा देदिप्यमान हो तो रंग अत्यंत मनोहारी लगता है। इसे ही नील मेघ कहा गया है। यह तो हुई साधारण मनुष्य की बात। अब भगवान राम पर आएं। भगवान राम के बारे में कहा जाता है कि लोग उनकी तरफ जितनी बार देखते थे, वे उन्हें उतना ही ज्यादा आकर्षक पाते थे। उनका चितवन, उनकी चाल, उनका हंसना और उनका बोलना इत्यादि अत्यंत मोहक था। अब आप पूछ सकते हैं कि बात तो आप भगवान राम की कर रहे हैं और वर्णन भौतिक कर रहे हैं। यह क्या है? मेरा विनम्र उत्तर यह है कि भगवान राम इस ब्रह्मांड के सर्वाधिक सुंदर पुरुष हैं और मां सीता इस ब्रह्मांड की सबसे सुंदर स्त्री। सौंदर्य के जितने भी विशेषण आज तक बने हैं, वे इन्हीं दोनों को देख कर बने हैं। और भविष्य में भी जितने विशेषण होंगे वे इनके सौंदर्य को लेकर ही होंगे। क्योंकि इनसे सुंदर न आज तक कोई हुआ है और न होगा। हां, भगवान कृष्ण भी तो राम के ही अवतार थे। इसलिए उनके सौंदर्य की तुलना भी किसी से नहीं हो सकती। ऋषि वल्लभाचार्य ने भगवान कृष्ण का दर्शन किया। यह जानकारी उनके शिष्यों को मिल गई। उन्होंने वल्लभाचार्य से पूछा कि भगवान देखने में कैसे थे? तो वल्लभाचार्य ने कहा- मधुराधिपते रखिलं मधुरं। उनका हर अंग, हर क्रिया कलाप ही मधुर है। वचनं मधुरं, अधरं मधुरं, नयनम मधुरं हृदयं मधुरं......। भजन लंबा है। तात्पर्य यह कि आप भगवान का दर्शन पा कर मधुरता से ओतप्रोत हो जाते हैं। जैसे कोई रंग से ओतप्रोत हो। या किसी नदी में स्नान करके कोई जल से ओतप्रोत रहता है। भक्त भी भगवान के दर्शन करके ईश्ववर तत्व से ओतप्रोत हो जाता है।

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