Monday, February 22, 2010

उधो मन नाहीं दस बीस

विनय बिहारी सिंह

कथा है कि वृंदावन से जब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए तो गोपियां उनकी अनुपस्थिति के कारण व्याकुल रहने लगीं। जब उनकी व्याकुलता चरम पर पहुंची तो श्रीकृष्ण ने उद्धव को गोपियों के पास भेजा ताकि वे उन्हें समझा- बुझा कर शांत रहने को कहें। यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि गोपियां पूर्व जन्म में ऋषि थीं। इन ऋषियों को भगवान कृष्ण के साथ लीला करने की इच्छा हुई तो उन्होंने प्रार्थना की कि अगले जन्म में वे गोपी बनना चाहते हैं ताकि भगवान के साथ वे रासलीला कर सकें। उनकी इच्छा पूरी हुई।.............. बात चल रही थी, गोपियों की व्याकुलता की। उद्धव परम विद्वान थे। उनके तर्क के सामने लोग घुटने टेक देते थे। इसलिए पूरे आत्मविश्वास के साथ वे गोपियों के पास गए और उन्हें समझाया कि कृष्ण भी तुम्हें हर पल याद करते हैं। लेकिन फिलहाल मथुरा में रहना उनके लिए बहुत जरूरी है। फिर उन्होंने मन की विभिन्न अवस्थाओं पर प्रवचन दिया और ग्यान की अनेक बातें कहीं। गोपियों ने कहा- उधो मन नाहीं दस बीस। एक हुतो सो गयो श्याम संग, को आराधे ईस।। यानी हे उद्धव, मन तो दस- बीस नहीं होता। एक ही होता है और वह श्याम यानी भगवान कृष्ण ले गए हैं। तो आप मन को लेकर जो प्रवचन दे रहे हैं, उसका कोई मतलब नहीं है। उद्धव जैसा विद्वान व्यक्ति निरुत्तर हो गया। फिर गोपियों ने प्रेम की वृहद व्याख्या की। जीवन में पहली बार उद्धव अवाक हो कर गोपियों का प्रवचन सुन रहे थे। गोपियों ने कहा कि कृष्ण के बिना उनके जीवन का कोई अर्थ ही नहीं है। कि अनन्य प्रेम का सुख आप क्या जानें। आप ग्यान की बात कह रहे हैं और हम प्रेम की बात करते हैं। अनन्य प्रेम से ही ग्यान मिलता है। इसके अलावा जो ग्यान है, वह निरर्थक है। जहां प्रेम है वहां बुद्धि मत लगाइए उद्धव। जिस दिव्य प्रेम को आप जानते नहीं, उस पर मत बोलिए। उद्धव को लगा कि उनका सारा ग्यान निरर्थक है। ग्यान तो गोपियों के पास है। गोपियों ने कहा- हमारे शरीर, हमारे मन और हमारी आत्मा कृष्ण के हवाले हो चुके हैं। फिर आप किसे समझाने आए हैं? कई बार तो लगता है कि हम और कृष्ण एक ही हैं। हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। जो हैं वे कृष्ण ही हैं। हमारा नाम भी कृष्ण ही है। सिर्फ कृष्ण, कृष्ण औऱ कृष्ण। गोपियों की बात सुन कर उद्धव भाव विभोर हो गए। उन्होंने एक एक गोपी के पैर छुए। चरण धूलि ली और वहां से प्रेम से सराबोर मथुरा लौटे और भगवान श्रीकृष्ण से कहा- मैं हार गया और गोपियां जीत गईँ। मैं उन्हें नहीं समझा सकता। भगवान ने कहा- यही महसूस कराने के लिए तो उद्धव मैंने आपको भेजा था। गोपियां दिव्य प्रेम में दिन- रात डूबी रहती हैं। उनके संपर्क में जो भी आएगा, वह भी सराबोर हो जाएगा। ये गोपियां मानों मेरा ही अंश हैं।

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