Wednesday, February 17, 2010

हम अपने बारे में कितना जानते हैं?

विनय बिहारी सिंह

हां यह बहुत ही रोचक तथ्य है। हम कई बार मान लेते हैं कि अमुक विषय की हमें बहुत जानकारी है। या कई चीजें हमारे कंट्रोल में हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। मसलन हम अपने शरीर के बारे में ही कितना जानते हैं? या हम अपने बारे में ही कितना जानते हैं? कई लोग अपने निर्भय होने की डींग खूब हांकते हैं। लेकिन अगर किसी सुनसान अंधेरे स्थान से गुजरना पड़े तो बस वे डर से सिकुड़े रहते हैं और कोई आवाज हुई नहीं कि बस उनका मानो हार्ट फेल हो गया। इसी तरह कुछ लोग ईमानदारी पर लंबा- चौड़ा भाषण देते हैं लेकिन वे ट्रेनों में बिना टिकट यात्रा कर खुश होते हैं। यह क्या है? क्या अनेक लोग दोहरा जीवन नहीं जीते? इसीलिए आदि शंकराचार्य ने कहा है- सोचिए कि यह दुनिया कैसे और क्यों बनी? ये चांद, सितारे और सूर्य कैसे बने। मनुष्य के जन्म का मकसद क्या है वगैरह वगैरह। हम जो भोजन करते हैं उसके पचने में हमारी तो कोई भूमिका होती नहीं। हमारा वश सिर्फ खाने में है। पचाने का काम हम नहीं करते। तो कौन करता है? ऋषियों ने कहा है कि भोजन पचाने और उससे पोषक तत्व निकालने का काम ईश्वर करता है। वह जीवों पर दयालु है। फिर भी हम न जाने कितने प्रपंचों में पड़े रहते हैं और समझते हैं कि सब कुछ हम्हीं कर रहे हैं। हमारे भोजन से जो रस बनता है उसे रक्त में मिला कर हमारे शरीर को कौन पौष्टिक बनाता है। या हमारे शरीर में जो इंडोक्राइन ग्लैंड्स हैं वे कैसे अपने हारमोन हमारे रक्त में स्रावित कर हमें स्वस्थ बनाए रखती हैं? क्या कभी हम यह सब सोचते हैं? आप कहेंगे कि इन सब बातों को सोच कर क्या होगा? क्या फायदा है? संपूर्ण प्रकृति और अपने शरीर को इससे तुलना करके समझ में आता है कि ईश्वर किस तरह हमारे ऊपर लगातार नजर रख रहे हैं। किस तरह वे हमारे शरीर को चला रहे हैं। लेकिन अगर हम प्राकृतिक कामों में जरा भी छेड़छाड़ करते हैं तो इसका बुरा परिणाम हमें भोगना पड़ता है। जैसे मान लीजिए मैंने लंबे समय तक खूब तेल- मसाले वाली चीजें खाईं। रोज घी- तेल में डूबी वस्तुएं खाईं और जब पेट या लीवर खराब हो गया तो भगवान को याद किया- हे भगवान मेरे ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है। मुझे बचाओ। स्वस्थ करो। लेकिन इसके लिए भी हमें परहेज करना पड़ेगा, दवा खानी पड़ेगी। ठीक इसी तरह अगर हमने साफ पानी नहीं पीया तो तरह तरह की पेट की बीमारियां घेर लेंगी और कई बार समझ ही नहीं पाते कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। इसलिए बहुत जरूरी है कि दुनिया जहान के बारे में जानने के पहले हम सबसे पहले अपने बारे में जानें। बस, ज्योंही अपने बारे में जानेंगे, ईश्वर की सत्ता महसूस करने लगेंगे। इसीलिए वह प्रसंग बार- बार याद आता है जब एक व्यक्ति ने एक ऋषि से पूछा- ईश्वर है, इसका प्रमाण क्या है? कई बार मुझे शक होता है कि ईश्वर जैसी कोई चीज है दुनिया में। ऋषि ने जवाब दिया- आप हैं? उस व्यक्ति ने पूछा- क्या मतलब? ऋषि ने पूछा- आपका अस्तित्व है? उस व्यक्ति ने जवाब दिया- बिल्कुल है। मैं हूं और आपसे बात कर रहा हूं। ऋषि ने पूछा- मुझसे बात करने की शक्ति आपको किसने दी? किसने इस लायक बनाया कि आप मुझसे प्रश्न कर सकें? प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति असमंजस में पड़ गया। ऋषि ने कहा- जिसने आपको जीवन दिया। सोचने समझने की ताकत दी। भोजन दिया और आपको सांस दी उसी का नाम ईश्वर है।

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