विनय बिहारी सिंह
एक संत ने कहा है- जैसे तालाब के पानी को चंचल कर दिया जाए तो चांद का अक्स या छाया उसमें दिखाई नहीं देगी ठीक उसी तरह अगर शीशा टूटा हुआ है तो उसमें आपका चेहरा टुकड़े- टुकड़े में दिखाई देगा। आपका चेहरा उसमें विकृत दिखेगा। हालांकि आपका चेहरा बिल्कुल ठीक है लेकिन टूटा शीशा उसे टेढ़ा- मेढ़ा दिखाएगा। ठीक उसी तरह अगर आपका दिमाग चंचल है और हृदय अपवित्र है तो आपको यकीन ही नहीं होगा कि ईश्वर है। क्योंकि दिमाग तो टूटा हुआ है। उसके शीशे में कोई भी तस्वीर विकृत हो कर ही दिखाई दे रही है। इसलिए भगवान भी विकृत ही दिखाई देगा। यानी वह कहेगा- भगवान- वगवान कुछ नहीं होता। अगर होता तो क्या दुनिया में इतने कष्ट होते? उसे यह समझ में नहीं आता कि ये कष्ट खुद उसके बुलाए हुए हैं। उसी के कर्मों का फल वह भोग रहा है। संतों ने तो कहा ही है, वेद और पुराणों में भी है कि मनुष्य अपने कर्मों का फल ही भोगता है। ईश्वर ने उसे स्वतंत्र इच्छा शक्ति दी है। वह इसके कारण जो जी में आता है करता है और फिर उसका फल भोगता है। जो संतुलित ढंग से जीवन यापन करते हैं वे दुख नहीं पाते। और जो ईश्वर की शरण में रहते हैं, उनका तो कहना ही क्या है। वे हमेशा ही आनंद में गोते लगाते रहते हैं। उन्हें किसी चीज से मतलब नहीं होता। वे तो बस एक ही बात जानते हैं- ईश्वर उनका है और वे ईश्वर के हैं। बस। काम बन गया। वे जो कुछ भी करते हैं- ईश्वर के लिए। गीता में इसी को कर्म योग का नाम दिया गया है। अपने जीवन के सारे काम ईश्वर को समर्पित करते चलो। लेकिन हां, बुरे काम ईश्वर को समर्पित न करें। सिर्फ अच्छे काम ही ईश्वर को अर्पित करें। अन्यथा जिन बुरे कर्मों को आप ईश्वर को समर्पित करेंगे वे हजार गुना बढ़ कर आपके पास लौट आएंगे। इसलिए अच्छे कर्म ही ईश्वर को सौंपिए। ताकि वे ही हजारगुना बढ़ कर आपके पास वापस आएं। कथा है कि भीम ने एक बार चाहा कि अनजाने में किए गए अपने बुरे कर्मों को वह भगवान कृष्ण को दे दे। लेकिन युधिष्ठिर ने ऐसा करने से मना किया और कहा- ऐसा मत करो भीम। कृष्ण को तुम जो भी सौंपोगे, वह हजारगुना हो कर तुम्हारे पास लौट आएगा। भीम ने अपने बड़े भाई की बात मान ली। युधिष्ठिर ने कहा- भीम, श्रीकृष्ण को तुम साधारण व्यक्ति मत समझो। वे लीला कर रहे हैं और इसके बहाने लोगों को संदेश भी दे रहे हैं। वे पूर्ण ईश्वर के रूप हैं। वे पूर्ण ब्रह्म हैं। शैव लोग भगवान शिव को पूर्ण ब्रह्म कहते हैं। यह भी कथा है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव का आदि- अंत पता करने की कोशिश की। लेकिन वे शिव जी का थाह नहीं पा सके। उन्होंने कहा- भगवान शिव अनंत हैं। उनका आदि और अंत कोई नहीं पा सकता।
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