विनय बिहारी सिंह
आइए, एक बार फिर रमण महर्षि को याद करें। वजह? जितनी बार उन्हें याद करेंगे, सुखद अनुभव होगा। शुरूआती दिनों में जब रमण महर्षि वीरूपाक्ष गुफा में साधना रत थे तो वहां भक्त जाते रहते थे। हर वक्त भक्तों की टोली वहां रहती ही थी। रमण महर्षि जब स्नान करने जाते थे तो उनके दर्शन हो जाते थे। भोजन इत्यादि तो दिन में एक बार ही करते थे या वह भी नहीं। भोजन उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं था। स्वाद की तो बात ही छोड़ दीजिए। एक बार कुछ भक्त इकट्ठे थे। रविवार का दिन था। तभी पास से शेर के दहाड़ने की आवाज आई। भक्त डर गए। वे जोर- जोर से अपने साथ ले गई थाली बजाने लगे, शोर करने लगे। दरअसल नजदीक के तालाब में शेर पानी पीने आया था। थोड़ी देर बाद शेर के दहाड़ने की आवाज फिर आई। जब भक्त देर तक थाली बजाते रहे तो रमण महर्षि ने कहा- तुम लोग डरते क्यों हो? किस बात का डर है। यह तो इन्हीं पशुओं का साम्राज्य है। हम तो इनके अतिथि हैं। वे हमें नुकसान नहीं पहुंचाते। वे बिल्कुल मित्र की तरह रहते हैं। देखो, जब शेर पानी पीने आता है तो मुझे बताता है- वह पानी पीने आ गया। फिर जब पानी पी लेता है तो कहता है- अब वह जा रहा है। दो बार दहाड़ कर अक्सर वह यही कहता है वह। तब भक्तों ने पूछा कि क्या यह सच है कि एक सांप आपके शरीर पर आ कर चढ़ जाता है और आपके शरीर पर रेंगना उसे अच्छा लगता है? रमण महर्षि ने कहा- हां, यह सच है। लेकिन अब वह सांप नहीं आता। वह जब मेंरे पैर पर चढ़ता था तो मुझे गुदगुदी लगती थी और मैं पैर खींच लेता था। लेकिन वह थोड़ी देर मेरे शरीर पर रेंग कर अपने आप चला जाता था। लेकिन अब उसने आना बंद कर दिया है। एक बार किसी भक्त से रमण महर्षि ने कहा था- यहां कई महान आत्माएं रहती हैं। वे विभिन्न रूपों में मुझसे मिलने आती हैं। रमण महर्षि अत्यंत मृदु स्वभाव के थे। वे हमेशा यही कहते थे- जब कभी तुम्हें किसी आध्यात्मिक बात में कनफ्यूजन हो, अपने आप से पूछो- मैं कौन हूं? इस प्रश्न को तलाशते हुए ही ईश्वर के करीब पहुंचा जा सकता है। रमण महर्षि एक मामूली कौपीन छोड़ कर कोई कपड़ा नहीं पहनते थे। कौपीन लंगोट जैसा होता है। वे वैराग्य के प्रतीक थे। वे किसी वस्तु से बंधे नहीं थे। आसक्ति उनमें थी ही नहीं। भक्तों से वे कहते थे- भय, क्रोध, लोभ, मोह और तमाम कामनाएं ईश्वर प्राप्ति की राह में बाधाएं हैं। आप निर्विकार अपने शांत स्वरूप आइए, ईश्वर से संपर्क हो जाएगा। नींद में तो हम यह भी नहीं जानते कि किस बिस्तर पर सोए हैं, हमने क्या खाया है या हमारी पहचान क्या है। हम तो बेसुध होकर सोते हैं। जगने के बाद ईश्वर से संपर्क के लिए नींद वाली मानसिक अवस्था में आ जाइए। यानी- कुछ भी सोचना बंद कीजिए। महसूस कीजिए कि आप ईश्वर के अंश हैं। बस ईश्वर से संपर्क हो जाएगा। दिमाग मत लगाइए। श्रद्धा और भक्ति के साथ ईश्वर में लीन हो जाइए।
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