Tuesday, February 9, 2010

एक यूरोपियन साधु से मुलाकात

विनय बिहारी सिंह

मैं योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के दक्षिणेश्वर (कोलकाता) स्थित आश्रम में खड़ा था। तभी एकदम लाल रंग की लुंगी और कुर्ता पहने एक यूरोपियन साधु को देखा। इच्छा हुई बातचीत करनी चाहिए। उनके ललाट पर लाल रंग का टीका था। आंखें नीली, त्वचा अत्यंत गोरी। बातचीत से और स्पष्ट हो गया। मैंने पूछा कि वे किस संप्रदाय के साधु हैं? उन्होंने बताया- किसी संप्रदाय के नहीं। मैंने पूछा- तो यह लाल रंग का कपड़ा क्यों? उन्होंने कहा- मैं मां काली का भक्त हूं। इस संसार में उनके अलावा मेरा कोई नहीं। मैंने पूछा- आप किस देश के हैं? वे बोले- किसी देश का नहीं। मां काली ही मेरा देश हैं। मैंने पूछा- मां काली को आपने कब जाना? उन्होंने कहा- बचपन से ही उन्हें जानता हूं। (अब जाकर वे थोड़े खुले) मेरा जन्म ईसाई धर्म वाले परिवार में हुआ। लेकिन मैं होश संभालते ही मां काली को खोजने लगा। संयोग से भारत आने का सौभाग्य मिला और मां काली का दर्शन पाकर मुझे लगा- अहा, मां तो यहां हैं। फिर उन्होंने मुझसे पूछा- यह जादुई आकर्षण क्या पूर्व जन्म के किसी संबंध के कारण है। मैंने कहा- बिल्कुल। मैंने पूछा- आपने किसी संप्रदाय से दीक्षा ली हुई है? वे बोले- हां, मैं स्वामी शिवानंद के आश्रम से दीक्षा ले चुका हूं। लेकिन मैं फिर एक जगह दीक्षा लेना चाहता हूं। मैंने पूछा- आप दुबारा कहां दीक्षा लेने वाले हैं? उन्होंने कहा- मैं नाथ संप्रदाय से दीक्षा लेने की सोच रहा हूं। फिर उन्होंने और भी बातें कीं जो यहां लिखना नहीं चाहता क्योंकि वे उनकी साधना से संबंधित हैं और किसी की साधना के बारे में बिना उनकी अनुमति के बताना उचित नहीं है। लेकिन उनकी बातचीत से लगा कि वे संतुष्ट नहीं है। भगवान को पाने के लिए अत्यंत छटपटाहट है, बेचैनी है। इसीलिए वे कोई और गहरी और प्रभावकारी साधना की तलाश में है। हालांकि वे एक सीमा तक वे पहुंच चुके हैं। लेकिन उससे वे संतुष्ट नहीं हैं। उनकी बातें बहुत प्यारी और मोहक थीं। उन्होंने कुछ जानकारियां चाहीं। मेरे पास जितनी जानकारी थी, उन्हें दे दी। वे प्रसन्न दिखे और ज्योंही उनसे विदा लेकर मैं पीछे मुड़ा उन्होंने फिर थैंक यू कहा। लेकिन रह रह कर वे याद आ रहे हैं। उनकी मां काली के प्रति गहरी भक्ति अद्भुत है। ऐसी भक्ति बहुत कम लोगों में होती है। उन्होंने कहा- मै सांस भी मां काली की कृपा से ले रहा हूं। मैं उनकी बातों से सुख पा रहा था। सोच रहा था- इतनी भक्ति मेरे भीतर भी होनी ही चाहिए। तभी काम बनेगा। वे मां काली के प्रेम से ओत- प्रोत थे।

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