विनय बिहारी सिंह
एक सन्यासी के पास दो युवक शिष्य बनने गए। सन्यासी ने उन्हें एक रुपया दिया और कहा कि इससे बाजार से कोई ऐसी चीज खरीद कर लाओ जिससे पूरा कमरा भर जाए। पहले युवक ने सोचा- एक रुपए में कबाड़ी के यहां से ढेर सारा कचरा मिल जाएगा और कमरा भी भर जाएगा। लेकिन दूसरा युवक ध्यान करने बैठ गया। सोचा- आठ आने में मोमबत्ती और आठ आने में अगरबत्ती मिल जाएगी। मोमबत्ती से पूरे कमरे में प्रकाश भर जाएगा और अगरबत्ती से पूरे कमरे में सुगंध भर जाएगी। दोनों युवक शाम को सन्यासी के पास पहुंचे। दूसरे युवक ने अपने कमरे में मोमबत्ती और अगरबत्ती जला दी। सचमुच प्रकाश और सुगंध से कमरा दिव्य हो गया। सन्यासी बहुत खुश हुए। लेकिन पहले युवक के कमरे में जाते ही उन्हें कचरे की दुर्गंध मिली। उन्होंने नाक पर रुमाल रखा और कचरा तुरंत साफ करने को कहा। फिर कमरा धुलवाया और उसमें भी अगरबत्ती जलवाई। पहले युवक को वहां से तुरंत चले जाने को कहा। दूसरे युवक को उन्होंने अपना शिष्य बना लिया। सन्यासी ने पहले शिष्य से कहा- ठीक इसी तरह हमारा मन है। इसमे अगर अच्छी चीजें रखी जाएंगी तो जीवन सुखमय और सुगंधित होगा, लेकिन अगर इसमें नासमझी से कचरा डालने लगेंगे तो जीवन बदतर होता जाएगा। हम जाने अनजाने अपने दिमाग में न जाने कितने कचरे भरते रहते हैं। कभी टीवी देख कर तो कभी कोई तथाकथित जासूसी किताबें पढ़ कर। कुछ लोगों को तो ऐसे प्रोग्राम या ऐसी किताबें पढ़ने में बड़ा सुख मिलता है। लेकिन इसका हमारे दिमाग पर कितना खराब असर पड़ता है, यह हम नहीं समझ पाते क्योंकि यह असर इतना सूक्ष्म होता है कि जब इसका रिजल्ट आता है तब पता चलता है। इसीलिए बीच बीच में यह मंथन जरूरी है कि हमें क्या कुछ पढ़ना और देखना (टेलीविजन) है । एक सज्जन ने पूछा कि तो क्या हम आपकी तरह दिन रात धार्मिक किताबें ही पढ़ते रहें? आपकी इसमें रुचि हो सकती है, सबकी तो नहीं हो सकती। मैंने कहा कि मैं तो यह कभी नहीं कहता। आप साहसी लोगों की जीवनी पढ़िए, रचनात्मक लोगों के बारे में पढ़िए। सफल लोगों की कहानी पढ़िए। कुछ अच्छी चीजें दिमाग में जाएंगी तो आपका चिंतन भी उसी तरह का होगा। अन्यथा हमेशा दुखी लोगों के बारे में पढ़ते रहेंगे तो खुद ही दुखी हो जाएंगे और आपका चिंतन भी उसी तरह का होगा।
No comments:
Post a Comment