विनय बिहारी सिंह
बचपन में मां से एक कहानी सुनी थी। जब बड़ा हुआ तो इसका अर्थ समझ में आया। मेरे बचपन में गांवों में मनोरंजन का साधन खेल- कूद, रविवारीय परिशिष्ट वाले अखबार, कार्टून की किताबें और मां या दादी की कहानियां हुआ करती थीं। उस समय मेरे गांव में टीवी तो दूर की बात थी, इक्का- दुक्का लोगों के पास ही रेडियो था। मैं रात को सोते वक्त रोज मां से कहानियां सुनाने की जिद करता था। लेकिन वे रोज कहानियां नहीं सुना पाती थीं और कहानी सुनाने की रट के कारण मुझे डांटती भी थीं। लेकिन मुझ बच्चे का मन मां की मुग्धकारी कहानियों में लगा रहता था। हफ्ते में दो- तीन दिन कहानी सुनने का आनंद मैं ले ही लेता था। मां की मृत्यु मेरे बचपन में ही हुई थी। लेकिन उनकी कहानियां मुझे आज तक सोचने और चिंतन करने को प्रेरित करती हैं। मेरे बचपन में जो कार्टून के पात्र थे उनमें मैंड्रेक और फैंटम के इर्द- गिर्द कहानियां घूमती थीं। मैंड्रेक विलक्षण जादूगर था और फैंटम गजब का शक्तिशाली और हमेशा मास्क पहने रहता था। ये कहानियां ब्रिटेन की थीं जो हिंदी में रूपांतरित हो कर हम तक पहुंचती थीं। उस जमाने में कोई भारतीय पात्रों को कार्टून बनाने वाले लोग नहीं थे। बचपन की याद ताजा करते हुए जब मैं जब हैरी पाटर के कारनामों की कथा एक बच्चे की किताब से पढ़ी तो पता चला कि यह हैरी पाटर हमारे जमाने के मैंड्रेक का ही दूसरा संस्करण है। हू-ब-हू तो नहीं लेकिन एक हद तक। सॉरी, यह ब्लाग परिवार के अनुभव सुनाने के लिए नहीं है। तो बात हो रही थी, राक्षस की। राक्षस बहुत ही शक्तिशाली था और एक राजा की प्रजा को तंग करता रहता था। राजा ने उससे युद्ध किया और तब उसे समझ में आया कि राक्षस को हराना बहुत मुश्किल है। तभी गुप्तचर ने राजा को सूचना दी कि राक्षस के प्राण तो तोते में अंटके रहते हैं। बस क्या था। राजा ने उस तोते का पता लगाया और तोते को मार डाला। ज्योंही तोते के प्राण निकले, राक्षस के भी प्राण निकल गए। यह कहानी विस्तार में अत्यंत ही रोचक है। जब मैं बड़ा हुआ तो पाया कि यह तो आसक्ति की कथा है। तोता मनुष्य की आसक्तियों का प्रतीक है। जैसे- जैसे आसक्ति होगी, वैसे वैसे हम राक्षस के चंगुल में रहेंगे। जिस चीज में हम आसक्त रहते हैं, उसे अगर नुकसान हो जाए तो हमारे प्राण छटपटाने लगते हैं। इसीलिए ऋषियों ने कहा है आसक्ति हमें गुलाम बनाती है। जैसे उस राक्षस को गुलाम बनाए हुए थे, वरना तो वह बहुत शक्तिशाली था। क्या हमें अपनी आसक्तियों का आत्मनिरीक्षण नहीं करना चाहिए?
2 comments:
आसक्ति हमें गुलाम बनाती है.nice
आसक्ति मनुष्य को गुलाम बनाती है और हम जैसे कई इस से बेखबर जीते है, पता भी नहीं चलता और जब पता चलता है तो बहुत देर हों चुकी होती है!
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