Monday, March 16, 2009

दिल से निकली प्रार्थना को भगवान जरूर सुनते हैं

विनय बिहारी सिंह

पिछले रविवार को योगदा मठ में पूरे दिन रहा। वहां के एक सन्यासी ने कहा- अगर दिल से प्रार्थना की जाए तो भगवान जरूर सुनते हैं। लेकिन जरूरी यह है कि प्रार्थना करने वाले के मन में ईश्वर के प्रति गहरी आस्था होनी चाहिए। यह आस्था कैसी होनी चाहिए? जब आप प्रार्थना कर रहे हों तो आपके मन में पूरा भरोसा हो कि आपकी बात ईश्वर सुन रहे हैं। और यह कल्पना की बात नहीं है। जिसने यह समूची सृष्टि बनाई है, वह आप क्या कह रहे हैं, नहीं सुनेगा? वह तो हमारे एक एक पल की जानकारी रखता है। हमारी हर बात सुनता है। मन में यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि ईश्वर मुझे गौर से सुन रहा है। आप दिल खोल कर उससे अपनी बात कहिए। जैसे आप कोई बात अपने किसी अत्यंत प्रिय व्यक्ति से करते हैं। भगवान उसका जवाब देते हैं। लेकिन अगर आपके मन में जरा भी शक है कि क्या पता भगवान सुन भी रहे हैं कि नहीं, तो फिर आपको ईश्वर की तरफ से जवाब नहीं मिलेगा। दुनिया के सभी धर्मों के जितने भी धर्मग्रंथ हैं, सभी स्पष्ट रूप से कह रहे हैं- हम ईश्वर की संतान हैं। ईश्वर ही हमारा माता- पिता है। हमें उसकी शरण में जाना चाहिए। लेकिन यह बात पढ़ कर, सुन कर हम मन में पक्की तरह नहीं बैठा पाते। फिर भी शंका रह ही जाती है। क्या पता भगवान की संतान हम हैं कि नहीं? जैसे ही यह शंका हुई कि बस आप भगवान से दूर हो गए। आप खुद को शरीर मत मानिए। आप एक विराट चेतना हैं। आप अपनी चेतना को ईश्वर से जोड़ दीजिए, बस आप सुखी हो जाएंगे। सन्यासी की बात बिल्कुल ठीक है। सच ही तो है- हमारे मन में हमेशा शंका उठती रहती है, अगर- मगर उठता रहता है। रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि जीव कोटि के लोगों को ईश्वर पर भरोसा ही नहीं होता। कुछ दिन भरोसा रहता है तो फिर मन में शंका उठ जाती है। मन स्थिर नहीं रहता। ऐसे में प्रार्थना ईश्वर तक नहीं जाएगी। आपकी शंका ही आपकी प्रार्थना को रोक लेगी। इसी को धर्म शास्त्रों में माया कहा जाता है। अंग्रेजी में डिल्यूजन। इसी से हमको मुक्त होना है और सच्चे मन से ईश्वर को पुकारना है। वे तैयार खड़े हैं हमारी मदद के लिए।