Saturday, March 7, 2009

हनुमान जी ने जब लंकिनी पर मुक्के से प्रहार किया


विनय बिहारी सिंह

रामचरितमानस के सुंदरकांड में है कि जब माता सीता की खोज में हनुमान जी लंका रवाना हुए तो देवताओं ने उनकी परीक्षा के लिए सुरसा को उनके सामने भेजा। उसने हनुमान जी को खाने की इच्छा व्यक्त की। हनुमान जी ने कहा कि मैं माता सीता की खबर जब तक भगवान राम के पास नहीं पहुंचाता हूं, तुम्हारा भोजन नहीं बन सकता। पहले मुझे अपना काम कर लेने दो, इसके बाद स्वयं मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा। फिर तुम मुझे खा लेना। लेकिन सुरसा इसके लिए तैयार ही नहीं थी। तब हनुमान जी ने कहा- तो ठीक है मुझे खा। सुरसा ने अपना मुंह चार कोस जितना चौड़ा किया तो हनुमान जी ने उसका दूना अपना शरीर कर दिया। उसने आठ कोस का मुंह किया तो हनुमान जी ने १६ कोस का अपना शरीर कर लिया। जस- जस सुरसा बदन बढ़ावा।तासु दून कपि रूप दिखावा।।
बढ़ते बढ़ते सुरसा ने सौ योजना जितना मुंह चौड़ा किया तो हनुमान जी एक दम छोटे रूप में आ गए और उसके शरीर के भीतर घुस कर बाहर निकल गए। सुरसा ने उनके इस कौशल पर उन्हें आशीर्वाद दिया। उसने हनुमान जी का लोहा मान लिया। फिर छाया से आकाश में उड़ने वाले जीवों को पकड़ खाने वाली राक्षसी को मारा। आगे बढ़ने पर लंका की राक्षसी लंकिन से सामना हुआ। लंकिनी ने कहा कि चोर ही तो उसके भोजन है। वह हनुमान जी को चोर की तरह लंका में घुसने वाला कह रही थी। हनुमान जी ने उसे एक मुक्का मारा। वह तुरंत खून उगलते हुए धराशायी हो गई। थोड़ी देर बाद किसी तरह कराहते हुए उठी और बोली- ब्रह्मा जी ने मुझे आशीर्वाद देते हुए कहा था- जब किसी वानर की मार से तुम बेचैन हो जाओ तो समझना राक्षसों का अंत आ गया है। अब लगता है- राक्षस नहीं बचेंगे। उसी ने कहा-प्रविसि नगर कीजै सब काजा।हृदय राखि कौसलपुर राजा।। हे हनुमान जी भगवान राम को हृदय में रख कर जाइए। आपका काम अवश्य होगा। हालांकि हनुमान जी भगवान राम के विशेष दूत थे और हमेशा ही रहेंगे। भगवान राम ने उन्हें भरत की तरह प्रिय भाई कहा है। लेकिन लंकिनी अपनी श्रद्धा भगवान राम के प्रति व्यक्त कर रही थी। यानी लंकिनी जैसी राक्षसी भी भगवान राम की परम भक्त थी। ल