Thursday, March 19, 2009

सूर्य को क्यों जल चढ़ाते हैं



विनय बिहारी सिंह


सूर्य को जल चढ़ाने से क्या कोई फायदा होता है? यह सवाल अक्सर पूछा जाता है। लेकिन हमारे ऋषि- मुनियों ने कहा है कि सूर्य को जल अर्पण करने से हमारे जीवन में सुख और शांति की वृद्धि होती है। कैसे? आइए जानें। पहले कुछ वैग्यानिक तथ्य। सूर्य पृथ्वी से १,४९,६००,००० किलोमीटर दूर है। इसका प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने में ८ मिनट १९ सेकेंड का समय लेता है। सभी जानते हैं कि सूर्य पृथ्वी के जीवों के लिए महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य के कारण जीवों को तो ऊर्जा मिलती ही है, पेड़- पौधों को भोजन भी सूर्य के कारण ही मिल पाता है। अगर सूर्य की किरणें न हों तो फोटोसिंथेसिस न हो और फोटोसिंथेसिस न हो तो पेड़- पौधे भोजन कैसे बनाएंगे? आखिर उनकी पत्तियों में मौजूद क्लोरोफिल बिना सूर्य के प्रकाश के कर ही क्या पाएगा? ऋषियों ने कहा है कि सूर्य को जल देने से उसकी अदृश्य प्रेम किरणें हमारे हृदय में प्रवेश करती हैं और हमारे शरीर के सारे हानिकारक तत्व नष्ट होते जाते हैं। हम रोज न जाने कितनी नकारात्मक परिस्थितियों से गुजरते हैं। सूर्य को जल चढ़ाते ही हमारे शरीर पर पड़े बुरे प्रभाव तुरंत नष्ट हो जाते हैं और हमें एक नई ऊर्जा मिलती है। पूरे सौरमंडल का ९९.८ प्रतिशत भार सूर्य का है। हालांकि सूर्य के भीतर की मुख्य गैस हाइड्रोजन (७० प्रतिशत) और हीलियम (२८ प्रतिशत) है। लेकिन इसमें आइरन, निकल, आक्सीजन, सल्फर, मैग्नीशियम, सिलिकान, कार्बन, नियान, कैल्शियम और क्रोमियम वगैरह भी है। सूर्य को जल चढ़ाना इसलिए भी लाभकारी है क्योंकि महात्माओं ने कहा है कि जिस जल से हम सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं, उससे छन कर सूर्य का प्रेम तत्व हमारे शरीर में आता रहता है। इस प्रेम तत्व को आप महसूस ही कर सकते हैं। क्योंकि- प्रेम न खेतो नीपजे, प्रेम न हाट बिकाय।।

1 comment:

Rajesh Tripathi said...

आपका सूर्योपासना पर आलेख प्रभावी और ज्ञानवर्धक है। जड़-चेतन के एक जीवन आधार सूर्य तेजोमय और ओजस्वी हैं। उनके प्रकाश से ही यह धराधाम आलोकित और पुष्पित-पल्लवित है। सूर्य विहीन सृष्टि की कल्पना मात्र से सिहरन होती है। सूर्य अनंत ओज और तेज रश्मियों के पुंज और ऊर्जा के स्रोत हैं। यह बात तो वैज्ञानिकों ने भी मान ली है। सूर्य को जल का अर्घ्य देते समय हम कहते भी हैं-एहि सूर्य सहत्राक्षो तेजो राशो जगत्पते, अनुकंपया माम भक्त्या ग्रहणार्घो दिवाकर। शास्त्रोक्त है कि सूर्य को जल की धार का अर्घ्य देने और उस धार के मध्य से सूर्य रश्मियों का दर्शन करने से तेज बढ़ता है और सुस्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। आज के भौतिकतावादी युग में लोग ज्यों-ज्यों धर्म और धार्मिक आस्थाओं से प्रथक होते जा रहे हैं, त्यों-त्यों कष्ट बढ़ रहे हैं। ऐसे में आप अपने ब्लाग के माध्यम से धार्मिक आस्थाओं की पुर्नप्रतिष्ठा का जो सद्प्रयास कर रहे हैं, वह निरंतर जारी रहे और जन-जन के लिए कल्याणकारी बने। यही विनम्र कामना है।
-राजेश त्रिपाठी, कोलकाता
20 मार्च, 2009