Friday, March 13, 2009

संत रामानंद जी



विनय बिहारी सिंह


संत रामानंद जी १३वीं शताब्दी के विख्यात संत थे। वे रविदास, पीपा और कबीर जैसे उच्च कोटि के संतों के गुरु थे। उन्होंने अपने सिद्धांत की काव्यात्मक व्याख्या की-
जाति पांति पूछे नहीं कोई।हरि के भजे सो हरि के होई।।
उनके समय में जाति और धर्म में समाज बंटा हुआ था। उस समय यह भी था कि अमुक जाति का व्यक्ति मंदिर में नहीं जाएगा। अमुक आदमी अछूत है। वगैरह वगैरह। संत रामानंद के इस धार्मिक नारे से सभी धर्मों, जातियों और संप्रदायों के लोग उनके पास आए और आध्यात्मिक रस पीया। संत रामानंद की मुख्यतया इलाहाबाद और वाराणसी में रहे। हालांकि उन्होंने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की और अपना संदेश जन जन तक पहुंचाया, लेकिन ज्यादातर वे वाराणसी और इलाहाबाद में ही रहे। उनका कहना था कि मनुष्य इंद्रिय, मन और बुद्धि के परे जाए और जिस राम ने हम सबको पैदा किया है, उससे प्रेम करे। जो हमारा जन्मदाता है, उसका नाम है राम यानी ईश्वर। वह हमें प्रेम से पुकार रहा है। लेकिन हम सांसारिक आकर्षणों में इस कदर बंधे हुए हैं कि उसकी मौन पुकार सुन नहीं पा रहे हैं। वह हमें बहुत प्यार करता है। वह कहता है- एक बार तो हमारी पुकार सुनो मेरे बच्चो। आओ, मेरे पास आओ। इस संसार में जो कुछ भी तुम्हें अपना और प्यारा दिख रहा है, वह भ्रम है। कोई तुम्हें प्यार नहीं करता, सिर्फ मैं तुम्हें प्यार करता हूं। मैंने तुझे जन्म दिया है, तुम मेरे बच्चे हो। आओ, आ जाओ। लेकिन अगर फिर भी हम नहीं सुनेंगे तो ईश्वर कहता है कि ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा। संत रामानंद के अराध्य राम थे। वे ईश्वर को राम कह कर पुकारते थे। उनके शिष्यों ने इसी मंत्र को लिया और ईश्वर से संबंध जोड़ने के लिए प्रेरित किया। संत कबीर के दोहों, और शबद व रमैनी में राम शब्द का प्रयोग बहुत आया है। जैसे- कबीर कूता राम का (संत कबीर विनम्रता से राम के प्रति समर्पित हैं और कहते हैं- कबीर राम का कुत्ता है)। यह भक्ति की पराकाष्ठा है। इसी को संपूर्ण समर्पण कहते हैं। संत रामानंद ने उन पर करारा चोट किया जो जाति- पांति, धर्म, भाषा और संप्रदाय के नाम पर लोगों को बांटते हैं। उन्होंने हरि के भजे सो हरि के होई, कह कर सबको जोड़ दिया। इसीलिए उन्हें समाज सुधारक भी कहा जाता है।