Friday, March 6, 2009

ईश्वर चंद्र विद्यासागर


विनय बिहारी सिंह

ईश्वर चंद्र विद्यासागर १९ वीं शताब्दी में पश्चिम बंगाल में पैदा हुए। जन्म वर्ष है- १८२०। उनका असली नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। संस्कृत कालेज ने उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी थी। वे इसी कालेज के विद्यार्थी थे। विद्यासागर पश्चिम बंगाल के पुनर्जागरण के पुरोधाओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने बाग्लाभाषा में जो सहज बदलाव किए उससे बच्चों को बांग्ला भाषा सीखने में बहुत ज्यादा मदद मिली। आज भी नर्सरी के बच्चों को पढ़ने के लिए वर्ण परिचय नाम की जो पुस्तक पश्चिम बंगाल में दी जाती है, उस पर विद्यासागर का चित्र छपा होता है। इसके अलावा विधवा विवाह की पहल में ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आप आश्चर्य कर रहे होंगे कि इस आध्यात्मिक ब्लाग पर ईश्वर चंद्र विद्यासागर का उल्लेख क्यों? इसकी वजह यह है कि विश्वविख्यात संत और स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस उनसे मिलने उनके आवास पर गए थे। रामकृष्ण परमहंस उन्हें बहुत प्यार करते थे। वे कहते थे कि विद्यासागर को इस जगत के कल्याण के लिए ईश्वर ने भेजा है। विद्यासागर के पिता ने उन्हें कोलकाता के एक संस्कृत कालेज में दाखिल करा दिया। पिता के एक मित्र ने उन्हें सलाह दी कि विद्यासागर को अंग्रेजी की भी शिक्षा दी जानी चाहिए क्योंकि यह भाषा नौकरी दिलाने में मदद करती है। इस तरह विद्यासागर संस्कृत के साथ अंग्रेजी भी पढ़ने लगे। उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की। १८४१ में फोर्ट विलियम कालेज में वे संस्कृत के प्रोफेसर नियुक्त हुए। वे जाति- पांति को नहीं मानते थे। इसके अलावा वे कालेज के पाठ्यक्रम में बदलाव भी चाहते थे। रूढ़िवादी मानसिकता के अध्यापकों ने विद्यासागर का विरोध किया। पांच साल बाद उन्होंने फोर्ट बिलियम कालेज छोड़ दिया और संस्कृत कालेज में असिस्टेंट सेक्रेटरी के तौर पर नियुक्त हुए। वहां भी सेक्रेटरी के साथ उनका मतभेद हुआ क्योंकि विद्यासागर चाहते थे कि सभी जातियों के लड़के संस्कृत कालेज में पढ़ें। सिर्फ एक जाति विशेष के लोग वहां न पढ़ें। इसी विरोध के कारण तीन साल बाद विद्यासागर ने संस्कृत कालेज छोड़ दिया। लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने इस कालेज में फिर नौकरी इस शर्त पर की कि उनकी बात सुनी जाएगी। इसके बाद सभी जातियों के लोगों को संस्कृत कालेज में प्रवेश मिलने लगा। इसी संस्कृत कालेज के वे विद्यार्थी रह चुके थे जिसने उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने एलान किया कि बच्चों को विग्यान पढ़ाए बिना उनका ग्यान पूरा नहीं होगा। उन्होंने इसके लिए कापरनिकस, न्यूटन और हर्षल जैसे वैग्यानिकों की जीवनियों का अंग्रेजी से बांग्ला में अनुवाद किया ताकि जो अंग्रेजी नहीं जानते वे भी वैग्यानिकों और उनकी उपलब्धियों के बारे में जान सकें। पाश्चात्य दार्शनिक फ्रांसिस बेकन को अपने देश में लोगों ने उन्हीं के माध्यम से जाना। ईश्वर चंद्र विद्यासागर लेखक, चिंतक, समाजशास्त्री, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उन्हें याद करने से लगातार काम करने की प्रेरणा मिलती है।