Wednesday, March 3, 2010

भगवान शिव अनंत हैं

विनय बिहारी सिंह


कल एक व्यक्ति ने कहा कि भगवान शिव उसे हमेशा इसलिए आकर्षित करते हैं क्योंकि वे हमेशा ध्यान मग्न रहते हैं और भक्तों के लिए हमेशा वे अभय का वरदान देते रहते हैं। इस पर एक साधु ने कहा- अनहोनी टालने के लिए महामृत्युंजय का जाप किया जाता है। यह भी भगवान शिव का ही जाप है। भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। उनकी शरण में रहने वाला निर्भय रहता है। भगवान शिव महान योगी हैं। वे अनंत हैं। कथा है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु ने शिव जी का आदि अंत जानने की कोशिश की। लेकिन उन्हें कुछ भी पता नहीं चल सका। ऐसे अनेक महात्मा हैं जो भगवान शिव को जानने की कोशिश करते रहे लेकिन जान नहीं पाए। फिर उन्होंने उनके सामने टोटल सरेंडर किया यानी भगवान शिव में अपने अस्तित्व को लीन कर दिया। लीन करने से हुआ यह कि वे शिवमय हो गए। अब ग्यान का बोध ही नहीं रहा। कौन किसको बताएगा कि शिव कैसे हैं। रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि नमक का पुतला समुद्र की थाह लेने गया और समुद्र में जाते ही गल गया। अब समुद्र की थाह कौन लेगा। यानी भक्त भगवान को जानने गया और खुद भगवानमय हो गया। अब कौन बताएगा कि भगवान कैसे हैं। इसीलिए जितने भी संत हुए हैं उन्होंने भगवान कैसे हैं इसका संकेत भर दिया है। क्योंकि पूर्ण रूप से कोई भगवान के बारे में बता ही कैसे सकता है। वे तो अनिर्वचनीय हैं। सच्चिदानंद हैं। भगवान शिव की वेशभूषा वैराग्य का द्योतक है। वे मृगछाला पर बैठे हैं और मृगछाला ही पहने हुए हैं। पूरे शरीर में श्मशान की भभूत है। यानी श्रृंगार का कोई सामान नहीं है। सबकुछ त्याग कर वे सिर्फ भक्तों को उनका प्राप्य देते रहते हैं। गले में सर्प कुंडलिनी के जागरण का प्रतीक है। उनके गला नीला है। समुद्र मंथन के समय उन्होंने हलाहल विष पीया था और उसे गले में ही रख दिया था। नीचे नहीं उतरने दिया। जिस विष से संसार में त्राहि त्राहि मची हुई थी उसे पीने के बाद उनका बाल बांका नहीं हुआ और वे फिर गहरे ध्यान में डूब गए। नंदी बैल उनकी सवारी है। बैल कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। मान्यता है कि भगवान शिव के भक्तों को कभी भूखे नहीं रहना पड़ता। उन्हें भोजन मिल ही जाता है। भगवान शिव के पुत्र गणेश भगवान हैं। यानी शिव जी की भक्ति से शुभ कार्य होते रहते हैं। गणेश जी विघ्नहारी देवता माने जाते हैं। यानी शिव जी के भक्तों का विघ्न अनायास ही कट जाता है। उनकी पत्नी माता पार्वती हैं। वे ही मां काली हैं और वे ही मां दुर्गा भी हैं। वे आदि शक्ति की प्रतीक हैं । इसीलिए उन्हें जगन्माता कहा जाता है। साधु की यह व्याख्या बहुत अच्छी लगी। (मित्रों मैं कुछ दिनों के लिए लखनऊ और उत्तर प्रदेश की अन्य जगहों पर जा रहा हूं। अगली मुलाकात ११ मार्च को होगी। तब तक इस ब्लाग की वह सामग्री आप पढ़ सकते हैं जो आप नहीं पढ़ सके हैं।)

1 comment:

veeru said...

very good article