Wednesday, March 31, 2010

आइना बताएगा कि आपका स्वास्थ्य कैसा है




विनय बिहारी सिंह




खबर है कि अब आइना बताएगा कि आपका स्वास्थ्य कैसा है। हो सकता है कि आइने के सामने आप ब्रश कर रहे हों। क्योंकि आमतौर से बेसिन आइने के ही सामने होता है। ब्रश करते हुए आइना आपके शरीर के भीतर के पूरे सिस्टम की जांच कर रहा होगा। इस आइने में ब्रा़डबैंड सिस्टम फिट होगा। ज्योंही आप शीशे के सामने होंगे। या मान लीजिए आप कंघी ही कर रहे हों तो आपके शरीर का हाल कंप्यूटर में फीड हो रहा होगा। लेकिन ऐसा उसी शीशे में होगा जो ब्राडबैंड सिस्टम के साथ कनेक्ट कर दिया गया हो। शीशा ही बता देगा कि आपका ब्लड सुगर कैसा है। आपका ब्लड प्रेसर कैसा है। आपका हृदय, किडनी और फेफड़ा कैसा है। आपके शरीर में कोलेस्टेराल किस स्तर पर है। आपके खून में किस चीज की कमी है या क्या ऐसा है जो आपके स्वास्थ्य के लिए घातक है। इन सब बातों को जान कर आप सतर्क रहेंगे और डाक्टर को भी ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी। आपका शरीर लगभग रोज ही स्कैन होता रहेगा और आप अपना जीवन संतुलित बनाए रखेंगे।
दूसरी खबर है कि चुंबकीय किरणों प्रक्षेपण से आपके चिंतन की पद्धति बदली जा सकती है। मान लीजिए कि आपके मन में किसी खास चीज डर समाया हुआ है। आप इससे मुक्त ही नहीं हो पा रहे हैं। आप अपने मन का डर भी किसी से नहीं कह पा रहे हैं। आपको लगता है कि अगर अपने डर के बारे में बताएंगे तो लोग हंसेंगे या आपको नीची निगाह से देखेंगे। लेकिन जब यह मशीन उपलब्ध हो जाएगी तो आप डाक्टर से अपनी तकलीफ बताएंगे और वह आपके मस्तिष्क के एक खास हिस्से में चुंबकीय किरणों का प्रक्षेपण करेगा। नतीजा यह होगा कि भविष्य में आपके दिमाग में किसी भी चीज के प्रति कोई डर नहीं पैदा होगा। आप निश्चिंत हो कर रह सकेंगे। यह पद्धति अभी प्रयोग के तौर पर शुरू हुई है। लेकिन भविष्य में यह चिकित्सा विग्यान का चमत्कार साबित होगी।
इन खबरों से एक बार फिर हमारे ऋषि- मुनियों की याद आ जाती है। अपने योग बल से वे लोगों की न सिर्फ सोच ही बदल देते थे बल्कि शरीर की बीमारियों को भी तत्क्षण दूर कर देते थे। उनके मस्तिष्क इतने शक्तिशाली होते थे कि वे प्रकृति को भी वश में कर लेते थे। परमहंस योगानंद जी कहते थे- लीव मोर विद माइंड नाट विथ बाडी। योग में दृढ़ता और गहराई पाने के लिए स्ट्रांग माइंड यानी शक्तिशाली दिमाग की जरूरत होती है। हो सकता है कि आपका शरीर कमजोर हो लेकिन आपका दिमाग शक्तिशाली। जिनका मन अत्यंत एकाग्र होता है वही धीरे- धीर अपना विल पावर बढ़ाते जाते हैं और इसकी परिणति होती है शक्तिशाली दिमाग। आप किसी भी चीज का निर्माण करते हैं तो उसमें दिमाग की एकाग्रता चाहिए होता है। बिना एकाग्रता के या बिना कंसंस्ट्रेशन के क्या इस दुनिया में कुछ भी संभव है? यह पाठ हमारे ऋषि- मुनियों ने बहुत पहले पढ़ा दिया है। लेकिन हम कई बार सुस्त हो जाते हैं और भूलने लगते हैं कि हमें अपनी पीछे ले जाने वाली आदतें गुलाम बना रही हैं। ये आदतें ही हमारी प्रगति का रास्ता रोक कर खड़ी हैं। जब ये आदतें, चाहे वे शरीर की हों या दिमाग की (हैबिट्स आफ दि माइंड) खत्म हो जाएंगी तो हम मुक्त हो जाएंगे। आनंद का स्वाद चखने लगेंगे क्योंकि ईश्वर हमारे साथ होंगे।

Tuesday, March 30, 2010

आखिर किस बात की बेचैनी




विनय बिहारी सिंह




कई लोग बेहद बेचैन रहते हैं। कभी किसी बात को लेकर तो कभी किसी बात को लेकर। एक समस्या खत्म नहीं हुई कि दूसरी शुरू हो गई। बेचैनी, बेचैनी और बेचैनी। शास्त्रों ने कहा है कि अपनी परेशानियों को हमने ही पैदा कर रखा है। किसी और का दोष इसमें नहीं है। किसी और पर आरोप लगाने की जरूरत नहीं है। हमें खुद पर आरोप लगाना चाहिए और अपनी कार्य प्रणाली को सुधारना चाहिए। और बेचैन होकर क्या हम कोई रचनात्मक काम कर सकते हैं। बेचैनी में तो बनने वाला काम भी बिगड़ जाएगा। इसीलिए ऋषियों ने कहा है कि कोई समस्या आए तो पहले शांत हो कर बैठिए और ठंडे दिमाग से सोचिए। ठंडे दिमाग से सोचने और समस्या सुलझाने से आप प्रगति के रास्ते पर जाएंगे। बेचैन हो कर आप अवनति के रास्ते पर जाएंगे क्योंकि क्या पता बेचैनी में आप किसी को बेवजह भला- बुरा भी कह दें। इसलिए जरूरी है कि हम पहले खुद को संभालें। संतुलित करें। हारमनी बनाएं। किसके साथ हारमनी? किसके साथ तालमेल? ईश्वर के साथ। ईश्वर के साथ क्यों? क्योंकि ईश्वर ने ही हमें पैदा किया है, वही हमारा पोषक है और अंत में हम उसी में लीन हो जाएंगे। यह भी कितने आश्चर्य की बात है कि हम लोग यह जानते हुए भी कि ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्व व्यापक और सर्व ग्याता है, उसे भक्ति भाव से बार- बार याद करने के बजाय भूले रहते हैं। कई लोग तो कहते हैं- भाई भगवान को क्या याद करना है। वह तो जानता ही है कि हम किस मुसीबत में हैं। समय नहीं मिलता कि भगवान को याद करें। संसार में फंसे हुए हैं। क्या करें? परमहंस योगानंद जी कहते थे- भगवान के लिए अगर आपके पास समय नहीं है तो अगर भगवान भी कह दें कि उनके पास भी आपके लिए समय नहीं है तब? भगवान तो आपके बिना रह सकते हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं। उन्हें किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। लेकिन आप क्या भगवान की मदद के बिना एक पल भी रह सकते हैं? आपकी सांस और आपके हृदय की धड़कन भी तो भगवान की कृपा से ही है। लेकिन नहीं, हम सोचते हैं कि यह संसार सदा हमारे साथ रहेगा। हम भी सदा जीवित रहेंगे। मृत्यु भी होगी, यह बात बहुत कम लोग सोचते हैं। अगर सोचते तो ईश्वर को छोड़ कर आनंद में रहने का भ्रम नहीं पालते। उन्हें लगता है कि यह सब कुछ हमेशा चलता रहेगा। इस दुनिया में सब कुछ बदल जाएगा। यह दुनिया आपकी दुनिया नहीं है। ईश्वर की है। आप इसमें अपनी भूमिका अदा करने आए हैं। जब आपका समय पूरा हो जाएगा आप वापस चले जाएंगे। तब आपको कोई रोक नहीं पाएगा। हमारे जन्म का समय तय था और मृत्यु का समय भी तय है। इस बीच के समय में हम अपने को संसार का स्थाई निवासी समझ लें तो यह हमारी ही गलती है। यह संसार हमारा नहीं है। लेकिन हम संसार के मोह में इस कदर फंस गए हैं कि बस लगता है संसार के बिना कैसे रहेंगे। है न रोचक? सच्चाई यह है कि हम दिन पर दिन बूढ़े होते जा रहे हैं। शरीर की कोशिकाएं बूढ़ी होती जा रही हैं। हमारा क्षय हो रहा है। एक दिन हम मृत्यु के मुंह में चले जाएंगे। तब? तब क्या यही बेचैनी काम आएगी? नहीं। इसलिए बेचैन न हो कर, तनाव में न रह कर सिर्फ भगवान पर भरोसा कीजिए और अपनी समस्या के हल की दिशा में सार्थक कदम उठाते रहिए। कोशिश जारी रहे लेकिन ईश्वर के बिना नहीं । ईश्वर के साथ रह कर कोशिश हो।

Monday, March 29, 2010

मांगना ही है तो सर्वोच्च जगह मांगिए




विनय बिहारी सिंह




कथा है कि एक बार एक भक्त की साधना से प्रसन्न होकर भगवान उसके सामने प्रकट हुए और कहा कि वर मांगो। उस भक्त में कामनाएं- वासनाएं अभी भी बची हुई थीं। उसने मांगा- मुझे पत्नी के रूप में एक सुंदर स्त्री दे दीजिए। भगवान हंसे और बोले- पुत्र, अनंत काल से सभी प्रकार के जीवों को मैं सुंदर पति या पत्नी देता आ रहा हूं। तुमने कोई नयी चीज तो मांगी नहीं। तुमने वही सांसारिक चीज मांगी जिसे सभी मांगते हैं। कोई धन मांगता है, कोई नौकरी तो कोई सुंदर पति या पत्नी। यह तो कोई नहीं कहता कि भगवान मुझे तो आप ही चाहिए। जाओ, मैंने तुम्हें पत्नी के रूप में एक सुंदर स्त्री दिया। भगवान का हंसना स्वाभाविक है। राजा के पास गए और उसने कहा कि जो मांगना है मांगो, मेरा खजाना खुला है। और हम राजा से कहें- एक सुंदर मित्र दे दीजिए। तो राजा का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक है। वह सोचता है ये राज्य का एक हिस्सा मांगेगा या रहने के लिए घर और स्थाई आमदनी मांगेगा। वह यह सब देने को तैयार है। लेकिन आपने सिर्फ स्वादिष्ट भोजन मांग लिया तो वह चकित हो जाएगा। राजा से उसके स्तर की चीज मांगनी चाहिए। अगर आप उससे राज्य की जनता के लिए सुख, शांति और समृद्धि मांगते हैं तो इसमें आप भी शामिल हो गए। कहने का अर्थ है कि समग्रता से ही कोई चीज मांगने में आनंद है। अगर आप चाहते हैं कि राज्य की जनता सुरक्षित रहे और समृद्ध हो तो यही राजा से मांगिए। इसमें आपकी भी सुरक्षा और समृद्धि शामिल है। एकदम से व्यक्तिगत चीजें भगवान से मांगने में हर्ज नहीं है। लेकिन अगर दृष्टि व्यापक हो तो आनंद ही आनंद है। भगवान चाहते हैं कि आप उन्हें चाहें। एक बार आपने उनसे कहा कि हे भगवान मैं तो सिर्फ और सिर्फ आपको ही चाहता हूं। बस, भगवान तो आपको सदा के लिए मिल ही जाएंगे ऊपर से आपकी सारी भौतिक आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी। लेकिन हममें से ज्यादातर लोगों को यह याद ही नहीं रहता। हम तो अपने कामों इस कदर फंसे रहते हैं कि भगवान हाशिए पर चले जाते हैं। या सुबह पूजा कर लिया बस हो गया। भगवान को हमेशा पकड़े रहने में ही आनंद है। उन्हें कभी मत भूलिए और अपना काम करते रहिए। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- एक हाथ से जीवन की लड़ाई लड़ो, लेकिन दूसरे हाथ से भगवान को पकड़े रहो। ऐसी लड़ाई में तुम्हारी विजय होगी। सार तत्व यह है कि भगवान के बिना एक पल भी रहना नर्क में रहने जैसा है।

Saturday, March 27, 2010

आइने में बार- बार अपना चेहरा देखना



विनय बिहारी सिंह




एक आदमी हमेशा रास्ते के किनारे पड़ा रहता है। दाढ़ी बढ़ी हुई, कपड़े बहुत ही गंदे और जो मिल जाए खा लेने आदत। मन हमेशा बाहर की ओर। आज देखा वह कहीं से आइना पा गया है। फ्रेम रहित आइना। वह लगातार दस मिनट से अपना चेहरा देख रहा था। उसे यह भी नहीं पता कि उसके आसपास कोई खड़ा होकर देख रहा है। यूं तो उसका चेहरा अत्यंत अनाकर्षक और गंदगी से भरा हुआ है। लेकिन उसे अपना चेहरा बेहद आकर्षक लग रहा है। वह मुग्ध भाव से अपना चेहरा देख रहा है। वहां से अपने दफ्तर आया तो एक और इसी तरह के व्यक्ति को बार- बार बाथरूम के शीशे में चेहरा देख रहा था। पांच मिनट तक यह व्यक्ति अपना चेहरा देखते हुए मुग्ध था। मैंने देखा वह व्यक्ति एक बार नहीं कई बार अपना चेहरा देखने के लिए बाथरूम के बड़े शीशे के सामने जा कर खड़ा हो जाता है। अपने चेहरे के प्रति इतनी आत्ममुग्धता? मैंने ऐसे व्यक्तियों को भी देखा है जो दिन में एक बार कंघी करते हैं और फिर कभी कंघी की तरफ देखते भी नहीं। बहुत हुआ तो एकाध बार वे उंगलियों से ही बाल संवार लेते हैं। कुछ लोग बिना शीशा देखे बार- बार कंघी करते हैं ताकि सिर के बाल बेतरतीब न हों। चलिए इसमें आत्ममुग्धता नहीं है। यह एक किस्म की सतर्कता है। मन में आता है कि शायद बाल बिखर गए हैं, उन्हें ठीक कर लिया जाए। लेकिन जो आइने में बिना चेहरा देखे बेचैन रहते हैं, उन्हें एक बार फिर सोचने की जरूरत है। चेहरा तो पूरे दिन वही रहता है। बस इतना ख्याल रहे कि चेहरा साफ रहे। बाकी ईश्वर ने हमारे चेहरे का जैसा गठन कर दिया है, वह श्रेष्ठ है। उसी से हमें खुश रहना चाहिए। हां, महिलाओं में जो चेहरे की देखभाल करने की अभ्यस्त हैं, उनकी बात अलग है। वे अगर दिन में सुबह शाम आधे घंटे का समय लेती हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। अगर हमारा ध्यान ईश्वर की ओर है तो समूची चेतना ईश्वर की तरफ होनी चाहिए। ईश्वर ही तो हमारे सब कुछ हैं। उनके बिना क्या हमारा कोई काम चल सकता है? अगर वे हमारी चेतना के केंद्र में रहेंगे तो अन्य किसी चीज के प्रति आकर्षण या आसक्ति होगी ही नहीं। हां, चेहरे की देखभाल करनी जरूरी है। रोज दाढ़ी बनाना, मुंह धोना वगैरह अत्यंत जरूरी है। लेकिन इसे लेकर अति नहीं करनी चाहिए। एक बार आपने दाढ़ी बना ली, चेहरा धो कर आफ्टर शेव लोशन लगा लिया या क्रीम इत्यादि लगा लिया तो बस हो गया। इस काम में १० मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा। लेकिन चेहरे पर ही पूरे दिन केंद्रित रहने के बजाय अपनी चेतना के केंद्र में ईश्वर को रखने से ज्यादा लाभ मिलेगा। ज्यादा शांति मिलेगी। सफाई और शौक बुरे नहीं हैं। लेकिन इनकी अति बुरी है। अपने शौक को तिलांजलि मत दीजिए लेकिन उसकी अति भी मत कीजिए। इससे एक तो हमारा दिमाग उधर ही केंद्रित रहता है औऱ दूसरे इस पर अधिक समय नष्ट होता है। हमारे जीवन का एक एक पल कीमती है। क्यों न उसका सदुपयोग करें?

Friday, March 26, 2010

पीक से रंगी सड़कें

पान थूकने वालों को रोकने के लिए अभियान में पोस्टरों का इस्तेमाल हो रहा है

पान की पीक से दीवारों और सड़कों को ख़राब होने से बचाना भारत में एक बड़ी चुनौती है लेकिन लंदन भी अब पीक की पिचकारी की चपेट में है.

उत्तर पश्चिमी लंदन में ब्रेंट इलाक़े में नगरपालिका ने पान खाकर सड़क गंदा करने वालों के ख़िलाफ़ एक नई मुहिम शुरू की है क्योंकि वहाँ कई इलाक़ों में फुटपाथ पीक से रंग गए हैं.

पान की पीक को साफ़ करना कोई आसान काम नहीं है, तेज़ धार वाले वाटर स्प्रे से धोने के बाद भी उसके निशान हटते नहीं हैं इसलिए अब पान थूकने वालों पर 80 पाउंड यानी लगभग छह हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया जा रहा है.

पिछले साल दिसंबर में पुलिस अधिकारियों, स्थानीय नेताओं और व्यापारियों की एक बड़ी बैठक बुलाई गई थी जिसमें 500 लोगों ने इस नई समस्या से छुटकारा पाने के तरीक़ों पर विचार किया था.

लोग न सिर्फ़ फुटपाथ पर थूकते हैं बल्कि उन्होंने मेरे घर के दरवाज़े के बाहर और फेंस पर भी पान की पीक फेंकी है. इसकी वजह से मैं काफ़ी परेशान हूँ

--गीता सरीन, स्थानीय निवासी

स्थानीय काउंसिलर गेविन स्नेडोन कहते हैं, "पान के निशान से ब्रेंट इलाक़े की छवि ख़राब होती है, लोग हमारे इलाक़े को घटिया और गंदा समझने लगते हैं."

ब्रेंट इलाक़े में गुजराती समुदाय के लोगों की अधिक आबादी है, यहाँ भारतीय रेस्तराँ के अलावा पान की भी कई दुकानें हैं.

ब्रेंट के वेम्बली इलाक़े में रहने वाली व्यवसायी गीता सरीन इस समस्या से ख़ासी परेशान हैं, वे कहती हैं, "लोग न सिर्फ़ फुटपाथ पर थूकते हैं बल्कि उन्होंने मेरे घर के दरवाज़े के बाहर और फेंस पर भी पान की पीक फेंकी है. इसकी वजह से मैं काफ़ी परेशान हूँ."

इस समय ब्रेंट काउंसिल को पान की पीक साफ़ करने के लिए सालाना 20 हज़ार पाउंड यानी लगभग 15 लाख रुपए ख़र्च करने पड़ते हैं.

काउंसिल ने लोगों को पान की समस्या के बारे में जागरुक बनाने के लिए 17 हज़ार पाउंड की लागत से एक विशेष अभियान चलाने का फ़ैसला किया है.

इस अभियान के तहत जगह-जगह पोस्टर, बैनर लगाए जाएंगे और लोगों को पान की पीक थूकने से मना किया जाएगा.

Thursday, March 25, 2010

इस संसार में दो में से एक को अपनाना है


विनय बिहारी सिंह




ऋषियों ने कहा है कि इस सृष्टि में जीव के सामने दो रास्ते हैं। एक रास्ता भगवान की ओर जाता है और दूसरा माया या शैतान की ओर। मन हमेशा से माया की तरफ चलने का आदी है। इसलिए जब आप भगवान की ओर जाएंगे तो मन बार- बार शैतान या माया की तरफ खींचेगा। उसे तो जन्म- जन्मांतर से आदत है कि वह माया में फंसा रहे। इंद्रिय सुख में फंसा रहे। उसे भगवान की तरफ जाना बहुत कठिन और बेकार लगेगा। मन आपको ही समझाने लगेगा कि देखो माया में कितना आनंद है। भगवान तो फालतू चीज है। उसे तो आपने देखा नहीं है। फिर क्यों उसकी साधना करना। आओ और देखो कि माया के जाल में कितना आनंद है। इंद्रियों को तुष्ट करने में कितना आनंद है। लेकिन जो चालाक व्यक्ति है वह मन के इस तर्क को सुनेगा ही नहीं। वह मन को खारिज कर देगा और सच्चाई को स्वीकार करेगा। धीरे- धीरे उसकी समझ में आएगा कि भरोसा करने लायक तो भगवान ही हैं। माया तो धोखा देने वाली ताकत है। इंद्रियां भी आपको धोखा देती हैं। संसार में अनेक लोग आपको धोखा देते हैं। लेकिन जो शक्ति आपको प्रेम करती है और जिस आप आंख बंद कर विश्वास कर सकते हैं, वह हैं भगवान। वे हमारे हैं और हम उनके हैं। तो क्यों न भगवान के रास्ते पर चलें। तो इस तरह जीव के सामने जो दो रास्ते हैं उनमें से एक हमें नष्ट करने के लिए है और दूसरा हमें सच्चा आनंद देने के लिए है। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि जो माया या शैतान का रास्ता है उसी में आनंद ज्यादा मिलने का भ्रम होता है। वह आनंद जहरीला है। वह मीठा जहर है। वह हमें व्यसनों में फंसाता है। इंद्रिय सुख में फंसाता है। दूसरा रास्ता जो सच्चा रास्ता है, उसमें पहले नीरसता लगेगी। तरह तरह के भ्रम आएंगे। शंकाएं आएंगी। संशय होगा। लेकिन गीता में कहा गया है न कि संशयात्मा विनश्यति। संशय से अपना ही नुकसान होता है। पातंजलि योग सूत्र में कहा गया है कि संशय भी साधना के मार्ग में बाधा है। अरे, जब आपको पता है कि सब कुछ भगवान ही हैं। यह समूची सृष्टि भगवान की है। आप भगवान के हैं। तो फिर संशय किस बात का। जिस भगवान को पाने के लिए गौतम बुद्ध ने बहुत बड़े साम्राज्य का राज पद छोड़ दिया। अत्यंत सुंदर स्त्री और पुत्र छोड़ दिया, उसके प्रति शंका कैसी? भगवान ही सबकुछ हैं। बाकी कोई आपका साथ नहीं देगा। तो क्यों नहीं उसके प्रति आसक्ति पैदा करें। हां, भगवान के प्रति आसक्ति पैदा करना शुरू में कठिन लगेगा। लेकिन धीरे धीरे आप इसके अभ्यस्त हो जाएंगे। तब पता चलेगा और महसूस होने लगेगा कि हमें तो पहले ही ईश्वर की शरण में जाना चाहिए था। कितनी देर कर दी। अब भी समय है। आज से ही ईश्वर के प्रति शरणागति हो जाए तो बस काम बन जाएगा।

Wednesday, March 24, 2010

ब्रह्मांड के सर्वाधिक सुंदर पुरुष


विनय बिहारी सिंह



ऋषियों ने कहा है कि कौशल्या के पेट से राजा दशरथ का जो पुत्र हुआ वह अनंत ब्रह्मांडों का स्वामी है। वह अजानबाहु (घुटने तक लंबे हाथ) है, कमल नयन है यानी आंखें अत्यंत मोहक हैं। होठ गुलाबी हैं और संपूर्ण शरीर मानों परम आकर्षक है। जो उन्हें देखता है, वह देखता ही रह जाता है। देखने वाल तृप्त नहीं होता। वे आंखों से ओझल होते हैं तो मन छटपटाने लगता है। किसी भक्त ने कहा है कि भगवान राम की देखभाल करने वाली नौकरानी कितनी भाग्यवान थी। तो दूसरे भक्त ने कहा है कि माता कौशल्या अगर राम जी की मां हैं तो उनकी देखभाल करने वाली नौकरानी भी उनसे कम भाग्यवान नहीं है। ज्यादातर तो वे नौकरानी के पास ही रहते थे। उनके नटखट हावभावों का आनंद नौकरानी लेती थी। निश्चय ही मां कौशल्या के आनंद से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन नौकरानी भी तो भाग्यवान ही थी। इस तरह अलग- अलग लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। भगवान राम के बाल घुंघराले हैं। उनका रंग सांवला सलोना यानी हल्का सा सांवला है। कैसा सांवला? मानो नीला मेघ हो। या नील कमल हो। एक संत से किसी ने पूछा कि क्या मनुष्य का रंग नील मेघ की तरह हो सकता है? तो उस संत ने उत्तर दिया- अगर मनुष्य के चेहरे पर तेज हो, चेहरा देदिप्यमान हो तो रंग अत्यंत मनोहारी लगता है। इसे ही नील मेघ कहा गया है। यह तो हुई साधारण मनुष्य की बात। अब भगवान राम पर आएं। भगवान राम के बारे में कहा जाता है कि लोग उनकी तरफ जितनी बार देखते थे, वे उन्हें उतना ही ज्यादा आकर्षक पाते थे। उनका चितवन, उनकी चाल, उनका हंसना और उनका बोलना इत्यादि अत्यंत मोहक था। अब आप पूछ सकते हैं कि बात तो आप भगवान राम की कर रहे हैं और वर्णन भौतिक कर रहे हैं। यह क्या है? मेरा विनम्र उत्तर यह है कि भगवान राम इस ब्रह्मांड के सर्वाधिक सुंदर पुरुष हैं और मां सीता इस ब्रह्मांड की सबसे सुंदर स्त्री। सौंदर्य के जितने भी विशेषण आज तक बने हैं, वे इन्हीं दोनों को देख कर बने हैं। और भविष्य में भी जितने विशेषण होंगे वे इनके सौंदर्य को लेकर ही होंगे। क्योंकि इनसे सुंदर न आज तक कोई हुआ है और न होगा। हां, भगवान कृष्ण भी तो राम के ही अवतार थे। इसलिए उनके सौंदर्य की तुलना भी किसी से नहीं हो सकती। ऋषि वल्लभाचार्य ने भगवान कृष्ण का दर्शन किया। यह जानकारी उनके शिष्यों को मिल गई। उन्होंने वल्लभाचार्य से पूछा कि भगवान देखने में कैसे थे? तो वल्लभाचार्य ने कहा- मधुराधिपते रखिलं मधुरं। उनका हर अंग, हर क्रिया कलाप ही मधुर है। वचनं मधुरं, अधरं मधुरं, नयनम मधुरं हृदयं मधुरं......। भजन लंबा है। तात्पर्य यह कि आप भगवान का दर्शन पा कर मधुरता से ओतप्रोत हो जाते हैं। जैसे कोई रंग से ओतप्रोत हो। या किसी नदी में स्नान करके कोई जल से ओतप्रोत रहता है। भक्त भी भगवान के दर्शन करके ईश्ववर तत्व से ओतप्रोत हो जाता है।

Tuesday, March 23, 2010

रामनवमी और राम तत्व




विनय बिहारी सिंह


जब भी रामनवमी आती है भक्त एक बार फिर कामना करते हैं कि उनकी आत्मा हमेशा परमात्मा यानी राम में मिली रहे और राम की चेतना में ही वे संसार का भी काम करते रहें। लेकिन एक और पक्ष भी है। रामनवमी आती है नवरात्रि के अंतिम दिन। तो क्या जगन्माता और राम अलग- अलग हैं? बिल्कुल नहीं। राम की ही शक्ति हैं जगन्माता। या कहें रचनात्मक महाशक्ति में ही समाए हैं राम। दोनों तो एक ही हैं। अनेक भक्त नवरात्रि के पहले और आखिरी दिन व्रत रखते हैं तो अनेक पूरे नौ दिनों तक व्रत रखते हैं। व्रत रखने से एक तो शरीर शुद्ध होता है दूसरे यह बात फिर महसूस होती है कि हम अपनी आदतों के गुलाम हैं। जैसे हमारी आदत है कि रोज अन्न खाते हैं। तो जब वही अन्न एक दिन नहीं मिलता और उसके बदले दूध, फल और छेना या सूखे फल खाने को मिलता है तो कई लोगों को अच्छा नहीं लगता। उनका पेट तो अन्न के बिना छटपटाता रहता है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि पेट से ज्यादा हमारा दिमाग छटपटाता है। दिमाग में बैठ गया है कि बिना अन्न के हमारा गुजारा नहीं है। यह ठीक है कि अन्न खाना जरूरी है। रोज भोजन के रूप में फल नहीं खाया जा सकता है। हां, नाश्ते में रोज फल ले सकते हैं। लेकिन एक दिन तो कम से कम सिर्फ फल पर या निराहार रहा जा सकता है। इससे आदमी मर तो नहीं जाएगा। लेकिन हममें से बहुत लोग एक दिन भी व्रत नहीं रख सकते। हां, उनकी बात अलग है जो गैस के मरीज हैं। जिन्हें व्रत रखने से पेट में गैस बनती है और सिरदर्द होने लगता है या चक्कर आने लगते हैं उन्हें तो बिल्कुल ही व्रत नहीं रखना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए व्रत न रखना ही ज्यादा अच्छा है। बीमार लोगों के लिए भी व्रत जरूरी नहीं है। लेकिन सामान्यतया स्वस्थ लोगों को तो व्रत रखने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। एक जमाने में व्रत रखने में मैं काफी रूचि लेता था। लेकिन पिछले सात सालों से गैसकी बीमारी के कारण व्रत अनियमित हो गए हैं। ऐसे में मैं व्रत निराहार रह कर नहीं कर पाता।दिन में एक दो बार फल खा लेता हूं। पहले की तरह सिर्फ सुबह शाम एक दो फल खा कर नहीं रह पाता। नवरात्रि के दिनों में भी पहले और अंतिम दिन ही व्रत रखता हूं। आपमें से कई लोग ऐसा ही करते होंगे। एपेंडिक्स का आपरेशन बहुत साधारण आपरेशन माना जाता है। लेकिन जब से मेरे अपेंडिक्स को आपरेट करके निकाल दिया गया है, पता नहीं क्यों व्रत रखने में दिक्कत होने लगी है। फिर भी नवरात्रि के पहले औऱ अंतिम दिन व्रत करके अपार सुख मिलता है। पेट हल्का रहता है और जिस मौके पर व्रत रखा गया है, उसकी स्मृति भी बार- बार होती है। व्रत का मौका आते ही लगता है कितना अच्छा दिन है, आज व्रत रहना है। फल खाते हुए व्रत रखना भी बुरा नहीं है। हां, निराहार यानी सिर्फ पानी पीकर व्रत करना भी अलग तरह का सुखदायी अनुभव है। सुबह और शाम को संतरे इत्यादि का रस ले लें तो और भी अच्छा। लेकिन वह अब मैं नहीं कर पाता। आप में से जो कर पाते हैं वे उस आनंद को पा रहे होंगे। एक तो इससे हमारे शरीर के पूरे सिस्टम की सफाई हो जाती है और दूसरे शरीर में लाभदायक चुंबकीय तत्व आ जाते हैं। आपका व्यक्तित्व चुंबकीय या मैग्नेटिक हो जाता है। भगवान राम जब बनवास पर थे तो ज्यादातर वे फलाहार ही करते थे। एक बार जब राम भक्त शबरी को पता चला कि राम उसके घर के पास से गुजरने वाले हैं तो उसनें अपने घर के आंगन से बेर तोड़े। और भगवान राम को अपने घर आमंत्रित करके ले गई। उन्हें आसन पर प्रेम से बिठाया। फिर शुरू हुआ बेर खिलाने का कार्यक्रम। यह भी अद्भुत था। शबरी भीलनी थी। पहले खुद बेर चख कर देख लेती थी। अगर बेर मीठा है तो वही बेर का जूठा फल भगवान राम को खाने को देती। भगवान राम भी वही जूठा बेर प्रेम से खाते और ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे जैसे उन्होंने जीवन में पहली बार ऐसा स्वादिष्ट फल खाया हो। शबरी यह देख आनंद में मग्न थी। शबरी भगवान राम की अनन्य भक्त थी। भगवान अपने भक्त का जूठा क्यों न खाएं। शबरी तो राममय थी। उसे तो होश ही नहीं था कि वह अपने प्रियतम भगवान को जूठा बेर खिला रही है। और क्या भगवान राम को होश था? उन्हें भी इससे क्या फर्क पड़ता था। हां, हम लोगों को लग रहा है कि अरे शबरी ने तो जूठे बेर खिलाए और भगवान ने खाए। लेकिन उन दोनों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। हां, हमें इससे प्रेरणा मिलती है कि अगर हम भगवान के करीब जाना चाहें तो तमाम तरह के आवरण उतार फेंकने पड़ेंगे। शबरी जैसा होना पड़ेगा। एक अत्यंत साधारण भीलनी, अनंत कोटि ब्रह्मांड के स्वामी को जूठे बेर खिला रही है। कौन ज्यादा ताकतवर है। मुझे लगता है शबरी। कैसे वह ताकतवर है? सिर्फ प्रेम से। प्रेम में वह विलक्षण ताकत है कि वह कुछ भी कर सकता है। लेकिन शबरी अपनी इस ताकत से भी अनभिग्य है। वह तो प्रेम से सराबोर है। हमें भले लग रहा है कि वह ज्यादा ताकतवर है क्योंकि भक्त को भगवान हमेशा अपने से ऊपर मानते हैं। लेकिन भक्त को इससे कोई मतलब नहीं रहता कि वह भगवान से बड़ा है या छोटा। वह तो बस दिव्य प्रेम से सराबोर रहता है। इससे ज्यादा उसे कुछ नहीं चाहिए। सात्विक, निःस्वार्थ प्रेम से बड़ी आज तक कोई ताकत हुई है क्या?

Monday, March 22, 2010

आपको सोचने की शक्ति देता कौन है?



विनय बिहारी सिंह





कभी आपने सोचा है कि आपको सोचने की शक्ति कौन देता है? और क्या आपने कभी महसूस किया है कि आपके दिमाग में आपके मन में कितने विचार आते और जाते हैं? यह एक बहुत ही रोचक तथ्य है। आप एक दिन नोट कीजिए कि आपके दिमाग में कितने विचार आते और जाते हैं। हां, जरा कठिन काम जरूर है लेकिन अत्यंत रोचक काम है। आप यह देख कर हैरान रह जाएंगे कि आपके दिमाग में अनेक फालतू के विचार आते हैं। इन विचारों का कोई मतलब नहीं है। अनावश्यक रूप से ये आपके मन में आते हैं। ऐसा क्यों होता है? आप कहेंगे कि हमें सोचने की शक्ति तो भगवान देते हैं। बिना उनकी शक्ति के हम बोल भी नहीं सकते। सुन भी नहीं सकते। एक बार वे अपनी दी हुई शक्ति वापस ले लेंगे तो हम मुर्दा हो जाएंगे। तब घर के ही लोग कहने लगेंगे- जल्दी श्मशान ले चलो। जल्दी शव वाही खाट खरीद कर लाओ। वे उसी दिन और ज्यादा से ज्यादा अगले दिन हमें ले जाकर श्मशान में जला आएंगे। इसीलिए हमें रोज ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने हमें जो जीवन दिया है वह अमूल्य है। इसका हम सदुपयोग कर रहे हैं। इसके लिए भी ईश्वर को धन्यवाद। बात चल रही थी विचारों की। हमारे मन में फालतू या अनावश्यक विचार क्यों आते हैं? इसका उत्तर है- क्योंकि हमारे मन पर हमारा नियंत्रण नहीं है। हमारे शरीर पर हमारा नियंत्रण है? आप कहेंगे- हां। लेकिन जैसे ही आपको नींद आने लगेगी, आपका सारा नियंत्रण खत्म हो जाएगा। आपका शरीर भी आपके वश में नहीं रहेगा। इसीलिए साधु- संतों ने हमें आत्मनियंत्रण की शिक्षा दी है। आत्मसंयम की शिक्षा दी है। हमारे शरीर पर हमारा नियंत्रण नहीं रहेगा तो हम क्या करेंगे। बेकार की बातें सोचेंगे। बेकार में तनाव ग्रस्त रहेंगे और कभी भी शांति का स्वाद आनंद का स्वाद नहीं चख पाएंगे। जबकि ईश्वर शांति और आनंद के स्वरूप हैं। तो क्यों नहीं हम ईश्वर की गोद में बैठ कर उससे प्रार्थना करें कि हे भगवान, अब तक हमने जो किया सो किया। अब तो हमें माफ कीजिए और हमें शक्ति दीजिए कि हम अपने शरीर, मन और बुद्धि पर नियंत्रण पा सकें। धीरे- धीरे अभ्यास करने से आपका मन नियंत्रित हो जाएगा। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- शरीर से ज्यादा मन को महत्व दीजिए। माइंड को ताकतवर बनाइए। तभी आप शांत जीवन जी सकेंगे।

Saturday, March 20, 2010

मच्छरों का इलाज में इस्तेमाल



विनय बिहारी सिंह




वैग्यानिकों ने ऐसे बायलाजिकल मच्छर बनाने में सफलता हासिल की है जिनमें वैक्सिन भर दिए जाते हैं। फिर उन्हें उड़ने के लिए आजाद कर दिया जाता है। वे जिस व्यक्ति को काटते हैं उसमें वह दवा या वैक्सिन का प्रवेश हो जाता है। अभी यह प्रयोग मलेरिया प्रतिरोधी वैक्सिन को लगाने के लिए किया जा रहा है। जिन इलाकों में मलेरिया की शिकायतें मिलती हैं, वहां ये मच्छर छोड़ दिए जाते हैं और वे लगभग हर आदमी को डंक मार देते हैं। नतीजा यह होता है कि सभी लोग मलेरिया से मुक्त हो जाते हैं। यह काम किया है जिची मेडिकल यूनिवर्सिटी ने जो जापान में है। वैग्यानिकों का कहना है कि अब तक मच्छर बीमारी फैलाने का काम करते थे। लेकिन उनके बनाए मच्छर मेडिकल टीम की भूमिका निभा रहे हैं। ये मच्छर अपना काम कर प्रयोगशाला में लौट आते हैं क्योंकि इनका विशेष भोजन वहीं पर होता है। इस तरह यह इक्कीसवीं शताब्दी का अद्भुत प्रयोग मील का पत्थर बन गया है।
दूसरी तरफ जापान में ही लचीला लोहा तैयार किया गया है। इसे मकानों की नींव में लगा दिया जाता है। जब भूकंप आता है तो मकान झुक जाता है। लेकिन फिर जल्दी ही वापस अपनी जगह पर तन कर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसकी नींव में लचीला लोहा है। इसकी मजबूती भी सख्त लोहे की तरह ही है। बल्कि कुछ लोगों का कहना है कि यह लोहा सख्त लोहे से भी मजबूत है। इस लोहे का इस्तेमाल हृदय के वाल्व बनाने में भी किया जा सकता है। इस पर शोध हो रहा है क्योंकि यह बहुत सस्ता और प्रभावकारी साबित हो रहा है।
इन शोधों से हमें एक बार फिर अपने ऋषि- मुनियों की याद ताजा हो जाती है। वे लोग सूक्ष्म से स्थूल चीजें बना देते थे और उसका इस्तेमाल ईश्वर भक्तों के कल्याण के लिए किया करते थे। आज भी जो सच्चे साधु- संत हैं उन्हें कोई नहीं जानता। वे चुपचाप साधना में लीन हैं और मनुष्य के कल्याण के लिए वे लगातार ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उनका मकसद सिर्फ एक ही होता है- जन कल्याण और ईश्वर की प्राप्ति।

Friday, March 19, 2010

व्यास ऋषि और गोपियां


  1. विनय बिहारी सिंह


  2. जब भगवान कृष्ण कुछ दिनों के लिए मथुरा में रह रहे थे तो वृंदावन की गोपियां यमुना नदी पार कर उन्हें दूध, मक्खन और विभिन्न प्रकार की मिठाइयां खिलाती थीं। यह उनका रोज का क्रम था। वृंदावन में ही ऋषि व्यास जी रहते थे। उनका आश्रम यमुना के किनारे ही था। एक दिन यमुना में बहुत बाढ़ आई हुई थी। गोपियों के लिए उस पार जाना बहुत मुश्किल था। गोपियां व्यास जी के पास गईं और कहा कि वे कुछ उपाय करें ताकि उफनती यमुना के पार जाया जा सके। व्यास जी ने पूछा- उस पार क्यों जाना चाहती हो? गोपियों ने कहा- आप तो जानते ही हैं कि भगवान कृष्ण के लिए हम लोग रोज उस पार जलपान ले जाती हैं। व्यास जी ने पूछा- भगवान के लिए क्या ले जा रही हो? गोपियों ने सारे व्यंजन दिखाए। व्यास जी ने कहा- वाह, कृष्ण भगवान के लिए इतना कुछ और मेरे लिए कुछ नहीं? तब मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं? मैं उस पार जाने की व्यवस्था कर दूंगा, लेकिन इस जलपान में से मुझे भी देना पड़ेगा। गोपियां क्या करतीं। एक श्रेष्ठ ऋषि जलपान मांग रहे हैं। सबने अपनी थालियों में से व्यास जी के लिए हिस्सा निकाला और उनके सामने परोस दिया। व्यास ने बड़े चाव से जलपान किया। फिर और जलपान मांगा। गोपियां मन ही मन सोच रही थीं कि सारा जलपान व्यास जी ही ले लेंगे तो कृष्ण भगवान क्या खाएंगे। लेकिन थोड़ा सा और देने से व्यास जी संतुष्ट हो गए। फिर वे सारी गोपियों को लेकर यमुना जी के किनारे आए और कहा- हे यमुना नदी, अगर मैं आज कुछ नहीं खाया है तो तुम इन गोपियों को उस पार जाने के लिए रास्ता दे दो। यमुना नदी दो हिस्से में बंट गई और बीच में सूखा सा रास्ता बन गया। दोनों तरफ पानी की दीवार और बीच में चौड़ा सा सूखा रास्ता। गोपियां आराम से उस पार गईँ। देखा कि वहां कृष्ण भगवान सोए हुए हैं। उन्हें गोपियों ने जगाया। लेकिन भगवान कृष्ण ने नाश्ते में कोई रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि आज वे नाश्ता नहीं करेंगे। गोपियों ने इसका कारण पूछा। भगवान ने कहा- उस पार यमुना के किनारे ऋषि व्यास जी हैं। उन्होंने तुम्हारा यह जलपान मुझे ही समर्पित किया। वे स्वयं तो नाश्ता कर नहीं रहे थे। सारा जलपान मुझे समर्पित कर रहे थे। वह तो मेरे पेट में जा रहा था। अब मेरा पेट भर गया है। फिर दुबारा नाश्ता कैसे करूं। अब गोपियों की समझ में आया। व्यास मुनि ने क्यों यमुना जी से कहा- अगर मैंने कुछ नहीं खाया तो हे यमुना तुम दो भाग में बंट जाओ। और यमुना नदी दो भागों में बंट गई। इसका अर्थ है सच्चे हृदय और अनन्य भक्ति से भगवान को स्मरण कर किया हुआ कोई भी सात्विक काम भगवान की कृपा के दायरे में आ जाता है। वह काम भगवान का ही हो जाता है।

Thursday, March 18, 2010

जीसस क्राइस्ट को याद करते हुए




विनय बिहारी सिंह



जीसस क्राइस्ट ने कहा है- सीक ये द किंगडम आफ गाड। रेस्ट थिंग्स विल बी एडेड अन टू यू। बाइबिल की ये पंक्तियां पढ़ते हुए सुख मिलता है। यानी पहले भगवान की चाहत करो। जब वे मिल जाएंगे तो बाकी सारी चीजें तुम्हें मिल जाएंगी। तुम मालामाल हो जाओगे। सारे धर्म ग्रंथों में यही बातें हैं। आप पूछ सकते हैं कि आज जीसस की बात क्यों? तो मित्रों पता नहीं क्यों आज सुबह से जीसस क्राइस्ट याद आ रहे हैं। उनका सूली पर चढना और जो उन्हें सूली पर चढ़ा रहे हैं उनके प्रति उनके मन में दया भाव। वे भगवान से कहते हैं- हे ईश्वर इन्हें माफ कर दो क्योंकि इन्हें पता नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं। हां, अब याद आया। कल मैंने जीसस क्राइस्ट का एक अत्यंत मनोहारी चित्र देखा था। शायद इसीलिए सुबह से ही उनकी कही ये पंक्तियां याद आ रही हैं। उस चित्र में जीसस करुणा की मूर्ति लग रहे हैं। मैंने वह चित्र बहुत गौर से देखा। मैं ईसाई नहीं हूं। लेकिन जबसे पढ़ा है कि जीसस भारत आए थे और पुरी में कुछ ब्राह्मणों से उन्होंने वेद और पुराण की जानकारी पाई, तबसे उनमें उत्सुकता बढ़ती गई। यदि उनकी रुचि वेद- पुराणों में थी तो मेरी रुचि जीसस में क्यों नहीं हो सकती? इसीलिए जीसस अपने लगते हैं। बाइबिल में अनेक बातें हमारे धर्म ग्रंथों से मिलती जुलती हैं। परमहंस योगानंद जी के गुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर जी ने बाइबिल और हिंदू धर्मग्रंथों में साम्य पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है जो आज भी उपलब्ध है। इस पुस्तक का नाम है कैवल्य दर्शनम। इसे योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया ने प्रकाशित किया है। इस पुस्तक के पढ़ने के बाद जीसस हमें अपने और करीब लगने लगते हैं। लेकिन इस पुस्तक में जीसस के भारत आने की बात नहीं लिखी है। मैंने जीसस के भारत आने की बात एक यूरोपीय लेखक की किताब में और स्वामी अभेदानंद की पुस्तक माई जर्नी टू तिब्बत में पढ़ी है।

Wednesday, March 17, 2010

उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली जगन्माता




विनय बिहारी सिंह



गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है- उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली मां सीता को प्रणाम करता हूं। पश्चिम बंगाल में मां काली को उत्पत्ति, स्थिति (पोषण करने वाली) और संहार करने वाली माता कहा जाता है। एक संत ने कहा है कि मां सीता या मां पार्वती आदि शक्ति हैं। वैसे तो ईश्वर एक ही हैं। लेकिन चूंकि उन्होंने स्वयं कहा है कि माता, पिता, सखा और बंधु सब मैं ही हूं, इसलिए संतों ने कहा है कि प्रकृति और पुरुष के रूप में सीताराम, राधाकृष्ण या शिव- पार्वती दिखाया है। इसमें माता को प्रकृति और भगवान को पुरुष कहा गया है। परमहंस योगानंद जी ने एक भजन लिखा है- राधा राधा राधा गोविंद जय। मूल भजन अंग्रेजी में इस तरह है- स्पिररिट एंड नेचर डांसिंग टुगेदर। विक्ट्री टू स्पिरिट विक्ट्री टू नेचर। राधा राधा राधा गोविंद जय। डांसिंग टुगेदर का अर्थ है सृष्टि की प्रक्रिया। बिना प्रकृति के संसार में कोई भी चीज नहीं बन सकती। शरीर बनने के लिए ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों की जरूरत है। इसके बाद कर्मेंद्रिय और ग्यानेंद्रिय और फिर इसके बाद पांच प्राण। इसके बाद मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त। इसलिए परमहंस जी ने इस भजन में सार तत्व डाल दिया है।
मां सीता को कई लोग कठिन परिस्थितियों से गुजरने वाली जगन्माता कहते हैं। एक तो उनके पति भगवान राम को बनवास मिला। दूसरे उन्हें रावण जैसा राक्षस हर ले गया और लंका में कैद रखा। उन्हें तरह तरह के कष्ट दिए। भगवान राम ने उन्हें मुक्त किया। लेकिन फिर भी मां सीता को सुख नहीं मिला। मर्यादा बनाए रखने के नियम के तहत भगवान राम यानी उनके पति ने उनका परित्याग कर दिया। वे वन में एक पूज्य ऋषि के आश्रम में रहीं और वहीं लव और कुश नामक बच्चों को जन्म दिया। बाद में इन्हीं लव और कुश ने अश्वमेध यग्य के समय अपने पिता से ही युद्ध किया और तब भगवान राम को पता चल गया कि ये दोनों बालक कौन हैं। जाहिर है मां सीता के प्रति सहानुभूति रखने वालों की कमी नहीं है। लेकिन तब भी तुलसीदास जी ने कहा है- उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली मां सीता को प्रणाम है। आप प्रश्न कर सकते हैं कि जो मां सीता इतने कष्ट झेलती रहीं वे इतनी शक्तिशाली कैसे हो सकती हैं। तो इसका उत्तर है- यह लोगों को सीख देने के लिए है। मर्यादा को बनाए रखने के लिए अगर कष्ट भी झेलना पड़े तो कोई बात नहीं। अनीति न हो पाए। तभी प्रजा सुखी रहेगी। भगवान राम जैसा राजा और मां सीता जैसी रानी हो तो राज्य सुखी क्यों नहीं रहेगा? राजा कैसा होना चाहिए, इसे भगवान राम ने बता दिया है। मां सीता ने बता दिया है। इसीलिए मां सीता उत्पत्ति, स्थिति और संहार की देवी हैं। शक्तिशाली होते हुए भी लोक मर्यादा का पालन करना ही बड़प्पन है।

Tuesday, March 16, 2010

अंधेरे से डर क्यों

विनय बिहारी सिंह

हममें से कई लोगों को अंधेरे में बहुत डर लगता है। एक संत ने कहा है कि जब हम मां के पेट में थे तो वहां भी अंधेरा ही था। लेकिन चूंकि हम अंधेरे और उजाले का फर्क करना नहीं जानते थे इसलिए मां के पेट में आनंद से रह रहे थे। बड़े हो कर हमने अंधेरे से डरना शुरू किया। हमें लगता है कि अंधेरे में पता नहीं क्या है इसलिए डरते हैं। अंधेरा यानी अनजाना। लेकिन योगी अंधेरे को भी ईश्वर मान कर चलते हैं। वे अपने साथ टार्च लेकर जरूर चलते हैं ताकि जहरीले जंतुओं से बचाव हो सके लेकिन योगी डरते नहीं हैं। वे कहते हैं कि मां काली भी तो काले रंग की बताई गई हैं। वे तो जगन्माता हैं। उनसे कोई डर नहीं लगता। माता से कैसा डर। जहां मां हैं वहां तो सुरक्षा ही सुरक्षा है। डरने की तो बात नहीं है। एक काली भक्त का कहना है कि मां काली कहती हैं- डर क्या है रे पागल। मैं तो हूं ही। यानी अंधेरा क्या औऱ उजाला क्या। वे हर जगह हैं। काली भक्त राम प्रसाद ने कहा है- मां काली हर जगह हैं। जिनकी आंखें बंद हैं वे ही मां काली के बारे में कहते हैं कि वे हर जगह छुपी हुई हैं। वे छुपी कहां हैं। वे तो हर वक्त या कहें हर सेकेंड हमारे आसपास रहती हैं। चूंकि हमारा दिमाग हर वक्त हजार हजार बातों में फंसा रहता है इसलिए मां काली को महसूस नहीं कर पाते। तनिक दिमाग शांत हो तब तो जगन्माता की उपस्थिति का अहसास होगा। रामप्रसाद उच्च कोटि के काली भक्त थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे जब चाहे मां काली का मूर्त रूप देख सकते थे। वे एक बार कहते थे- मां दर्शन दो। बस मां काली अपने प्रिय भक्त के सामने प्रकट हो जाती थीं। रामप्रसाद जब तक चाहे उनसे बातें करते थे। मां उन्हें खिलाती पिलाती थीं। कभी खीर तो कभी मिठाई। रामप्रसाद कहते थे- मां खीर खाऊंगा। मां काली तुरंत उन्हें खीर प्रस्तुत कर देती थीं। वे वही खा कर आनंद में डूब जाते थे। ऐसे सौभाग्यशाली भक्त रामकृष्ण परमहंस भी थे।

Monday, March 15, 2010

पृथ्वी पर एक तारे का पड़ रहा है दुष्प्रभाव

विनय बिहारी सिंह



वैग्यानिकों ने दावा किया है कि एक अदृश्य तारा जो वृहस्पति ग्रह से पांच गुना बड़ा है हमारी पृथ्वी के लिए घातक पुच्छल तारे छोड़ रहा है। इसका नाम नेमेसिस दिया गया है। इसका प्रभाव एक उदाहरण से समझा जा सकता है। आज २६ मिलियन वर्षों पहले इसी तरह के प्रभाव से उस समय डायनासोर जैसे जीव लगातार मरते गए और उनका अस्तित्व समाप्त हो गया। इसे वैग्यानिक डेथ स्टार कह रहे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह तारा आकाशमंडल में लगातार स्पिन कर रहा है यानी गोल गोल घूम रहा है। इसका गुरुत्वाकर्षण बर्फ के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। यही बर्फ के गोले पृथ्वी की तरफ आ रहे हैं और पृथ्वी के कुछ जीवों को मार रहे हैं। जैसे आज से लाखों साल पहले स्टेराएड्स के कारण डायनासोर मारे गए थे। यूनिवर्सिटी आफ ल्यूसीनिया के जॉन मेटीज ने कहा है कि ये बर्फ के गोले दरअसल नेमेसिस के पुच्छल तारे ही हैं। अब नासा के वैग्यानिक इस नेमेसिस नामक तारे के बारे में और ज्यादा जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। इतने दिनों से इस तारे के बारे में वैग्यानिक नहीं जान सके थे। लेकिन अब इसके खतरनाक परिणामों के कारण वे इसमें रुचि ले रहे हैं ताकि पृथ्वी के लुप्त हो रहे जीवों की रक्षा की जा सके।

Friday, March 12, 2010

हमारा जन्म हुआ है ईश्वर को जानने के लिए

विनय बिहारी सिंह



हमारा जन्म क्यों हुआ है। ज्यादातर लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है। परमहंस योगानंद और रामकृष्ण परमहंस ने बार बार कहा है कि हमारा जन्म ईश्वर को जानने के लिए हुआ है। मनुष्य सबसे विकसित प्राणी है। उसका जन्म इसलिए नहीं हुआ है कि वह पैदा हो और बड़ा होकर हजार हजार महत्वाकांक्षाएं पाले। फिर बूढ़ा हो और अनंत अधूरी इच्छाएं लिए हुए ही मर जाए। फिर उन्हीं इच्छाओं के कारण जन्म हो और इस तरह हम बार बार इस संसार के कष्टों को झेलें। हमारा जन्म तो इसलिए हुआ है कि हम इस संसार से सबक लेते हुए जानें कि हमारा जन्मदाता ईश्वर है और उसके बिना सबकुछ अधूरा है। उसके बिना हम कोई भी आनंद नहीं ले सकते। संसार के छोटे छोटे आनंद ईश्वरीय आनंद के सामने फीके हैं। इंद्रियों से जो सुख मिलता है वह तो और भी फीका है। मान लीजिए आपने खूब स्वादिष्ट भोजन किया। खाते हुए आपको चरम आनंद आया लेकिन भोजन के एक- दो घंटे बाद आपका वह स्वाद गायब हो जाता है। और मान लीजिए लगातार तीन दिन तक वही स्वादिष्ट भोजन आपने किया। एक ही भोजन बार बार किया। तब आपको जो भोजन पहले दिन अत्यंत सुखकर लगा वही बाद में उबाऊ लगने लगेगा। यही मनुष्य का स्वभाव है। उसे हर रोज नई और स्वादिष्ट चीजें चाहिए। और इस इच्छा का अंत भी नहीं है। न इस जीभ की इच्छाओं का अंत है और न ही भोजन के प्रति ललक का। इसीलिए ऋषियों ने कहा है कि जीभ पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए। और जीभ पर ही नहीं हर इंद्रिय पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए। ये इंद्रियां ही हमें गुलाम बनाती हैं। मन इन्हीं इंद्रियों के माध्यम से हमें नाच नचाता है।? इसीलिए संतों ने कहा है कि हमें आत्मनियंत्रण का सहारा लेना चाहिए। सेल्फ कंट्रोल। यानी आप ही अपने भाग्य विधाता हैं। सेल्फ कंट्रोल है तो हर चीज आपके नियंत्रण में है लेकिन अगर सेल्फ कंट्रोल नहीं है तो आप उस आदत या इंद्रिय के गुलाम हो गए हैं। गुलामी अच्छी स्थिति नहीं है। संतों ने कहा है कि हमें मन और शरीर दोनों पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसके लिए एक प्रयोग उन्होंने बताया है। जो काम आपको लगे कि बहुत कठिन है उसे आप करिए। जैसे अगर आपको लगे कि चाय छोड़ना बहुत कठिन है। तो आप एक दिन बिना चाय के रहिए। बस आपका सेल्फ कंट्रोल मजबूत होना शुरू हो जाएगा। सिगरेट छोड़ना मुश्किल लग रहा है तो उसे ही छोड़ कर दिखा दीजिए कि आपके दिमाग पर आपका नियंत्रण है। आपका कंट्रोल है। इस तरह हम धीरे धीरे ईश्वर के करीब पहुंचते हैं। हमारा जन्म ही ईश्वर को जानने के लिए हुआ है। मन इधर उधर भटकता है तो इससे हमारा नुकसान होता है। मन को पकड़ कर ईश्वर के चरणों में लगाना ही सबसे अच्छी कला है। ईश्वर प्रेम के अवतार हैं। हम सबको प्रेम चाहिए। लेकिन यह दिव्य प्रेम हममें से कितनों को नसीब होता है। बहुत कम लोगों को। मनुष्य का प्रेम तो स्वार्थी होता है। एकमात्र ईश्वर का प्रेम ही निःस्वार्थ होता है। वे हमें हमेशा प्रेम करते हैं और हमारे प्रेम की प्रतीक्षा करते रहते हैं। ऐसा प्रिय पाकर भी हम ईश्वर को भूले रहते हैं।

Wednesday, March 10, 2010

रोज एक दिन उम्र कम हो रही है

विनय बिहारी सिंह



हम सांसारिक कामों में इस कदर डूबे हुए हैं कि पता ही नहीं चलता कि हमारी उम्र रोज एक दिन घट रही है। धीरे धीरे हम मृत्यु की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। लेकिन हमें इसका आभास तक नहीं है। चंद्रमा धीरे धीरे बढ़ता और घटता रहता है। वह भी हमें याद दिलाता है कि हमारी नियति क्या है। लेकिन फिर भी हम नहीं समझ पाते। यही माया है। हमें लगता है कि अमुक काम भगवान को याद करने से भी ज्यादा जरूरी है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि ईश्वर का स्थान सबसे पहले है। यह संसार हमारे लिए स्कूल की तरह है। हम इससे शिक्षा लेते हैं। दुख में भी और सुख में भी। हमें हर रोज कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है। कभी दुर्घटना से बचते हैं तो कभी किसी खतरे से। कुछ लोग इन सब चीजों से शिक्षा लेते हैं लेकिन कुछ लोग इसे साधारण बात मान कर फिर सांसारिक कामों में मशगूल होते हैं। हम सौ सौ ठोकर खाते हैं लेकिन कोई शिक्षा नहीं लेते। आखिर ऐसा क्यों होता है?। गहराई से सोचें तो पता चलता है कि हम अपनी आदतों और सोच के गुलाम हो गए हैं। हमारा दिमाग एक खास पैटर्न पर सोचने का आदी हो गया है। वह इस दायरे के बाहर सोच ही नहीं पाता। कई लोग तो यह भी विश्वास नहीं करते कि ईश्वर है। वे कहते हैं कि जो दिखता नहीं उस पर कैसे विश्वास करें। किसी के मन में आपके प्रति नफरत है और वह आपको देखते ही हंसता है तो उसकी नफरत तो दिखती नहीं। तो क्या आप विश्वास नहीं करेंगे कि उस मनुष्य के भीतर नफरत है। हां शायद आप तब विश्वास करेंगे जब आपको ठोकर लगेगी। लेकिन कई लोगों के मनोभाव आप जीवन भर जान नहीं पाते क्योंकि आपको ठोकर नहीं लगती। इसी तरह भगवान हैं। वे दिखते नहीं लेकिन सारे संसार को चुपचाप रह कर चलाते हैं। वे मालिक हैं लेकिन छुपे हुए हैं। और हम तो छोटा मोटा काम करके अहंकार में डूबे रहते हैं और बार बार कहते हैं कि मैंने यह किया है मैंने वह किया है। हम अपनी पीठ खुद ठोकते रहते हैं। यह अहंकार के सिवा और क्या है। बात चल रही थी- उम्र घटने की। उम्र घट रही है और हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम अपने दिन यूं ही तो नहीं गंवा रहे हैं। आपने सब कुछ किया लेकिन ईश्वर को याद नहीं किया। उन्हें प्रणाम नहीं किया तो सब कुछ व्यर्थ है। इसलिए ऋषियों ने कहा है कि आप चाहे जितना महत्वपूर्ण काम कर रहे हों. चाहे जितने महत्वपूर्ण पद पर बैठे हों सोते और जागते समय दस मिनट के लिए या पांच मिनट के लिए ही सही ईश्वर को जरूर याद कीजिए। उन्हें प्रणाम कीजिए और धन्यवाद दीजिए कि आप जीवित हैं। वेद पुराण सबमें कहा गया है कि धन दौलत तो दूर की बात है यह शरीर तक आपके साथ नहीं जाएगा। आप किस मोह में फंसे हुए हैं। खाली हाथ आए हैं और कहीं ऐसा न हो कि खाली हाथ ही जाना पड़े। जब आप ईश्वर को प्रेम करने लगते हैं तो आप खाली हाथ नहीं रह जाते। आप जाएंगे भी तो धनवान बन कर। ईश्वर नामक पूंजी आपके साथ मरने के बाद भी रहेगी। परमहंस योगानंद जी कहते थे- ईश्वर के बैंक में खाता खोलिए। वहां धन लगातार बढ़ता रहता है। चाहे आप जितना भी खर्च क्यों न करें। ईश्वर ही हमारा सब कुछ है। उसे हर रोज क्यों न याद करें।

Wednesday, March 3, 2010

भगवान शिव अनंत हैं

विनय बिहारी सिंह


कल एक व्यक्ति ने कहा कि भगवान शिव उसे हमेशा इसलिए आकर्षित करते हैं क्योंकि वे हमेशा ध्यान मग्न रहते हैं और भक्तों के लिए हमेशा वे अभय का वरदान देते रहते हैं। इस पर एक साधु ने कहा- अनहोनी टालने के लिए महामृत्युंजय का जाप किया जाता है। यह भी भगवान शिव का ही जाप है। भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। उनकी शरण में रहने वाला निर्भय रहता है। भगवान शिव महान योगी हैं। वे अनंत हैं। कथा है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु ने शिव जी का आदि अंत जानने की कोशिश की। लेकिन उन्हें कुछ भी पता नहीं चल सका। ऐसे अनेक महात्मा हैं जो भगवान शिव को जानने की कोशिश करते रहे लेकिन जान नहीं पाए। फिर उन्होंने उनके सामने टोटल सरेंडर किया यानी भगवान शिव में अपने अस्तित्व को लीन कर दिया। लीन करने से हुआ यह कि वे शिवमय हो गए। अब ग्यान का बोध ही नहीं रहा। कौन किसको बताएगा कि शिव कैसे हैं। रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि नमक का पुतला समुद्र की थाह लेने गया और समुद्र में जाते ही गल गया। अब समुद्र की थाह कौन लेगा। यानी भक्त भगवान को जानने गया और खुद भगवानमय हो गया। अब कौन बताएगा कि भगवान कैसे हैं। इसीलिए जितने भी संत हुए हैं उन्होंने भगवान कैसे हैं इसका संकेत भर दिया है। क्योंकि पूर्ण रूप से कोई भगवान के बारे में बता ही कैसे सकता है। वे तो अनिर्वचनीय हैं। सच्चिदानंद हैं। भगवान शिव की वेशभूषा वैराग्य का द्योतक है। वे मृगछाला पर बैठे हैं और मृगछाला ही पहने हुए हैं। पूरे शरीर में श्मशान की भभूत है। यानी श्रृंगार का कोई सामान नहीं है। सबकुछ त्याग कर वे सिर्फ भक्तों को उनका प्राप्य देते रहते हैं। गले में सर्प कुंडलिनी के जागरण का प्रतीक है। उनके गला नीला है। समुद्र मंथन के समय उन्होंने हलाहल विष पीया था और उसे गले में ही रख दिया था। नीचे नहीं उतरने दिया। जिस विष से संसार में त्राहि त्राहि मची हुई थी उसे पीने के बाद उनका बाल बांका नहीं हुआ और वे फिर गहरे ध्यान में डूब गए। नंदी बैल उनकी सवारी है। बैल कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। मान्यता है कि भगवान शिव के भक्तों को कभी भूखे नहीं रहना पड़ता। उन्हें भोजन मिल ही जाता है। भगवान शिव के पुत्र गणेश भगवान हैं। यानी शिव जी की भक्ति से शुभ कार्य होते रहते हैं। गणेश जी विघ्नहारी देवता माने जाते हैं। यानी शिव जी के भक्तों का विघ्न अनायास ही कट जाता है। उनकी पत्नी माता पार्वती हैं। वे ही मां काली हैं और वे ही मां दुर्गा भी हैं। वे आदि शक्ति की प्रतीक हैं । इसीलिए उन्हें जगन्माता कहा जाता है। साधु की यह व्याख्या बहुत अच्छी लगी। (मित्रों मैं कुछ दिनों के लिए लखनऊ और उत्तर प्रदेश की अन्य जगहों पर जा रहा हूं। अगली मुलाकात ११ मार्च को होगी। तब तक इस ब्लाग की वह सामग्री आप पढ़ सकते हैं जो आप नहीं पढ़ सके हैं।)

Monday, March 1, 2010

मां भगवती और रात्रि जागरण

विनय बिहारी सिंह


एक तो भगवती जागरण यह है कि मां भगवती या दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है और पूजा पाठ के बाद किसी गायक मंडली को बुलाया जाता है और रात भर जोर जोर से माता के भजन होते हैं और नृत्य इत्यादि होते हैं। यह हुआ भौतिक जागरण। लेकिन असली रात्रि जागरण का अर्थ और गहरा है। रात्रि का अर्थ है अंधकार। यानी हमारे भीतर का अंधकार। इसी अंधकार को दूर करने के लिए जागरण। यानी हमारी चेतना में मां भगवती के प्रति जागृति पैदा हो। हम समझें कि हमारा स्रोत क्या है। हम इस दुनिया में क्यों आए। हम बच्चे से बड़े हों, यानी जवान हों फिर शादी करें और बच्चे पैदा हों। इसके बाद बूढ़े हों और फिर मर जाएं। इसके लिए तो हम इस दुनिया में नहीं आए। तो क्यों आए हैं यह सोचना पड़ेगा। निश्चित रूप से ईश्वर ने हमें एक और मौका दिया है कि हम समझ सकें कि हमारा गहरा रिश्ता सिर्फ और सिर्फ ईश्वर से ही है। बाकी सारे रिश्ते नाते अस्थाई हैं। अस्थाई इसलिए क्योंकि हम सबको एक न एक दिन मरना ही है। तब ये रिश्ते नाते अपने आप टूट जाएंगे। लेकिन हमारे शरीर में प्राण रहे या नहीं हमारी आत्मा तो हमेशा से ईश्वर से जुड़ी हुई है। यह अलग बात है कि हम नहीं समझ रहे हैं। लेकिन सच यही है। तो अग्यान के अंधकार को दूर करने के लिए मां भगवती की प्रार्थना को मां भगवती का जागरण कहते हैं। लेकिन इस प्रार्थना को कोई सुन नहीं पाता। यह प्रार्थना भीतर ही भीतर चलती है। यही है रात्रि जागरण। लेकिन हम सोचते हैं कि रात भर खूब जोर जोर से गीत संगीत के भरोसे जाग लेने को ही रात्रि जागरण कहते हैं। एक औऱ अर्थ है। कई साधक मां भगवती का ध्यान पूरी रात करते हैं। यह काम भी चुपचाप होता है। वे मां भगवती या काली के चित्र के सामने दिया जला लेते हैं और गहरे ध्यान में उतर जाते हैं। पूरी रात वे माता का ध्यान करते हैं। उस रात वे खाना नहीं खाते। सिर्फ दो केला और दूध का सेवन कर वे रात्रि जागरण के लिए बैठते हैं। इससे उनका शरीर भी हल्का रहता है और उनका ध्यान भी अच्छा होता है।

हम भगवान पर कैसे आश्रित हैं?


विनय बिहारी सिंह



कल एक साधु से एक व्यक्ति ने पूछा कि आखिर हम भगवान पर कैसे आश्रित हैं? साधु ने उनसे पूछा- आपने सर्कस देखा है? व्यक्ति ने कहा- हां। साधु ने कहा- उसमें एक बार एक खेल दिखाया जा रहा था- एक लंबा पोल एक आदमी पकड़े हुए था। उस पोल के ऊपरी सिरे पर एक अन्य युवक तरह तरह के खेल दिखा रहा था। दर्शक उसके करतब पर खूब तालियां बजा रहे थे। करतब दिखाने वाले को अहंकार हो गया। तब नीचे जिस युवक ने पोल पकड़ रखा था, उसे लगा कि अरे, पोल तो मैंने पकड़ रखा है और तालियां इसे मिल रही हैं। पोल पकड़ने वाले युवक को एक मजाक सूझा। उसने पोल को हल्का सा हिला दिया। ऊपर करतब दिखा रहे युवक को अब समझ में आया- अरे, मेरा आधार तो नीचे वाले युवक के पास है। बस उसका अहंकार क्षण भर में दूर हो गया। ठीक इसी तरह हमारा पोल ईश्वर के नियंत्रण में है। यह बिल्कुल सच है कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। करने वाला वही है। हम तो कठपुतली हैं। हमारे जीवन की छोटी से छोटी घटना भी कोई न कोई अर्थ रखती है। ऋषियों ने कहा है कि आप खुद को शरीर मान लेंगे तो कष्ट होगा ही। आप शरीर नहीं हैं। आप सच्चिदानंद आत्मा हैं। अपने सोच के ढर्रे को बदलिए। लेकिन हम लोग फिर अपने उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ते हैं। अभी ध्यान में बैठे हैं और अभी दिमाग हजार दिशाओं में दौड़ने लगा। हमारे नहीं चाहते हुए भी दिमाग कैसे फालतू जगहों पर चला जाता है? कैसे वाहियात बातें सोचने लगता है? इसका उत्तर है- हमने अब तक दिमाग को छुट्टा छोड़ दिया था। उस पर हमने कभी नियंत्रण ही नहीं रखा था। अब जब नियंत्रण में रख रहे हैं तो वह अपने पुराने रास्ते की तरफ जबर्दस्ती चला जा रहा है। दिमाग की आदत बदलने के लिए पुरानी दृढ़ हो चुकी आदत को बदल देना पड़ेगा जो आसान नहीं है। लेकिन हां, बहुत मुश्किल भी नहीं है। अगर हमें सार्थक जीवन जीना है। तनाव रहित जीवन जीना है तो हमें अपने दिमाग को भगवान की तरफ मोड़ना ही पड़ेगा। अन्यथा कोई चारा नहीं है। जब तक हम अपने तक सीमित रहेंगे, हमें कष्ट मिलता रहेगा। लेकिन जैसे ही हम ईश्वर से जुड़ जाएंगे, उनकी अनंत धारा हमारे भीतर बहने लगेगी। तब हम शांति का अनुभव करेंगे।