Friday, January 29, 2010

क्या आपका मन शांत नहीं रहता?

विनय बिहारी सिंह

कल एक सन्यासी से मैं पुस्तक मेले में उपलब्ध आध्यात्मिक पुस्तकों की उपलब्धता पर बात कर रहा था। अचानक एक सज्जन महिला आईं और उन्होंने कहा कि उनके मन से घृणा निकल ही नहीं रही है। सन्यासी ने कहा- उस घृणा को प्यार से बदल दीजिए। जो व्यक्ति आपसे घृणा कर रहा है या आप जिससे घृणा कर रही हैं उसे प्यार करने लगिए। सुनने में आपको अजीब लगेगा लेकिन एक बार आप ऐसा करके तो देखिए। यही काम अपने शत्रु के प्रति भी कीजिए। कोई आपका शत्रु है, लेकिन आप मन से उस व्यक्ति को प्यार का स्पंदन भेजिए। यह बहुत कठिन है लेकिन असंभव नहीं है। आप इसका परिणाम देख कर चकित रह जाएंगे। यह चमत्कार है। आप उस आदमी के पास जाकर मत कहिए कि मैं आपसे प्यार करती हूं। कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। बस आप मन में उस व्यक्ति के प्रति प्यार पैदा कीजिए। जब प्यार पैदा होने लगे तो अपना वह स्पंदन उसे भेजते रहिए। महिला संतुष्ट हुईं। इसके बाद महिला का अगला सवाल था- मन शांत कैसे हो? हमेशा अशांत रहता है। यह भी जेनुइन सवाल था। सन्यासी बोले- पहले खोजिए कि मन किस बात पर अशांत रहता है। उसे नोट करिए। उस कारण को खत्म करने की कोशिश कीजिए। तब महिला ने प्रश्न किया- अगर कारण पकड़ में आ जाए औऱ मैं उसे खत्म करने में असमर्थ होऊं तो क्या करना चाहिए। सन्यासी ने कहा- आप अपनी तरफ से ईमानदार कोशिश कीजिए कि मन जिन कारणों से अशांत है, वे खत्म हो जाएं। लेकिन जब आपकी अथक कोशिश से भी कुछ नहीं हो रहा है तो बस उसे आप ईश्वर पर छोड़ दीजिए। ईश्वर सिर्फ यही देखते हैं कि आप ईमानदारी से कोशिश कर रहे हैं कि नहीं। एक बार उन्हें पता चल जाए कि आप उनसे प्रेम करते हैं और अशांति के कारणों को खत्म करना चाहते हैं तो वह आपकी मदद करेगा। मां भी बच्चों को तभी कुछ खाने को देती है जब वे मांगते हैं। आप भी श्रद्धा और भक्ति के साथ ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि हे प्रभो, मेरी समस्या का समाधान कीजिए। मैं तो कोशिश करके थक गया। अगर आपकी पुकार दिल से निकल रही है तो ईश्वर उसे जरूर पूरी करेंगे। लेकिन कई लोग काम हो जाने के बाद ईश्वर को भूल ही जाते हैं। हम उस ईश्वर को कैसे भूल सकते हैं जिसने हमें इस पृथ्वी पर पाठ सीखने के लिए भेजा। यह जानने के लिए भेजा कि हम नाहक सांसारिक लालच और प्रपंच में फंसे रहते हैं। एक चीज मिलती है तो दूसरी के लिए ललक बढ़ती है। दूसरी मिलती है तो तीसरी के लिए मन छटपटाने लगता है। लेकिन कभी ईश्वर को पाने के लिए मन तो नहीं छटपटाता? साड़ी के लिए, पैंट और शर्ट के लिए, अच्छे से अच्छे भोजन के लिए मन छटपटाता रहता है। कई लोग तो पूजा करते वक्त भी यही सोचते रहते हैं कि भोजन में क्या बना है। कई लोग ध्यान करते हुए सोचने लगते हैं कि बाजार से क्या लाना है। या अमुक काम कैसे होगा। कई लोग तो यह भी कहते हैं कि ध्यान करते वक्त ऐसी बातें याद आने लगती हैं जो भूल चुके हैं। लेकिन उस दौरान अपनी चेतना ईश्वर में लय करनी होती है। सोचना कुछ नहीं है, बस अनुभव करना है। ईश्वर में लय होना है और ईश्वर आनंद से ओतप्रोत होना है। ईश्वर तो शरीर मन, बुद्धि, अहं से अलग हैं। इसलिए तरह तरह की बातें सोचना क्यों? इस चिंतन से तो कोई लाभ नहीं होने वाला? लेकिन ध्यान से अपार लाभ होगा। मन शांत रहेगा और ईश्वर की कृपा बरसेगी।

3 comments:

vandana gupta said...

sundar aalekh.

vimal singh said...

mera nam ravender singh
mai shiv sankar ki bhkti karta hoo mujhe shiv ki kathae bahut hee pree hai
our shiv bhajan our shiv keertan meri swashe hai
mai app logo se yhi prathna karuga

ki aap logo ko bhagvan shiv sankar ki krapa pradan ho jay our aap log ishi tarah share shanshar me yoohi parmeshwar ke bare logo ko jankari dete rhe

mera nam ravender singh
shiv sankar ki bhkti meri jindgi our . om namah shivay meri swashe


thank.s

Sahil said...

Agar hum jinhe pyar karte hain vahi log hamare man me apne liye ghrina paida kar de to fir insaan kya kar. Nafrat karne wale se pyar kiya ja sakta hai. Lekin agar pyar karne wale se nafrat ho jaye to fir dobara use pyar karna lagbhag asambhav hai.