Thursday, January 21, 2010

देह की यही नियति है

विनय बिहारी सिंह

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की देह डीप फ्रीजर में रखी गई है। इसके पहले कई रसायनों से उसे सिंचित किया गया ताकि शरीर के भीतर जो तरल पदार्थ हैं वे सूख जाएं और शरीर डिहाइड्रेटेड हो जाए। डाक्टरों ने बताया है कि जब शरीर डिहाइड्रेशन के बाद बाहर आता है तो उसे पहचानना मुश्किल हो जाता है। उसकी पहचान दरअसल मिट जाती है। शरीर का रंग रूप पहचान करने लायक नहीं रह जाता। तो चाहे शरीर को जला कर राख कर दिया जाए या डीप फ्रीजर में रखा जाए, शरीर अपनी पहचान खो देगा। गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़ कर नए वस्त्र पहनता है, ठीक उसी तरह यह आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़ कर दूसरा शरीर धारण कर लेती है। आत्मा को न शस्त्र काट सकता है, न आग जला सकती है, न जल भिंगो सकता है और न वायु सुखा सकती है। आत्मा को अनेक विद्वान आश्चर्य की तरह देखते हैं। जिस देह के प्रति हम इतने आसक्त हैं, उसका क्या अंत है? यह जल कर राख हो जाएगी। धूल में मिल जाएगी। उसी धूल में जिस पर हम चलते हैं। तो क्या हम देह को भूल जाएं? नहीं भूलें नहीं लेकिन आसक्त भी न हों। इस शरीर के पोषण के लिए जो भी जरूरी हो, उसे जरूर करें लेकिन इसमें अनावश्यक आसक्ति न हो। यह शरीर युवावस्था में आकर्षक हो जाता है, तो लोग यह नहीं समझते कि यह शरीर यात्रा का एक चरण है। बस उसकी तरफ यूं आकर्षित होते हैं जैसे कोई अजूबा वस्तु देख रहे हों। शरीर में जो जीव है, उसकी तरफ न देख कर हम सिर्फ देह को ही देखते हैं। मैंने अपनी मां को चिता पर जलते बचपन में देखा है। उनका शरीर जैसे जैसे जल रहा था, छोटा होता जा रहा था। छोटा होते होते ऱाख बन गया। फिर उसे हमने गंगा जल को अंजुली में लेकर उस राख को गंगा के पवित्र जल में बहा दिया। मां जहां से आई थी, वहीं चली गई। हम भारी मन से घर आए। धीरे- धीरे मां के जाने का दुख खत्म हो गया। मैं हंसने, बोलने और खाने-पीने लगा। बड़ा होकर समझ पाया कि जो जन्मता है, उसे मरना होता है। सभी एक दिन मरेंगे। फिर बेचैनी और तनाव क्यों? ईश्वर से संबंध जोड़ कर उसकी निकटता की कोशिश करना ही तो हमारा असली काम है। वरना दुनिया में न जाने कितने चक्करों से हमें गुजरना पड़ता है। अगर इन चक्करों में ईश्वर को भूल जाएंगे तो हमारी रक्षा कौन करेगा? एकमात्र वही हमारे सहारा हैं। लेकिन कई लोग ईश्वर के बदले किसी देहधारी को अपना रक्षक मान लेते हैं। देहधारी तो खुद ही नश्वर है। जो शास्वत है, सर्वशक्तिमान है, सर्वग्य है और सर्वव्यापी है उसकी याद हम क्यों नहीं करें। वह हमारे साथ हमेशा है लेकिन हम उसके साथ हमेशा क्यों नहीं रहते। ऋषियों ने तो कहा ही है कि सर्वं खल्विदं ब्रह। सब कुछ ब्रह्म ही है।

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