Monday, January 4, 2010

समूचा पहाड़ ही उठा ले गए पवनसुत

विनय बिहारी सिंह

कल हनुमान जी का प्रसंग एक बार फिर पढ़ कर सुख मिला। जब रावण के पुत्र के बाण से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए तो भगवान राम ने विभीषण से सलाह ली कि वैद्य कहां मिलेंगे। तुलसी दास तो कहते थे कि जो सबके जीवन के मालिक हैं, उन्हें वैद्य की क्या जरूरत? और कोई वैद्य भी तो उन्हीं की कृपा से किसी को ठीक करता है। लेकिन चूंकि भगवान राम ने मनुष्य का अवतार लिया था। इसलिए वैद्य खोजने की बात आई। विभीषण ने कहा कि लंका में एक वैद्य हैं सुषेण। लेकिन वे आएंगे कि नहीं, कहना मुश्किल है। यह बात हनुमान जी ने सुन ली। उन्होंने कहा कि मैं उन्हें उठा लाता हूं। वे गए और उस कमरे को ही उठा लाए जिसमें सुषेण जी सोए हुए थे। उन्हें जगाया गया। सुषेण समझदार थे। समझ गए कि उन्हें किसी अत्यंत बलशाली व्यक्ति ने बुलाया है। वरना घर के एक हिस्से को उठाने की ताकत तो किसी में नहीं है। सुषेण से समस्या बताई गई। उन्होंने कहा कि मंदार पर्वत पर संजीवनी बूटी है। उसका रंग रूप भी बता दिया। कहा कि अगर संजीवनी बूटी मिल जाए तो लक्मण जी तुरंत होश में आ जाएंगे और उनमें पहले से भी ज्यादा शक्ति आ जाएगी। हनुमान जी तुरंत उड़ कर मंदार पर्वत गए लेकिन वहां एक ही तरह की लाखों जड़ी- बूटियां देख कर उन्हें समझ में नहीं आया। इसलिए वे उतना हिस्सा उखाड़ कर ले उड़े। रास्ते में अयोध्या नगरी पड़ती थी। हनुमान जी की विराट छाया जमीन पर पड़ी तो उस समय के राजा भरत ने आसमान की तरफ देखा और पाया कि कोई विशाल जीव उड़ा जा रहा है। उन्होंने तत्काल तीर चलाया और हनुमान जी बेहोश हो कर धरती पर गिर पड़े। लेकिन उनके मुंह से राम, राम निकला। भरत चौंके। हनुमान जी को होश में लाकर उन्होंने उनका परिचय और पहाड़ ले जाने का कारण पूछा। जब हनुमान जी ने बताया कि लक्ष्मण जी बेहोश हैं। यह उन्हीं की दवा है। तो भरत जी बेहद दुखी हुए। उन्होंने खुद को कोसा। वे अनजाने में ही भाई की चिकित्सा में विलंब कर रहे हैं। उन्होंने हनुमान जी का सत्कार किया और एक बाण को छोड़ा जो हनुमान जी को लेकर सीधे राम और लक्ष्मण जी के पास चला गया। सुषेण हनुमान जी के पराक्रम को समझ चुके थे। इसलिए तुरंत उन्होंने उपलब्ध जड़ी- बूटी से लक्ष्मण को ठीक कर दिया। रामायण के विशेषग्य कहते हैं कि हनुमान जी को आठ सिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त थीं। यह भगवान राम ने नहीं मां सीता ने उन्हें दिया था। मां सीता जगन्माता हैं। भगवान राम को यह बात मालूम थी। भगवान शिव ने भगवान राम के बारे में रामचरितमानस में कहा है- पग बिनु चलै, सुनै बिनु काना। कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।। वे तो अंतर्यामी हैं। सर्व शक्तिमान हैं और सर्व ग्याता हैं। लेकिन चूंकि मनुष्य का अवतार लिया है, इसलिए रावण से युद्ध कर रहे थे। पत्नी वियोग दिखा रहे थे और भाई के मूर्छित होने पर शोक व्यक्त कर रहे थे। जबकि सच्चाई यह है कि वे तो त्रिगुणातीत हैं। न उन्हें सत्व गुण व्यापता है और न ही रज या तम।

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