Thursday, January 7, 2010

अर्जुन ने कहा- मुझे सिर्फ कृष्ण चाहिए

विनय बिहारी सिंह

क्या अद्भुत कथा है। जब कौरवों और पांडवों में युद्ध तय हो गया तो वे भगवान कृष्ण के पास मदद के लिए गए। कौरवों की तरफ से दुर्योधन और पांडवों की तरफ से अर्जुन कृष्ण के द्वारकापुरी पहुंचे। सबसे पहले दुर्योधन पहुंचे तो देखा कृष्ण सो रहे हैं। वह अहंकार में था। इसलिए कृष्ण जिधर सिर करके सोए थे, उधर ही रखे सिंहासन पर बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद अर्जुन पहुंचे। देखा कि दुर्योधन पहले ही पहुंचे हुए हैं। इसलिए वह कृष्ण के पैर की तरफ बैठ गया। तभी कृष्ण की नींद खुली और सामने उन्होंने अर्जुन को पाया। उन्होंने पूछा- कब आए अर्जुन? अर्जुन ने उन्हें प्रणाम कर बताया कि थोड़ी देर पहले। तभी दुर्योधन बोला- मैं इससे पहले आया हूं महाराज। कृष्ण ने उसका भी मुस्करा कर स्वागत किया। स्वागत सत्कार के बाद कृष्ण ने उन दोनों से पूछा कि वे किसलिए आए हैं। दोनों ने कहा- आपकी मदद के लिए। दुर्योधन बोला- महाराज, मैं पहले आया हूं, इसलिए पहले मैं आपकी मदद मांगूंगा। कृष्ण ने कहा- तुम्हारी बात ठीक है। लेकिन सबसे पहले तो मैंने अर्जुन को देखा और चूंकि वह तुमसे छोटा है, इसलिए उसी को पहले अपनी बात कहने दो। दुर्योधन अब क्या कहते। तभी कृष्ण ने कहा- एक तरफ मेरी एक अक्षौहिणी सेना है। जो बल में मेरे बराबर है। दूसरी तरफ मैं अकेला हूं। मैं लड़ाई में शस्त्र नहीं उठाऊंगा। अर्जुन तुम किसे चाहते हो- मेरी सेना या अकेले मुझे। अर्जुन ने कहा- प्रभु, मैं सिर्फ और सिर्फ आपको चाहता हूं। कृष्ण ने कहा- सोच लो। मैं युद्ध नहीं करूंगा। सिर्फ तुम्हारी ओर रहूंगा। अर्जुन ने कहा- ठीक है भगवन। मुझे तो अकेले आपकी ही जरूरत है। दुर्योधन यह सुन कर बहुत खुश हुआ। उसे एक अक्षौहिणी सेना मिल गई। बाहर निकलते हुए वह सोच रहा था- अब तो पांडवों को हराना चुटकी बजाने जैसा है। जब कृष्ण की सेना मेरे साथ है तो फिर बात ही क्या है। जब दुर्योधन चला गया तो भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा- अर्जुन तूने मूर्खता की है। अकेले मुझ निहत्थे को लेकर क्या करोगे। अर्जुन बोला- प्रभु। मेरे अस्तित्व के कण- कण में आप विद्यमान हैं। आपके बिना मैं रह ही नहीं सकता। मुझे जीत या हार की चिंता नहीं है। मुझे तो बस यही खुशी है कि आप मेरे साथ हैं। बस, मैं आनंद में हूं। सभी जानते हैं कि अकेले कृष्ण के कारण ही पांडव इस युद्ध में जीते। भगवदगीता में है- जहां कृष्ण जैसे योगेश्वर हैं और अर्जुन जैसा धनुर्धारी है, जीत वहीं होगी। आज जब मैंने रास्ते में एक व्यक्ति को- हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम राम राम हरे हरे, गाते हुए सुना तो यह कथा याद आ गई।

2 comments:

Neelesh K. Jain said...
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Neelesh K. Jain said...

Vinay ji
Krishna kee jagah jo sena maange wohi hi 'Dur-yodhan' hota hai arthaat Yudhh ki dur yojana banane wala. Aapki short stories par likhi pustakein kahan uplabdh ho sakti hain, kripya batayein. Main Mumbai mein Sr. creative Consultant hoon.
Aap agar Mumbai aaye to milna hi jayega ya main Kolkata aane par ...
Aapka Neelesh
neelesh.nkj@gmail.com

January 7, 2010 2:24 AM